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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025

गोकुलेश अष्टकम

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Gokulesha Ashtakam In Hindi

गोकुलेश अष्टकम(Gokulesha Ashtakam)भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति के लिए एक सुंदर और प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह भक्ति-प्रधान रचना भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की महिमा का वर्णन करती है। गोकुलेश अष्टकम के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण के बाल्यकाल के अद्भुत लीलाओं और उनके भक्तों के प्रति असीम प्रेम का अनुभव करते हैं। यह स्तोत्र उनके भक्तों को आनंद और शांति प्रदान करता है।

गोकुलेश अष्टकम रचना का महत्व Gokulesha Ashtakam

गोकुलेश अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण को “गोकुल के ईश्वर” के रूप में पूजित करता है। इसमें भगवान की बाल लीलाओं, उनकी चपलता, माखन चोरी, गोपियों के साथ उनकी क्रीड़ाओं और गोकुलवासियों के प्रति उनके वात्सल्य का वर्णन है। भक्त जब इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो वे कृष्ण की दिव्य उपस्थिति को अनुभव करते हैं।

गोकुलेश अष्टकम के रचयिता का प्रामाणिक उल्लेख कहीं नहीं मिलता, लेकिन यह वैष्णव परंपरा के अंतर्गत आता है। इसे भक्तों ने अपनी श्रद्धा से संस्कृत भाषा में रचा है। इस स्तोत्र को विशेष रूप से गोपाष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी और अन्य कृष्ण-पूजा के अवसरों पर गाया जाता है।

गोकुलेश अष्टकम के भाव

  • माखन चोर रूप: भगवान कृष्ण के माखन चोरी करने की लीलाओं का वर्णन।
  • गोपियों के प्रति प्रेम: गोपियों के साथ उनकी प्रेम भक्ति और उनकी रासलीलाओं का वर्णन।
  • गायों के रक्षक: कृष्ण को गोकुल के गोपालक और गायों के संरक्षक के रूप में दिखाया गया है।
  • माता यशोदा का वात्सल्य: माता यशोदा के प्रति उनके प्रेम और उनके नटखट स्वभाव का चित्रण।
  • कंस-विनाशक: भगवान के अद्भुत पराक्रम और दुष्टों के संहार का वर्णन।

गोकुलेश अष्टकम का पाठ Gokulesha Ashtakam

गोकुलेश अष्टकम का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यह भक्तों को भगवान के प्रति भक्ति, समर्पण और आनंद का अनुभव कराता है। इसे सुबह और शाम के समय शुद्ध मन और भक्ति-भाव से गाना या पढ़ना शुभ माना जाता है।

प्राणाधिकप्रेष्ठभवज्जनानां त्वद्विप्रयोगानलतापितानाम्।
समस्तसन्तापनिवर्तकं यद्रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
भवद्वियोगोरगदंशभाजां प्रत्यङ्गमुद्यद्विषमूर्च्छितानाम्।
सञ्जीवनं सम्प्रति तावकानां रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
आकस्मिकत्वद्विरहान्धकार- सञ्छादिताशेषनिदर्शनानाम्।
प्रकाशकं त्वज्जनलोचनानां रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
स्वमन्दिरास्तीर्णविचित्रवर्णं सुस्पर्शमृद्वास्तरणे निषण्णम्।
पृथूपधानाश्रितपृष्ठभागं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
सन्दर्शनार्थागतसर्वलोक- विलोचनासेचनकं मनोज्ञम्।
कृपावलोकहिततत्प्रसादं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
यत्सर्वदा चर्वितनागवल्लीरसप्रियं तद्रसरक्तदन्तम्।
निजेषु तच्चर्वितशेषदं च रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
प्रतिक्षणं गोकुलसुन्दरीणामतृप्ति- मल्लोचनपानपात्रम्।
समस्तसौन्दर्यरसौघपूर्णं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
क्वचित्क्षणं वैणिकदत्तकर्णं कदाचिदुद्गानकृतावधानम्।
सहासवाचः क्व च भाषमाणं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
श्रीगोकुलेशाष्टकमिष्ट- दातृश्रद्धान्वितो यः पठितीति नित्यम्।
पश्यत्पवश्यं स तदीयरूपं निजैकवश्यं कुरुते च हृष्टः।

गोकुलेश अष्टकम का लाभ

  1. भक्ति और शांति का अनुभव: भगवान की बाल लीलाओं का स्मरण करते हुए भक्त आनंद और शांति का अनुभव करते हैं।
  2. सांसारिक कष्टों का निवारण: यह माना जाता है कि गोकुलेश अष्टकम का पाठ करने से जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
  3. ईश्वर के प्रति समर्पण: यह स्तोत्र भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम को बढ़ाता है।
  4. धार्मिक स्थिरता: गोकुलेश अष्टकम भक्तों को धार्मिकता और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है।

गोकुलेश अष्टकम का पाठ करने की विधि

  1. प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  3. गोकुलेश अष्टकम का पाठ करें या इसे गाकर भगवान का ध्यान करें।

गोकुलेश अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और गोकुल में उनके जीवन की महिमा को समर्पित एक अद्वितीय स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ भक्तों को आध्यात्मिक शांति और भगवान की कृपा का अनुभव कराता है। इसे पढ़ने से जीवन में सकारात्मकता और भक्तिभाव का संचार होता है।

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