श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् Shri Ganesh Bhujang Stotram
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय स्तोत्र है, जो भगवान गणेश की स्तुति में लिखा गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, जो विघ्नों का नाश करने वाले और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। भुजंग स्तोत्र का नाम ‘भुजंग’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ है ‘सर्प के समान लय’। इसका पाठ भुजंग प्रक्रम में किया जाता है, जो सर्प के गति के समान लयबद्ध रूप से होता है। इस स्तोत्र का छंद विशेष रूप से इस लय का अनुसरण करता है।
रचना और लेखक
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् का रचयिता आदि शंकराचार्य माने जाते हैं। आदि शंकराचार्य ने इस स्तोत्र की रचना भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करने और उनके भक्तों को विघ्न-बाधाओं से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से की थी। शंकराचार्य ने भगवान गणेश की असीम शक्ति, उनके गुण, और उनकी कृपा का अद्भुत वर्णन इस स्तोत्र में किया है।
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् का पाठ
यह स्तोत्र गणेश चतुर्थी, बुद्धवार, या किसी भी शुभ अवसर पर पाठ किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की बुद्धि में वृद्धि होती है, समृद्धि मिलती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए यह स्तोत्र अत्यधिक प्रभावी माना गया है।
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् के लाभ
- विघ्नों का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है।
- बुद्धि और विवेक: भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का स्वामी माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की बुद्धि तेज होती है और सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
- समृद्धि और सुख: गणेश जी की कृपा से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। आर्थिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।
- संकटों से रक्षा: यह स्तोत्र व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों और बुराईयों से रक्षा करता है।
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् का पाठ विधि
- प्रातः काल स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान में भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं।
- गणेश जी को फूल, अक्षत (चावल), और दूर्वा (घास) चढ़ाएं।
- इसके बाद शांत मन से श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् का पाठ करें।
श्री गणेश भुजंग स्तोत्रम् Shri Ganesh Bhujang Stotram
अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं निरातंकमद्वैतमानन्दपूर्णम् ।
परं निर्गुणं निर्विशेषं निरीहं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम ॥१॥
गुणातीतमाद्यं चिदानंदरूपं चिदाभासकं सर्वगं ज्ञानगम्यम् ।
मुनिध्येयमाकाशरूपं परेशं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम ॥२॥
जगत्कारणं कारणज्ञानरूपं सुरादिं सुखादिं युगादिं गणेशम् ।
जगद्व्यापिनं विश्ववन्द्यं सुरेशं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम ॥३॥
रजोयोगतो ब्रह्मरूपं श्रुतिज्ञं सदाकार्यसक्तं हृदाऽचिंत्यरूपम् ।
जगत्कारणं सर्वविद्यानिधानं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम ॥४॥
सदा सत्वयोगं मुदा क्रीडमानं सुरारीन् हरन्तं जगत्पालयन्तम् ।
अनेकावतारं निजाज्ञानहारं सदा विष्णुरूपं गणेशं नमामः ॥५॥
तपोयोगिनां रुद्ररूपं त्रिणेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम् ।
अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा शर्वरूपं गणेशं नमामः ॥६॥
तमस्तोमहारं जनाज्ञानहारंत्रयीवेदसारं परब्रह्मपारम् ।
मुनिज्ञानकारं विदूरे विकारं सदा ब्रह्मरूपं गणेशं नमामः ॥७॥
निजैरोषधीस्तर्पयन्तं करौघैः सुरौघान् कलाभिः सुधास्राविणीभिः ।
दिनेशांशु संतापहारं द्विजेशं शशांकस्वरूपं गणेशं नमामः ॥८॥
प्रकाशस्वरूपं नभोवायुरूपं विकारादिहेतुं कलाकालभूतम् ।
अनेकक्रियानेकशक्तिस्वरूपं सदा शक्तिरूपं गणेशं नमामः ॥९॥
प्रधानस्वरूपं महत्तत्वरूपं धरावारिरूपं दिगीशादिरूपम् ।
असत्सत्स्वरूपं जगद्धेतुभूतं सदा विश्वरूपं गणेशं नमामः ॥१०॥
त्वदीये मनः स्थापयेदंघ्रिपद्मे जनो विघ्नसंघान्न पीडां लभेत ।
लसत्सूर्यबिंबे विशाले स्थितोऽयं जनो ध्वांतबाधां कथं वा लभेत ॥११॥
वयं भ्रामिताः सर्वथा ज्ञानयोगात् अलब्ध्वा तवाङ्घ्रिं बहून् वर्षपूगान् ।
इदानीमवाप्तं तवैव प्रसादात् प्रपन्नानिमान् पाहि विश्वंभराद्य ॥१२॥
इदं यः पठेत् प्रातरुत्थाय धीमान् त्रिसंध्यं सदा भक्तियुक्तो विशुद्धः ।
स पुत्रान् श्रियं सर्वकामान् लभेत परब्रह्मरूपो भवेदन्तकाले ॥१३॥
इस स्तोत्र का पाठ सरल है और इसे याद करना भी आसान है, जिससे गणेश भक्तों को इसका लाभ मिल सके।