Dasarathi Satakam In Hindi
दाशरथी शतकम्(Dasarathi Satakam), एक प्रसिद्ध काव्य कृति है जो महान तेलुगु कवि दाशरथि कृष्णमाचार्य द्वारा रचित है। इस काव्य में भगवान श्रीराम की महिमा का गुणगान किया गया है। दाशरथी नाम से मशहूर, यह कवि 20वीं शताब्दी के हिंदी और तेलुगु साहित्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। दाशरथी शतकम् में 100 श्लोक हैं, जिनमें भगवान राम के प्रति भक्तिभाव, उनके अद्भुत गुण, और मानवता के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का उल्लेख किया गया है। इस काव्य में कवि ने राम के चरित्र, उनके कार्यों, और उनके प्रति भक्ति की गहरी भावना को प्रस्तुत किया है।
भक्ति और प्रेम
कविता में भगवान राम के प्रति जो प्रेम और भक्ति व्यक्त की गई है, वह पाठकों को प्रेरित करती है। कवि ने राम के भव्य रूप और उनके कार्यों का ध्यान केंद्रित करने के लिए अनेक रूपक और अलंकारों का उपयोग किया है। यह शतक न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह आत्म-संप्रेरणा का भी स्रोत है।
साहित्यिक महत्व
दाशरथी शतकम् का साहित्यिक महत्व भी अत्यधिक है। इसे साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त कविताओं में रखा गया है। यह काव्य सिर्फ एक धार्मिक पाठ नहीं है, बल्कि यह मानवता, धर्म, और नीतिशास्त्र का अद्भुत संगम है। दाशरथी कृष्णमाचार्य की रचनाएँ उनके समय की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं।
Dasarathi Satakam दाशरथी शतकम्
श्री रघुराम चारुतुल-सीतादलधाम शमक्षमादि शृं
गार गुणाभिराम त्रिज-गन्नुत शौर्य रमाललाम दु
र्वार कबन्धराक्षस वि-राम जगज्जन कल्मषार्नवो
त्तारकनाम! भद्रगिरि-दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १ ॥
रामविशाल विक्रम पराजित भार्गवराम सद्गुण
स्तोम पराङ्गनाविमुख सुव्रत काम विनील नीरद
श्याम ककुत्ध्सवंश कलशाम्भुधिसोम सुरारिदोर्भलो
द्धाम विराम भद्रगिरि – दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २ ॥
अगणित सत्यभाष, शरणागतपोष, दयालसज्घरी
विगत समस्तदोष, पृथिवीसुरतोष, त्रिलोक पूतकृ
द्गग नधुनीमरन्द पदकञ्ज विशेष मणिप्रभा धग
द्धगित विभूष भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३ ॥
रङ्गदरातिभङ्ग, खग राजतुरङ्ग, विपत्परम्परो
त्तुङ्ग तमःपतङ्ग, परि तोषितरङ्ग, दयान्तरङ्ग स
त्सङ्ग धरात्मजा हृदय सारसभृङ्ग निशाचराब्जमा
तङ्ग, शुभाङ्ग, भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिथी. ॥ ४ ॥
श्रीद सनन्दनादि मुनिसेवित पाद दिगन्तकीर्तिसं
पाद समस्तभूत परिपाल विनोद विषाद वल्लि का
च्छेद धराधिनाथकुल सिन्धुसुधामयपाद नृत्तगी
तादि विनोद भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५ ॥
आर्युल कॆल्ल म्रॊक्किविन ताङ्गुडनै रघुनाध भट्टरा
रार्युल कञ्जलॆत्ति कवि सत्तमुलन् विनुतिञ्चि कार्य सौ
कर्य मॆलर्पनॊक्क शतकम्बॊन गूर्चि रचिन्तुनेडुता
त्पर्यमुनन् ग्रहिम्पुमिदि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६ ॥
मसकॊनि रेङ्गुबण्ड्लुकुनु मौक्तिकमुल् वॆलवोसिनट्लुदु
र्व्यसनमुजॆन्दि काव्यमु दुरात्मुलकिच्चितिमोस मय्यॆ ना
रसनकुँ बूतवृत्तिसुक रम्बुग जेकुरुनट्लु वाक्सुधा
रसमुलुचिल्क बद्युमुख रङ्गमुनन्दुनटिम्प वय्यसं
तसमु जॆन्दि भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७ ॥
श्रीरमणीयहार यतसी कुसुमाभशरीर, भक्त मं
दार, विकारदूर, परतत्त्वविहार त्रिलोक चेतनो
दार, दुरन्त पातक वितान विदूर, खरादि दैत्यकां
तार कुठार भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८ ॥
दुरितलतालवित्र, खर दूषणकाननवीतिहॊत्र, भू
भरणकलाविचित्र, भव बन्धविमोचनसूत्र, चारुवि
स्फुरदरविन्दनेत्र, घन पुण्यचरित्र, विनीलभूरिकं
धरसमगात्र, भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९ ॥
कनकविशालचेल भवकानन शातकुठारधार स
ज्जनपरिपालशील दिविजस्तुत सद्गुण काण्डकाण्ड सं
जनित पराक्रमक्रम विशारद शारद कन्दकुन्द चं
दन घनसार सारयश दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १0 ॥
श्री रघुवंश तोयधिकि शीतमयूखुडवैन नी पवि
त्रोरुपदाब्जमुल् विकसितोत्पल चम्पक वृत्तमाधुरी
पूरितवाक्प्रसूनमुल बूजलॊनर्चॆद जित्तगिम्पुमी
तारकनाम भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ११ ॥
गुरुतरमैन काव्यरस गुम्भनकब्बुर मन्दिमुष्करुल्
सरसुलमाड्कि सन्तसिल जूलुदुरोटुशशाङ्क चन्द्रिकां
कुरमुल किन्दु कान्तमणि कोटिस्रविञ्चिन भङ्गिविन्ध्यभू
धरमुन जाऱुने शिललु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १२ ॥
तरणिकुलेश नानुडुल दप्पुलु गल्गिन नीदुनाम स
द्विरचितमैन काव्यमु पवित्रमुगादॆ वियन्नदीजलं
बरगुचुवङ्कयैन मलिनाकृति बाऱिन दन्महत्वमुं
दरमॆ गणिम्प नॆव्वरिकि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १३ ॥
दारुणपात काब्धिकि सदा बडबाग्नि भवाकुलार्तिवि
स्तारदवानलार्चिकि सुधारसवृष्टि दुरन्त दुर्मता
चारभयङ्क राटविकि जण्डकठोरकुठारधार नी
तारकनाम मॆन्नुकॊन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १४ ॥
हरुनकु नव्विभीषणुनक द्रिजकुं दिरुमन्त्र राजमै
करिकि सहल्यकुं द्रुपदकन्यकु नार्तिहरिञ्चुचुट्टमै
परगिनयट्टि नीपतित पावननाममु जिह्वपै निरं
तरमु नटिम्पजेयुमिक दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १५ ॥
मुप्पुन गालकिङ्करुलु मुङ्गिटवच्चिन वेल, रोगमुल्
गॊप्परमैनचो गफमु कुत्तुक निण्डिनवेल, बान्धवुल्
गप्पिनवेल, मीस्मरण गल्गुनॊ गल्गदॊ नाटि किप्पुडे
तप्पकचेतु मीभजन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १६ ॥
परमदयानिधे पतितपावननाम हरे यटञ्चु सु
स्धिरमतुलै सदाभजन सेयु महात्मुल पादधूलि ना
शिरमुनदाल्तुमीरटकु जेरकुडञ्चु यमुण्डु किङ्करो
त्करमुल कान बॆट्टुनट दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १७ ॥
अजुनकु तण्ड्रिवय्यु सनकादुलकुं बरतत्त्वमय्युस
द्द्विजमुनिकोटिकॆल्लबर देतवय्यु दिनेशवंश भू
भुजुलकु मेटिवय्युबरि पूर्णुडवै वॆलिगॊन्दुपक्षिरा
ड्ध्वजमिमु ब्रस्तुतिञ्चॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १८ ॥
पण्डित रक्षकुं डखिल पापविमॊचनु डब्जसम्भवा
खण्डल पूजितुण्डु दशकण्ठ विलुण्ठन चण्डकाण्डको
दण्डकला प्रवीणुडवु तावक कीर्ति वधूटि कित्तुपू
दण्डलु गाग ना कवित दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १९ ॥
श्रीरम सीतगाग निजसेवक बृन्दमु वीरवैष्णवा
चार जवम्बुगाग विरजानदि गौतमिगा विकुण्ठ मु
न्नारयभद्र शैलशिखराग्रमुगाग वसिञ्चु चेतनो
द्धारकुडैन विष्णुडवु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २0 ॥
कण्टि नदीतटम्बुबॊडगण्टिनि भद्रनगाधिवासमुन्
गण्टि निलातनूजनुरु कार्मुक मार्गणशङ्खचक्रमुल्
गण्टिनि मिम्मु लक्ष्मणुनि गण्टि कृतार्धुड नैति नो जग
त्कण्टक दैत्यनिर्धलन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २१ ॥
हलिकुनकुन् हलाग्रमुन नर्धमु सेकुरुभङ्गि दप्पिचे
नलमट जॆन्दुवानिकि सुरापगलो जल मब्बिनट्लु दु
र्मलिन मनोविकारियगु मर्त्युनि नन्नॊडगूर्चि नीपयिन्
दलवु घटिम्पजेसितिवॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २२ ॥
कॊञ्जकतर्क वादमनु गुद्दलिचे बरतत्त्वभूस्धलिन्
रञ्जिलद्रव्वि कङ्गॊननि रामनिधानमु नेडु भक्तिसि
द्धाञ्जनमन्दुहस्तगत मय्यॆबली यनगा मदीयहृ
त्कञ्जमुनन् वसिम्पुमिक दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २३ ॥
रामुँडु घोर पातक विरामुडु सद्गुणकल्पवल्लिका
रामुडु षड्विकारजय रामुडु साधुजनावनव्रतो
द्दामुँडु रामुडे परम दैवमु माकनि मी यडुङ्गु गॆं
दामरले भुजिञ्चॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २४ ॥
चक्कॆरमानिवेमुदिन जालिनकैवडि मानवाधमुल्
पॆक्कुरु ऒक्क दैवमुल वेमऱुगॊल्चॆदरट्ल कादया
म्रॊक्किननीकु म्रॊक्कवलॆ मोक्ष मॊसङ्गिन नीवयीवलॆं
दक्किनमाट लेमिटिकि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २५ ॥
‘रा’ कलुषम्बुलॆल्ल बयलम्बडद्रोचिन ‘मा’क वाटमै
डीकॊनिप्रोवुचुनिक्क मनिधीयुतुलॆन्नँददीय वर्णमुल्
गैकॊनि भक्ति चे नुडुवँगानरु गाक विपत्परम्परल्
दाकॊनुने जगज्जनुल दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २६ ॥
रामहरे ककुत्ध्सकुल रामहरे रघुरामरामश्री
रामहरेयटञ्चु मदि रञ्जिल भेकगलम्बुलील नी
नाममु संस्मरिञ्चिन जनम्बु भवम्बॆडबासि तत्परं
धाम निवासुलौदुरट दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २७ ॥
चक्कॆर लप्पकुन् मिगुल जव्वनि कॆञ्जिगुराकु मोविकिं
जॊक्कपुजुण्टि तेनियकु जॊक्कुलुचुङ्गन लेरु गाक ने
डक्कट रामनाममधु रामृतमानुटकण्टॆ सौख्यामा
तक्किनमाधुरी महिम दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २८ ॥
अण्डजवाह निन्नु हृदयम्बुननम्मिन वारि पापमुल्
कॊण्डलवण्टिवैन वॆसगूलि नशिम्पक युन्नॆ सन्त ता
खण्डलवैभवोन्नतुलु गल्गकमानुनॆ मोक्ष लक्ष्मिकै
दण्डयॊसङ्गकुन्नॆ तुद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ २९ ॥
चिक्कनिपालपै मिसिमि जॆन्दिन मीगड पञ्चदारतो
मॆक्किनभङ्गि मीविमल मेचकरूप सुधारसम्बु ना
मक्कुव पल्लेरम्बुन समाहित दास्यमु नेटिदो यिटन्
दक्कॆनटञ्चु जुर्रॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३0 ॥
सिरुलिडसीत पीडलॆग जिम्मुटकुन् हनुमन्तुडार्तिसो
दरुडु सुमित्रसूति दुरितम्बुलुमानुप राम नाममुं
गरुणदलिर्प मानवुलगावग बन्निन वज्रपञ्जरो
त्करमुगदा भवन्महिम दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३१ ॥
हलिकुलिशाङ्कुशध्वज शरासन शङ्खरथाङ्ग कल्पको
ज्वलजलजात रेखलनु सांशमुलै कनुपट्टुचुन्न मी
कलितपदाम्बुज द्वयमु गौतमपत्नि कॊसङ्गिनट्लु ना
तलपुन जेर्चिकावगदॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३२ ॥
जलनिधिलोनदूऱि कुल शैलमुमीटि धरित्रिगॊम्मुनं
दलवडमाटिरक्कसुनि यङ्गमुगीटिबलीन्द्रुनिन् रसा
तलमुनमाटि पार्धिवक दम्बमुगूऱ्चिन मेटिराम ना
तलपुननाटि रागदवॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३३ ॥
भण्डन भीमुडा र्तजन बान्धवुडुज्ज्वल बाणतूणको
दण्डकलाप्रचण्ड भुज ताण्डवकीर्तिकि राममूर्तिकिन्
रॆण्डव साटिदैवमिक लेडनुचुन् गडगट्टि भेरिका
डाण्ड डडाण्ड डाण्ड निनदम्बु लजाण्डमुनिण्ड मत्तवे
दण्डमु नॆक्कि चाटॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३४ ॥
अवनिज कन्नुदोयि तॊगलन्दु वॆलिङ्गॆडु सोम, जानकी
कुवलयनेत्र गब्बिचनुकॊण्डल नुण्डु घनम्ब मैधिली
नवनव यौवनम्बनु वनम्बुकुन् मददन्ति वीवॆका
दविलि भजिन्तु नॆल्लपुडु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३५ ॥
खरकरवंशजा विनु मुखण्डित भूतपिशाचढाकिनी
ज्वर परितापसर्पभय वारकमैन भवत्पदाब्ज नि
स्पुर दुरुवज्रपञ्जरमुजॊच्चिति, नीयॆड दीन मानवो
ध्धर बिरुदङ्क मेमऱुकु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३६ ॥
जुर्रॆदमीक थामृतमु जुर्रॆदमीपदकञ्जतो यमुन्
जुर्रॆद रामनाममुन जॊब्बिलुचुन्न सुधारसम्ब ने
जुर्रॆद जुर्रुजुर्रुँग रुचुल् गनुवारिपदम्बु गूर्पवे
तुर्रुलतोडि पॊत्तिडक दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३७ ॥
घोरकृतान्त वीरभट कोटिकि गुण्डॆदिगुल् दरिद्रता
कारपिशाच संहरण कार्यविनोदि विकुण्ठ मन्दिर
द्वार कवाट भेदि निजदास जनावलिकॆल्ल प्रॊद्दु नी
तारकनाम मॆन्नुकॊन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३८ ॥
विन्नपमालकिञ्चु रघुवीर नहिप्रतिलोकमन्दु ना
कन्नदुरात्मुडुं बरम कारुणिकोत्तम वेल्पुलन्दु नी
कन्न महात्मुडुं बतित कल्मषदूरुडु लेडुनाकुवि
द्वन्नुत नीवॆनाकु गति दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ३९ ॥
पॆम्पुनँदल्लिवै कलुष बृन्दसमागम मॊन्दुकुण्डु र
क्षिम्पनुदण्ड्रिवै मॆयु वसिञ्चुदु शेन्द्रिय रोगमुल् निवा
रिम्पनु वॆज्जवै कृप गुऱिञ्चि परम्बु दिरबुगाँग स
त्सम्पदलीय नीवॆगति दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४0 ॥
कुक्षिनजाण्डपं क्तुलॊन गूर्चि चराचरजन्तुकोटि सं
रक्षणसेयु तण्ड्रिवि परम्पर नी तनयुण्डनैन ना
पक्षमु नीवुगावलदॆ पापमु लॆन्नि यॊनर्चिनन् जग
द्रक्षक कर्तवीवॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४१ ॥
गद्दरियो गिहृत्कमल गन्धर सानुभवम्बुँजॆन्दु पॆ
न्निद्दवु गण्डुँ देँटि थरणीसुत कौँगिलिपञ्जरम्बुनन्
मुद्दुलुगुल्कु राचिलुक मुक्तिनिधानमुरामराँगदे
तद्दयु नेँडु नाकडकु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४२ ॥
कलियुग मर्त्यकोटिनिनु गङ्गॊन रानिविधम्बो भक्तव
त्सलतवहिम्पवो चटुल सान्द्रविपद्दश वार्धि ग्रुङ्कुचो
बिलिचिन बल्क विन्तमऱपी नरुलिट्लनरादु गाक नी
तलपुन लेदॆ सीत चॆऱ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४३ ॥
जनवर मीक थालि विनसैँपक कर्णमुलन्दु घण्टिका
निनद विनोदमुल् सुलुपुनीचुनकुन् वरमिच्चिनावु नि
न्ननयमुनम्मि कॊल्चिन महात्मुनकेमि यॊसङ्गु दोसनं
दननुत माकॊसङ्गुमय दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४४ ॥
पापमु लॊन्दुवेल रणपन्नग भूत भयज्वारादुलन्
दापद नॊन्दुवेल भरताग्रज मिम्मु भजिञ्चुवारिकिन्
ब्रापुग नीवुदम्मु डिरुपक्कियलन् जनि तद्वित्ति सं
तापमु माम्पि कातुरट दाशरथी करुणापयोनिधि. ॥ ४५ ॥
अगणित जन्मकर्मदुरि ताम्बुधिलो बहुदुःखवीचिकल्
दॆगिपडवीडलेक जगतीधर नीपदभक्ति नावचे
दगिलि तरिम्पगोरिति बदम्पबडि नदु भयम्भु माम्पवे
तगदनि चित्तमं दिडक दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४६ ॥
नेनॊनरिञ्चु पापमुल नेकमुलैननु नादुजिह्वकुं
बानकमय्यॆमीपरम पावननाममुदॊण्टि चिल्करा
माननुगावुमन्न तुदि माटकु सद्गति जॆन्दॆगावुनन्
दानि धरिम्पगोरॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४७ ॥
परधनमुल् हरिञ्चि परभामलनण्टि परान्न मब्बिनन्
मुरिपम कानिमीँदनगु मोसमॆऱुङ्गदु मानसम्बु
स्तरमदिकालकिङ्कर गदाहति पाल्पडनीक मम्मु नेदु
तऱिदरिजेर्चि काचॆदवॊ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४८ ॥
चेसिति घोरकृत्यमुलु चेसिति भागवतापचारमुल्
चेसिति नन्यदैवमुलँ जेरि भजिञ्चिन वारिपॊन्दु नेँ
जेसिन नेरमुल् दलँचि चिक्कुलँबॆट्टकुमय्ययय्य नी
दासुँडनय्य भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ४९ ॥
परुल धनम्बुँजूचिपर भामलजूचि हरिम्पगोरु म
द्गुरुतरमानसं बनॆडु दॊङ्गनुबट्टिनिरूढदास्य वि
स्फुरितविवेक पाशमुलँ जुट्टि भवच्चरणम्बने मरु
त्तरुवुनगट्टिवेयग दॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५0 ॥
सललित रामनाम जपसार मॆऱुङ्गनु गाशिकापुरी
निलयुडगानुमीचरण नीरजरेणु महाप्रभावमुं
दॆलियनहल्यगानु जगतीवर नीदगु सत्यवाक्यमुं
दलपग रावणासुरुनि तम्मुडगानु भवद्विलासमुल्
दलचिनुतिम्प नातरमॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५१ ॥
पातकुलैन मीकृपकु बात्रुलु कारॆतलञ्चिचूड ज
ट्रातिकिगल्गॆ बावन मरातिकि राज्यसुखम्बुगल्गॆ दु
र्जातिकि बुण्यमब्बॆगपि जातिमहत्त्वमुनॊन्दॆगावुनं
दातव यॆट्टिवारलकु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५२ ॥
मामक पातक वज्रमु म्राम्पनगण्यमु चित्रगुप्तुले
येमनि व्रातुरो? शमनुडेमि विधिञ्चुनॊ? कालकिङ्कर
स्तोम मॊनर्चिटेमॊ? विनजॊप्पड दिन्तकमुन्नॆदीनचिं
तामणि यॊट्लु गाचॆदवॊ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५३ ॥
दासिन चुट्टूमा शबरि? दानि दयामति नेलिनावु; नी
दासुनि दासुडा? गुहुडु तावकदास्य मॊसङ्गिनावु ने
जेसिन पापमो! विनुति चेसिनगाववु गावुमय्य! नी
दासुललोन नेनॊकँड दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५४ ॥
दीक्षवहिञ्चि नाकॊलदि दीनुल नॆन्दऱि गाचितो जग
द्रक्षक तॊल्लिया द्रुपद राजतनूज तलञ्चिनन्तने
यक्षयमैन वल्वलिडि तक्कट नामॊऱजित्तगिञ्चि
प्रत्यक्षमु गाववेमिटिकि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५५ ॥
नीलघनाभमूर्तिवगु निन्नु गनुङ्गॊनिकोरि वेडिनन्
जालमुसेसि डागॆदवु संस्तुति कॆक्किन रामनाम मे
मूलनु दाचुकोगलवु मुक्तिकि ब्रापदि पापमूलकु
द्दालमुगादॆ मायॆडल दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५६ ॥
वलदु पराकु भक्तजनवत्सल नी चरितम्बु वम्मुगा
वलदु पराकु नीबिरुदु वज्रमुवण्टिदि गान कूरके
वलदु पराकु नादुरित वार्धिकि दॆप्पवुगा मनम्बुलो
दलतुमॆका निरन्तरमु दाशरथी करुनापयोनिधी. ॥ ५७ ॥
तप्पुलॆऱुङ्ग लेक दुरितम्बुलु सेसितिनण्टि नीवुमा
यप्पवुगावु मण्टि निकनन्युलकुन् नुदुरण्टनण्टिनी
कॊप्पिदमैन दासजनु लॊप्पिन बण्टुकु बटवण्टि ना
तप्पुल कॆल्ल नीवॆगति दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५८ ॥
इतडु दुरात्मुडञ्चुजनु लॆन्नँग नाऱडिँगॊण्टिनेनॆपो
पतितुँड नण्टिनो पतित पावनमूर्तिवि नीवुगल्ल ने
नितिरुल वेँडनण्टि निह मिच्चिननिम्मुपरम्बॊसङ्गुमी
यतुलित रामनाम मधु राक्षर पालिनिरन्तरं बहृ
द्गतमनि नम्मिकॊल्चॆदनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ५९ ॥
अञ्चितमैननीदु करुणामृतसारमु नादुपैनि ब्रो
क्षिञ्चिन जालुदाननिर सिञ्चॆदनादुरितम्बु लॆल्लदू
लिञ्चॆद वैरिवर्ग मॆडलिञ्चॆद गोर्कुलनीदुबण्टनै
दञ्चॆद, गालकिङ्करुल दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६0 ॥
जलनिधु लेडुनॊक्क मॊगिँ जक्किकिदॆच्चॆशरम्बु, ऱातिनिं
पलरँग जेसॆनातिगँब दाब्जपरागमु, नी चरित्रमुं
जलजभवादि निर्जरुलु सन्नुति सेयँग लेरु गावुनं
दलपनगण्यमय्य यिदि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६१ ॥
कोतिकिशक्यमा यसुरकोटुल गॆल्वनु गाल्चॆबो निजं
बातनिमेन शीतकरुडौट दवानलु डॆट्टिविन्त? मा
सीतपतिव्रता महिमसेवकु भाग्यमुमीकटाक्षमु
धातकु शक्यमा पॊगड दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६२ ॥
भूपललाम रामरघुपुङ्गवराम त्रिलोक राज्य सं
स्धापनराम मोक्षफल दायक राम मदीय पापमुल्
पापगदय्यराम निनु ब्रस्तुति चेसॆदनय्यराम सी
तापतिराम भद्रगिरि दासरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६३ ॥
नीसहजम्बु सात्विकमु नीविडिपट्टु सुधापयोधि, प
द्मासनुडात्मजुण्डु, गमलालयनी प्रियुरालु नीकु सिं
हासनमिद्धरित्रि; गॊडुगाक समक्षुलु चन्द्रबास्करुल्
नीसुमतल्पमादिफणि नीवॆ समस्तमु गॊल्चिनट्टि नी
दासुल भाग्यमॆट्टिदय दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६४ ॥
चरणमु सोकिनट्टि शिलजव्वनिरूपगु टॊक्कविन्त, सु
स्धिरमुग नीटिपै गिरुलु देलिन दॊक्कटि विन्तगानि मी
स्मरण दनर्चुमानवुलु सद्गति जॆन्दिन दॆन्तविन्त? यी
धरनु धरात्मजारमण दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६५ ॥
दैवमु तल्लिदण्ड्रितगु दात गुरुण्डु सखुण्डु निन्नॆ का
भावन सेयुचुन्नतऱि पापमुलॆल्ल मनोविकार दु
र्भावितुजेयुचुन्नविकृपामतिवैननु कावुमी जग
त्पावनमूर्ति भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६६ ॥
वासव राज्यभोग सुख वार्धिनि देलु प्रभुत्वमब्बिना
यासकुमेर लेदु कनकाद्रिसमान धनम्बुगूर्चिनं
गासुनु वॆण्टरादु कनि कानक चेसिन पुण्यपापमुल्
वीसरबोव नीवु पदिवेलकु जालु भवम्बुनॊल्ल नी
दासुनिगाग नेलुकॊनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६७ ॥
सूरिजनुल् दयापरुलु सूनृतवादु ललुब्धमानवुल्
वेरपतिप्रताङ्गनलु विप्रुलु गोवुलु वेदमुल् महा
भारमुदाल्पगा जनुलु पावनमैन परोपकार स
त्कार मॆऱुङ्गुले रकट दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६८ ॥
वारिचरावतारमु वारिधिलो जॊऱबाऱि क्रोध वि
स्तारगुडैन या निगमतस्करवीर निशाचरेन्द्रुनिं
जेरि वधिञ्चि वेदमुल चिक्कॆडलिञ्चि विरिञ्चिकि महो
दारतनिच्चितीवॆगद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ६९ ॥
करमनुर क्तिमन्दरमु गव्वमुगा नहिराजुद्राडुगा
दॊरकॊन देवदानवुलु दुग्धपयोधिमथिञ्चुचुन्नचो
धरणिचलिम्पलोकमुलु तल्लडमन्दग गूर्ममै धरा
धरमु धरिञ्चितीवॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७0 ॥
धारुणि जापजुट्टिन विधम्बुनगैकॊनि हेमनेत्रुड
व्वारिधिलोनदागिननु वानिवधिञ्चि वराहमूर्तिवै
धारुणिदॊण्टिकै वडिनि दक्षिणशृङ्गमुन धरिञ्चि वि
स्तार मॊनर्चितीवे कद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७१ ॥
पॆटपॆटनुक्कु कम्बमुन भीकरदन्त नखान्तर प्रभा
पटलमु गप्प नुप्पतिलि भण्डनवीधि नृसिंहभीकर
स्फुटपटुशक्ति हेमकशिपु विदलिञ्चि सुरारिपट्टि नं
तटगृपजूचितीवॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७२ ॥
पदयुगलम्बु भूगगन भागमुल वॆसनूनि विक्रमा
स्पदमगुनब्बलीन्द्रुनॊक पादमुनन्दल क्रिन्दनॊत्तिमे
लॊदवजगत्त्रयम्बु बुरु हूतुनिकिय्यवटुण्डवैनचि
त्सदमलमूर्ति वीवॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७३ ॥
इरुवदियॊक्कमाऱु धरणीशुल नॆल्लवधिञ्चि तत्कले
बर रुधिर प्रवाहमुन बैतृकतर्पण मॊप्पजेसि भू
सुरवरकोटिकि मुदमु सॊप्पड भार्गवराममूर्तिवै
धरणिनॊसङ्गिती वॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७४ ॥
दुरमुन दाटकन्दुनिमि धूर्जटिविल् दुनुमाडिसीतनुं
बरिणयमन्दि तण्ड्रिपनुप घन काननभूमि केगि दु
स्तरपटुचण्ड काण्डकुलिशाहति रावणकुम्भकर्ण भू
धरमुल गूल्चिती वॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७५ ॥
अनुपमयादवान्वयसु धाब्धिसुधानिधि कृष्णमूर्तिनी
कनुजुडुगाजनिञ्चि कुजनावलिनॆल्ल नडञ्चि रोहिणी
तनयुडनङ्ग बाहुबल दर्पमुन बलराम मूर्तिवै
तनरिन वेल्पवीवॆकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७६ ॥
सुरलुनुतिम्पगा द्रिपुर सुन्दरुल वरियिम्पबुद्धरू
परयग दाल्चितीवु त्रिपुरासुरकोटि दहिञ्चुनप्पुडा
हरुनकुदोडुगा वरश रासन बाणमुखो ग्रसाधनो
त्कर मॊनरिञ्चितीवुकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७७ ॥
सङ्करदुर्गमै दुरित सङ्कुलमैन जगम्बुजूचि स
र्वङ्कषलील नु त्तम तुरङ्गमुनॆक्कि करासिबूनि वी
राङ्कविलास मॊप्प गलि काकृत सज्जनकोटिकि निरा
तङ्क मॊनर्चितीवुकद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७८ ॥
मनमुननूहपोषणलु मर्वकमुन्नॆ कफादिरोगमुल्
दनुवुननण्टि मेनिबिगि दप्पकमुन्नॆनरुण्डु मोक्ष सा
धन मॊनरिम्पँगावलयुँ दत्त्वविचारमु मानियुण्डुट
ल्तनुवुनकु विरोधमिदि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ७९ ॥
मुदमुन काटपट्टुभव मोहमद्व दिरदाङ्कुशम्बु सं
पदल कॊटारु कोरिकल पण्ट परम्बुन कादि वैरुल
न्नदन जयिञ्चुत्रोव विपदब्धिकिनावगदा सदाभव
त्सदमलनामसंस्मरण दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८0 ॥
दुरित लतानुसार भय दुःख कदम्बमु रामनामभी
करतल हेतिचेँ दॆगि वकावकलै चनकुण्ड नेर्चुने
दरिकॊनि मण्डुचुण्डु शिख दार्कॊनिन शलबादिकीटको
त्करमु विलीनमैचनवॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८१ ॥
हरिपदभक्तिनिन्द्रियज यान्वितुडुत्तमुँडिन्द्रिमम्बुलन्
मरुगक निल्पनूदिननु मध्यमुँडिन्द्रियपारश्युडै
परगिनचो निकृष्टुडनि पल्कग दुर्मतिनैन नन्नु ना
दरमुन नॆट्लुकाचॆदवॊ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८२ ॥
वनकरिचिक्कु मैनसकु पाचविकिं जॆडिपोयॆ मीनुता
विनिकिकिँजिक्कॆँजिल्वगनु वेँदुऱुँ जॆन्दॆनु लेल्लु ताविलो
मनिकिनशिञ्चॆ देटितर मायिरुमूँटिनि गॆल्वनै दुसा
धनमुलनी वॆ कावनगु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८३ ॥
करमुलुमीकुम्रॊक्कुलिड कन्नुलु मिम्मुनॆ चूड जिह्व मी
स्मरणदनर्पवीनुलुभ वत्कथलन् विनुचुण्डनास मी
यऱुतुनु बॆट्टुपूसरुल कासगॊनं बरमार्थ साधनो
त्करमिदि चेयवेकृपनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८४ ॥
चिरतरभक्ति नॊक्कतुलसीदल मर्पण चेयुवाडु खे
चरगरु डोरग प्रमुख सङ्घमुलो वॆलुगन् सधा भवत्
सुरुचिर धीन्द पादमुल बूजलॊनर्चिन वारिकॆल्लद
त्पर मरचेतिधात्रिगद दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८५ ॥
भानुडु तूर्पुनन्दुगनु पुट्टिनँ बावक चन्द्र तेजमुल्
हीनत जॆन्दिनट्लु जगदेक विराजितमैन नी पद
ध्यानमु चेयुचुन्नँ बर दैवमरीचुलडङ्गकुण्डु ने
दानव गर्व निर्दलन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८६ ॥
नीमहनीयतत्त्व रस निर्ण यबोध कथामृताब्धिलो
दामुनुग्रुङ्कुलाडकवृ थातनुकष्टमुजॆन्दि मानवुं
डी महिलोकतीर्थमुल नॆल्ल मुनिङ्गिन दुर्विकार हृ
तामसपङ्कमुल् विदुनॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८७ ॥
नीमहनीयतत्त्व रस निर्ण यबोध कथामृताब्धिलो
दामुनुग्रुङ्कुलाडकवृ थातनुकष्टमुजॆन्दि मानवुं
डी महिलोकतीर्थमुल नॆल्ल मुनिङ्गिन दुर्विकार हृ
तामसपङ्कमुल् विदुनॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८८ ॥
काञ्चन वस्तुसङ्कलित कल्मष मग्नि पुटम्बु बॆट्टॆवा
रिञ्चिनरीति नात्मनिगिडिञ्चिन दुष्कर दुर्मलत्रयं
बञ्चित भ क्तियोग दह नार्चिँदगुल्पक पायुने कन
त्काञ्चनकुण्डलाभरण दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ८९ ॥
नीसति पॆक्कु गल्मुलिडनेर्पिरि, लोक मकल्मषम्बुगा
नीसुत सेयु पावनमु निर्मित कार्यधुरीण दक्षुडै
नीसुतुडिच्चु नायुवुलु निन्न भुजिञ्चिनँ गल्गकुण्डुने
दासुलकीप्सि तार्थमुल दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९0 ॥
वारिजपत्रमन्दिडिन वारिविधम्बुन वर्तनीयमं
दारय रॊम्पिलोन दनु वण्टनि कुम्मरपुर्वुरीति सं
सारमुन मॆलङ्गुचु विचारडैपरमॊन्दुगादॆस
त्कार मॆऱिङ्गि मानवुडु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९१ ॥
ऎक्कडि तल्लिदण्ड्रि सुतुलॆक्कडि वारु कलत्र बान्धवं
बॆक्कड जीवुँडॆट्टि तनु वॆत्तिन बुट्टुनु बोवुचुन्न वा
डॊक्कडॆपाप पुणय फल मॊन्दिन नॊक्कडॆ कानराडुवे
ऱॊक्कडु वॆण्टनण्टिभव मॊल्लनयाकृप जूडुवय्यनी
टक्करि मायलन्दिडक दाशरथी करुणा पयोनिधी. ॥ ९२ ॥
दॊरसिनकायमुल्मुदिमि तोचिनँजूचिप्रभुत्वमुल्सिरु
ल्मॆऱपुलुगागजूचिमऱि मेदिनिलोँदमतोडिवारुमुं
दरुगुटजूचिचूचि तॆगु नायुवॆऱुङ्गक मोहपाशमु
लरुगनिवारिकेमिगति दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९३ ॥
सिरिगलनाँडु मैमऱचि चिक्किननाँडुदलञ्चि पुण्यमुल्
पॊरिँबॊरि सेयनैतिननि पॊक्किनँ गल्गु नॆगालिचिच्चुपैँ
गॆरलिन वेलँदप्पिकॊनि कीड्पडु वेल जलम्बु गोरि त
त्तरमुनँ द्रव्विनं गलदॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९४ ॥
जीवनमिङ्कँ बङ्कमुन जिक्किन मीनु चलिम्पकॆन्तयु
दावुननिल्चि जीवनमॆ दद्दयुँ गोरुविधम्बु चॊप्पडं
दावलमैनँगानि गुऱि तप्पनिवाँडु तरिञ्चुवाँडया
तावकभक्तियो गमुन दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९५ ॥
सरसुनिमानसम्बु सर सज्ञुडॆरुङ्गुनु मुष्कराधमुं
डॆऱिँगिग्रहिञ्चुवाडॆ कॊल नेकनिसमुँ गागदुर्दुरं
बरयँग नेर्चुनॆट्लु विक चाब्दमरन्द रसैक सौरभो
त्करमुमिलिन्द मॊन्दुक्रिय दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९६ ॥
नोँचिनतल्लिदण्ड्रिकिँ दनूभवुँडॊक्कडॆचालु मेटिचे
चाँचनिवाडु वेऱॊकँडु चाचिन लेदन किच्चुवाँडुनो
राँचिनिजम्बकानि पलु काडनिवाँडु रणम्बुलोन मेन्
दाचनिवाँडु भद्रगिरि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९७ ॥
श्रीयुतजानकीरमण चिन्नयरूप रमेशराम ना
रायण पाहिपाहियनि ब्रस्तुतिँ जेसिति नामनम्बुनं
बायक किल्बिषव्रज वि पाटनमन्दँग जेसि सत्कला
दायि फलम्बुनाकियवॆ दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९८ ॥
ऎन्तटिपुण्यमो शबरि यॆङ्गिलिगॊण्टिवि विन्तगादॆ नी
मन्तन मॆट्टिदो युडुत मैनिक राग्र नखाङ्कुरम्बुलन्
सन्तसमन्दँ जेसितिवि सत्कुलजन्ममु लेमि लॆक्क वे
दान्तमुगादॆ नी महिम दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ ९९ ॥
बॊङ्कनिवाँडॆयोग्युडरि बृन्दमु लॆत्तिन चोटजिव्वकुं
जङ्कनिवाँडॆजोदु रभसम्बुन नर्थि करम्बुसाँचिनं
गॊङ्कनिवाँडॆदात मिमुँ गॊल्चिभजिञ्चिन वाँडॆ पोनिरा
तङ्क मनस्कुँ डॆन्न गनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १00 ॥
भ्रमरमुगीटकम्बुँ गॊनि पाल्पडि झाङ्करणो कारियै
भ्रमरमुगानॊनर्चुननि पल्कुटँ जेसि भवादि दुःखसं
तमसमॆडल्चि भक्तिसहि तम्बुग जीवुनि विश्वरूप त
त्त्वमुनधरिञ्चु टेमरुदु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १0१ ॥
तरुवुलु पूचिकायलगु दक्कुसुमम्बुलु पूजगाभव
च्चरणमु सोकिदासुलकु सारमुलो धनधान्यराशुलै
करिभट घोटकाम्बर नकायमुलै विरजा समु
त्तरण मॊनर्चुजित्रमिदि दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १0२ ॥
पट्टितिभट्टरार्यगुरु पादमुलिम्मॆयिनूर्ध्व पुण्ड्रमुल्
वॆट्टितिमन्त्रराज मॊडि बॆट्टिति नय्यमकिङ्क रालिकिं
गट्टितिबॊम्ममीचरण कञ्जलन्दुँ दलम्पुपॆट्टि बो
दट्टितिँ बापपुञ्जमुल दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १0३ ॥
अल्लन लिङ्गमन्त्रि सुतुडत्रिज गोत्रजुडादिशाख कं
चॆर्ल कुलोद्बवुं दम्ब्रसिद्धिडनै भवदङ्कितम्बुगा
नॆल्लकवुल् नुतिम्प रचियिञ्चिति गोपकवीन्द्रुडन् जग
द्वल्लभ नीकु दासुडनु दाशरथी करुणापयोनिधी. ॥ १0४ ॥
దాశరథీ శతకం Dasarathi Satakam
శ్రీ రఘురామ చారుతుల-సీతాదళధామ శమక్షమాది శృం
గార గుణాభిరామ త్రిజ-గన్నుత శౌర్య రమాలలామ దు
ర్వార కబంధరాక్షస వి-రామ జగజ్జన కల్మషార్నవో
త్తారకనామ! భద్రగిరి-దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 1 ॥
రామవిశాల విక్రమ పరాజిత భార్గవరామ సద్గుణ
స్తోమ పరాంగనావిముఖ సువ్రత కామ వినీల నీరద
శ్యామ కకుత్ధ్సవంశ కలశాంభుధిసోమ సురారిదోర్భలో
ద్ధామ విరామ భద్రగిరి – దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 2 ॥
అగణిత సత్యభాష, శరణాగతపోష, దయాలసజ్ఘరీ
విగత సమస్తదోష, పృథివీసురతోష, త్రిలోక పూతకృ
ద్గగ నధునీమరంద పదకంజ విశేష మణిప్రభా ధగ
ద్ధగిత విభూష భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 3 ॥
రంగదరాతిభంగ, ఖగ రాజతురంగ, విపత్పరంపరో
త్తుంగ తమఃపతంగ, పరి తోషితరంగ, దయాంతరంగ స
త్సంగ ధరాత్మజా హృదయ సారసభృంగ నిశాచరాబ్జమా
తంగ, శుభాంగ, భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిథీ. ॥ 4 ॥
శ్రీద సనందనాది మునిసేవిత పాద దిగంతకీర్తిసం
పాద సమస్తభూత పరిపాల వినోద విషాద వల్లి కా
చ్ఛేద ధరాధినాథకుల సింధుసుధామయపాద నృత్తగీ
తాది వినోద భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 5 ॥
ఆర్యుల కెల్ల మ్రొక్కివిన తాంగుడనై రఘునాధ భట్టరా
రార్యుల కంజలెత్తి కవి సత్తములన్ వినుతించి కార్య సౌ
కర్య మెలర్పనొక్క శతకంబొన గూర్చి రచింతునేడుతా
త్పర్యమునన్ గ్రహింపుమిది దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 6 ॥
మసకొని రేంగుబండ్లుకును మౌక్తికముల్ వెలవోసినట్లుదు
ర్వ్యసనముజెంది కావ్యము దురాత్ములకిచ్చితిమోస మయ్యె నా
రసనకుँ బూతవృత్తిసుక రంబుగ జేకురునట్లు వాక్సుధా
రసములుచిల్క బద్యుముఖ రంగమునందునటింప వయ్యసం
తసము జెంది భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 7 ॥
శ్రీరమణీయహార యతసీ కుసుమాభశరీర, భక్త మం
దార, వికారదూర, పరతత్త్వవిహార త్రిలోక చేతనో
దార, దురంత పాతక వితాన విదూర, ఖరాది దైత్యకాం
తార కుఠార భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 8 ॥
దురితలతాలవిత్ర, ఖర దూషణకాననవీతిహొత్ర, భూ
భరణకళావిచిత్ర, భవ బంధవిమోచనసూత్ర, చారువి
స్ఫురదరవిందనేత్ర, ఘన పుణ్యచరిత్ర, వినీలభూరికం
ధరసమగాత్ర, భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 9 ॥
కనకవిశాలచేల భవకానన శాతకుఠారధార స
జ్జనపరిపాలశీల దివిజస్తుత సద్గుణ కాండకాండ సం
జనిత పరాక్రమక్రమ విశారద శారద కందకుంద చం
దన ఘనసార సారయశ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 10 ॥
శ్రీ రఘువంశ తోయధికి శీతమయూఖుడవైన నీ పవి
త్రోరుపదాబ్జముల్ వికసితోత్పల చంపక వృత్తమాధురీ
పూరితవాక్ప్రసూనముల బూజలొనర్చెద జిత్తగింపుమీ
తారకనామ భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 11 ॥
గురుతరమైన కావ్యరస గుంభనకబ్బుర మందిముష్కరుల్
సరసులమాడ్కి సంతసిల జూలుదురోటుశశాంక చంద్రికాం
కురముల కిందు కాంతమణి కోటిస్రవించిన భంగివింధ్యభూ
ధరమున జాఱునే శిలలు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 12 ॥
తరణికులేశ నానుడుల దప్పులు గల్గిన నీదునామ స
ద్విరచితమైన కావ్యము పవిత్రముగాదె వియన్నదీజలం
బరగుచువంకయైన మలినాకృతి బాఱిన దన్మహత్వముం
దరమె గణింప నెవ్వరికి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 13 ॥
దారుణపాత కాబ్ధికి సదా బడబాగ్ని భవాకులార్తివి
స్తారదవానలార్చికి సుధారసవృష్టి దురంత దుర్మతా
చారభయంక రాటవికి జండకఠోరకుఠారధార నీ
తారకనామ మెన్నుకొన దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 14 ॥
హరునకు నవ్విభీషణునక ద్రిజకుం దిరుమంత్ర రాజమై
కరికి సహల్యకుం ద్రుపదకన్యకు నార్తిహరించుచుట్టమై
పరగినయట్టి నీపతిత పావననామము జిహ్వపై నిరం
తరము నటింపజేయుమిక దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 15 ॥
ముప్పున గాలకింకరులు ముంగిటవచ్చిన వేళ, రోగముల్
గొప్పరమైనచో గఫము కుత్తుక నిండినవేళ, బాంధవుల్
గప్పినవేళ, మీస్మరణ గల్గునొ గల్గదొ నాటి కిప్పుడే
తప్పకచేతు మీభజన దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 16 ॥
పరమదయానిధే పతితపావననామ హరే యటంచు సు
స్ధిరమతులై సదాభజన సేయు మహాత్ముల పాదధూళి నా
శిరమునదాల్తుమీరటకు జేరకుడంచు యముండు కింకరో
త్కరముల కాన బెట్టునట దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 17 ॥
అజునకు తండ్రివయ్యు సనకాదులకుం బరతత్త్వమయ్యుస
ద్ద్విజమునికోటికెల్లబర దేతవయ్యు దినేశవంశ భూ
భుజులకు మేటివయ్యుబరి పూర్ణుడవై వెలిగొందుపక్షిరా
డ్ధ్వజమిము బ్రస్తుతించెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 18 ॥
పండిత రక్షకుం డఖిల పాపవిమొచను డబ్జసంభవా
ఖండల పూజితుండు దశకంఠ విలుంఠన చండకాండకో
దండకళా ప్రవీణుడవు తావక కీర్తి వధూటి కిత్తుపూ
దండలు గాగ నా కవిత దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 19 ॥
శ్రీరమ సీతగాగ నిజసేవక బృందము వీరవైష్ణవా
చార జవంబుగాగ విరజానది గౌతమిగా వికుంఠ ము
న్నారయభద్ర శైలశిఖరాగ్రముగాగ వసించు చేతనో
ద్ధారకుడైన విష్ణుడవు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 20 ॥
కంటి నదీతటంబుబొడగంటిని భద్రనగాధివాసమున్
గంటి నిలాతనూజనురు కార్ముక మార్గణశంఖచక్రముల్
గంటిని మిమ్ము లక్ష్మణుని గంటి కృతార్ధుడ నైతి నో జగ
త్కంటక దైత్యనిర్ధళన దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 21 ॥
హలికునకున్ హలాగ్రమున నర్ధము సేకురుభంగి దప్పిచే
నలమట జెందువానికి సురాపగలో జల మబ్బినట్లు దు
ర్మలిన మనోవికారియగు మర్త్యుని నన్నొడగూర్చి నీపయిన్
దలవు ఘటింపజేసితివె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 22 ॥
కొంజకతర్క వాదమను గుద్దలిచే బరతత్త్వభూస్ధలిన్
రంజిలద్రవ్వి కంగొనని రామనిధానము నేడు భక్తిసి
ద్ధాంజనమందుహస్తగత మయ్యెబళీ యనగా మదీయహృ
త్కంజమునన్ వసింపుమిక దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 23 ॥
రాముँడు ఘోర పాతక విరాముడు సద్గుణకల్పవల్లికా
రాముడు షడ్వికారజయ రాముడు సాధుజనావనవ్రతో
ద్దాముँడు రాముడే పరమ దైవము మాకని మీ యడుంగు గెం
దామరలే భుజించెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 24 ॥
చక్కెరమానివేముదిన జాలినకైవడి మానవాధముల్
పెక్కురు ఒక్క దైవముల వేమఱుగొల్చెదరట్ల కాదయా
మ్రొక్కిననీకు మ్రొక్కవలె మోక్ష మొసంగిన నీవయీవలెం
దక్కినమాట లేమిటికి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 25 ॥
‘రా’ కలుషంబులెల్ల బయలంబడద్రోచిన ‘మా’క వాటమై
డీకొనిప్రోవుచునిక్క మనిధీయుతులెన్నँదదీయ వర్ణముల్
గైకొని భక్తి చే నుడువँగానరు గాక విపత్పరంపరల్
దాకొనునే జగజ్జనుల దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 26 ॥
రామహరే కకుత్ధ్సకుల రామహరే రఘురామరామశ్రీ
రామహరేయటంచు మది రంజిల భేకగళంబులీల నీ
నామము సంస్మరించిన జనంబు భవంబెడబాసి తత్పరం
ధామ నివాసులౌదురట దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 27 ॥
చక్కెర లప్పకున్ మిగుల జవ్వని కెంజిగురాకు మోవికిం
జొక్కపుజుంటి తేనియకు జొక్కులుచుంగన లేరు గాక నే
డక్కట రామనామమధు రామృతమానుటకంటె సౌఖ్యామా
తక్కినమాధురీ మహిమ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 28 ॥
అండజవాహ నిన్ను హృదయంబుననమ్మిన వారి పాపముల్
కొండలవంటివైన వెసగూలి నశింపక యున్నె సంత తా
ఖండలవైభవోన్నతులు గల్గకమానునె మోక్ష లక్ష్మికై
దండయొసంగకున్నె తుద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 29 ॥
చిక్కనిపాలపై మిసిమి జెందిన మీగడ పంచదారతో
మెక్కినభంగి మీవిమల మేచకరూప సుధారసంబు నా
మక్కువ పళ్లేరంబున సమాహిత దాస్యము నేటిదో యిటన్
దక్కెనటంచు జుర్రెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 30 ॥
సిరులిడసీత పీడలెగ జిమ్ముటకున్ హనుమంతుడార్తిసో
దరుడు సుమిత్రసూతి దురితంబులుమానుప రామ నామముం
గరుణదలిర్ప మానవులగావగ బన్నిన వజ్రపంజరో
త్కరముగదా భవన్మహిమ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 31 ॥
హలికులిశాంకుశధ్వజ శరాసన శంఖరథాంగ కల్పకో
జ్వలజలజాత రేఖలను సాంశములై కనుపట్టుచున్న మీ
కలితపదాంబుజ ద్వయము గౌతమపత్ని కొసంగినట్లు నా
తలపున జేర్చికావగదె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 32 ॥
జలనిధిలోనదూఱి కుల శైలముమీటి ధరిత్రిగొమ్మునం
దలవడమాటిరక్కసుని యంగముగీటిబలీంద్రునిన్ రసా
తలమునమాటి పార్ధివక దంబముగూఱ్చిన మేటిరామ నా
తలపుననాటి రాగదవె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 33 ॥
భండన భీముడా ర్తజన బాంధవుడుజ్జ్వల బాణతూణకో
దండకళాప్రచండ భుజ తాండవకీర్తికి రామమూర్తికిన్
రెండవ సాటిదైవమిక లేడనుచున్ గడగట్టి భేరికా
డాండ డడాండ డాండ నినదంబు లజాండమునిండ మత్తవే
దండము నెక్కి చాటెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 34 ॥
అవనిజ కన్నుదోయి తొగలందు వెలింగెడు సోమ, జానకీ
కువలయనేత్ర గబ్బిచనుకొండల నుండు ఘనంబ మైధిలీ
నవనవ యౌవనంబను వనంబుకున్ మదదంతి వీవెకా
దవిలి భజింతు నెల్లపుడు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 35 ॥
ఖరకరవంశజా విను ముఖండిత భూతపిశాచఢాకినీ
జ్వర పరితాపసర్పభయ వారకమైన భవత్పదాబ్జ ని
స్పుర దురువజ్రపంజరముజొచ్చితి, నీయెడ దీన మానవో
ధ్ధర బిరుదంక మేమఱుకు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 36 ॥
జుర్రెదమీక థామృతము జుర్రెదమీపదకంజతో యమున్
జుర్రెద రామనామమున జొబ్బిలుచున్న సుధారసంబ నే
జుర్రెద జుర్రుజుర్రుँగ రుచుల్ గనువారిపదంబు గూర్పవే
తుర్రులతోడి పొత్తిడక దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 37 ॥
ఘోరకృతాంత వీరభట కోటికి గుండెదిగుల్ దరిద్రతా
కారపిశాచ సంహరణ కార్యవినోది వికుంఠ మందిర
ద్వార కవాట భేది నిజదాస జనావళికెల్ల ప్రొద్దు నీ
తారకనామ మెన్నుకొన దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 38 ॥
విన్నపమాలకించు రఘువీర నహిప్రతిలోకమందు నా
కన్నదురాత్ముడుం బరమ కారుణికోత్తమ వేల్పులందు నీ
కన్న మహాత్ముడుం బతిత కల్మషదూరుడు లేడునాకువి
ద్వన్నుత నీవెనాకు గతి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 39 ॥
పెంపునँదల్లివై కలుష బృందసమాగమ మొందుకుండు ర
క్షింపనుదండ్రివై మెయు వసించుదు శేంద్రియ రోగముల్ నివా
రింపను వెజ్జవై కృప గుఱించి పరంబు దిరబుగాँగ స
త్సంపదలీయ నీవెగతి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 40 ॥
కుక్షినజాండపం క్తులొన గూర్చి చరాచరజంతుకోటి సం
రక్షణసేయు తండ్రివి పరంపర నీ తనయుండనైన నా
పక్షము నీవుగావలదె పాపము లెన్ని యొనర్చినన్ జగ
ద్రక్షక కర్తవీవెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 41 ॥
గద్దరియో గిహృత్కమల గంధర సానుభవంబుँజెందు పె
న్నిద్దవు గండుँ దేँటి థరణీసుత కౌँగిలిపంజరంబునన్
ముద్దులుగుల్కు రాచిలుక ముక్తినిధానమురామరాँగదే
తద్దయు నేँడు నాకడకు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 42 ॥
కలియుగ మర్త్యకోటినిను గంగొన రానివిధంబో భక్తవ
త్సలతవహింపవో చటుల సాంద్రవిపద్దశ వార్ధి గ్రుంకుచో
బిలిచిన బల్క వింతమఱపీ నరులిట్లనరాదు గాక నీ
తలపున లేదె సీత చెఱ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 43 ॥
జనవర మీక థాలి వినసైँపక కర్ణములందు ఘంటికా
నినద వినోదముల్ సులుపునీచునకున్ వరమిచ్చినావు ని
న్ననయమునమ్మి కొల్చిన మహాత్మునకేమి యొసంగు దోసనం
దననుత మాకొసంగుమయ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 44 ॥
పాపము లొందువేళ రణపన్నగ భూత భయజ్వారాదులన్
దాపద నొందువేళ భరతాగ్రజ మిమ్ము భజించువారికిన్
బ్రాపుగ నీవుదమ్ము డిరుపక్కియలన్ జని తద్విత్తి సం
తాపము మాంపి కాతురట దాశరథీ కరుణాపయోనిధి. ॥ 45 ॥
అగణిత జన్మకర్మదురి తాంబుధిలో బహుదుఃఖవీచికల్
దెగిపడవీడలేక జగతీధర నీపదభక్తి నావచే
దగిలి తరింపగోరితి బదంపబడి నదు భయంభు మాంపవే
తగదని చిత్తమం దిడక దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 46 ॥
నేనొనరించు పాపముల నేకములైనను నాదుజిహ్వకుం
బానకమయ్యెమీపరమ పావననామముదొంటి చిల్కరా
మాననుగావుమన్న తుది మాటకు సద్గతి జెందెగావునన్
దాని ధరింపగోరెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 47 ॥
పరధనముల్ హరించి పరభామలనంటి పరాన్న మబ్బినన్
మురిపమ కానిమీँదనగు మోసమెఱుంగదు మానసంబు
స్తరమదికాలకింకర గదాహతి పాల్పడనీక మమ్ము నేదు
తఱిదరిజేర్చి కాచెదవొ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 48 ॥
చేసితి ఘోరకృత్యములు చేసితి భాగవతాపచారముల్
చేసితి నన్యదైవములँ జేరి భజించిన వారిపొందు నేँ
జేసిన నేరముల్ దలँచి చిక్కులँబెట్టకుమయ్యయయ్య నీ
దాసుँడనయ్య భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 49 ॥
పరుల ధనంబుँజూచిపర భామలజూచి హరింపగోరు మ
ద్గురుతరమానసం బనెడు దొంగనుబట్టినిరూఢదాస్య వి
స్ఫురితవివేక పాశములँ జుట్టి భవచ్చరణంబనే మరు
త్తరువునగట్టివేయగ దె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 50 ॥
సలలిత రామనామ జపసార మెఱుంగను గాశికాపురీ
నిలయుడగానుమీచరణ నీరజరేణు మహాప్రభావముం
దెలియనహల్యగాను జగతీవర నీదగు సత్యవాక్యముం
దలపగ రావణాసురుని తమ్ముడగాను భవద్విలాసముల్
దలచినుతింప నాతరమె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 51 ॥
పాతకులైన మీకృపకు బాత్రులు కారెతలంచిచూడ జ
ట్రాతికిగల్గె బావన మరాతికి రాజ్యసుఖంబుగల్గె దు
ర్జాతికి బుణ్యమబ్బెగపి జాతిమహత్త్వమునొందెగావునం
దాతవ యెట్టివారలకు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 52 ॥
మామక పాతక వజ్రము మ్రాంపనగణ్యము చిత్రగుప్తులే
యేమని వ్రాతురో? శమనుడేమి విధించునొ? కాలకింకర
స్తోమ మొనర్చిటేమొ? వినజొప్పడ దింతకమున్నెదీనచిం
తామణి యొట్లు గాచెదవొ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 53 ॥
దాసిన చుట్టూమా శబరి? దాని దయామతి నేలినావు; నీ
దాసుని దాసుడా? గుహుడు తావకదాస్య మొసంగినావు నే
జేసిన పాపమో! వినుతి చేసినగావవు గావుమయ్య! నీ
దాసులలోన నేనొకँడ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 54 ॥
దీక్షవహించి నాకొలది దీనుల నెందఱి గాచితో జగ
ద్రక్షక తొల్లియా ద్రుపద రాజతనూజ తలంచినంతనే
యక్షయమైన వల్వలిడి తక్కట నామొఱజిత్తగించి
ప్రత్యక్షము గావవేమిటికి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 55 ॥
నీలఘనాభమూర్తివగు నిన్ను గనుంగొనికోరి వేడినన్
జాలముసేసి డాగెదవు సంస్తుతి కెక్కిన రామనామ మే
మూలను దాచుకోగలవు ముక్తికి బ్రాపది పాపమూలకు
ద్దాలముగాదె మాయెడల దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 56 ॥
వలదు పరాకు భక్తజనవత్సల నీ చరితంబు వమ్ముగా
వలదు పరాకు నీబిరుదు వజ్రమువంటిది గాన కూరకే
వలదు పరాకు నాదురిత వార్ధికి దెప్పవుగా మనంబులో
దలతుమెకా నిరంతరము దాశరథీ కరునాపయోనిధీ. ॥ 57 ॥
తప్పులెఱుంగ లేక దురితంబులు సేసితినంటి నీవుమా
యప్పవుగావు మంటి నికనన్యులకున్ నుదురంటనంటినీ
కొప్పిదమైన దాసజను లొప్పిన బంటుకు బటవంటి నా
తప్పుల కెల్ల నీవెగతి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 58 ॥
ఇతడు దురాత్ముడంచుజను లెన్నँగ నాఱడిँగొంటినేనెపో
పతితుँడ నంటినో పతిత పావనమూర్తివి నీవుగల్ల నే
నితిరుల వేँడనంటి నిహ మిచ్చిననిమ్ముపరంబొసంగుమీ
యతులిత రామనామ మధు రాక్షర పాళినిరంతరం బహృ
ద్గతమని నమ్మికొల్చెదను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 59 ॥
అంచితమైననీదు కరుణామృతసారము నాదుపైని బ్రో
క్షించిన జాలుదాననిర సించెదనాదురితంబు లెల్లదూ
లించెద వైరివర్గ మెడలించెద గోర్కులనీదుబంటనై
దంచెద, గాలకింకరుల దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 60 ॥
జలనిధు లేడునొక్క మొగిँ జక్కికిదెచ్చెశరంబు, ఱాతినిం
పలరँగ జేసెనాతిగँబ దాబ్జపరాగము, నీ చరిత్రముం
జలజభవాది నిర్జరులు సన్నుతి సేయँగ లేరు గావునం
దలపనగణ్యమయ్య యిది దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 61 ॥
కోతికిశక్యమా యసురకోటుల గెల్వను గాల్చెబో నిజం
బాతనిమేన శీతకరుడౌట దవానలు డెట్టివింత? మా
సీతపతివ్రతా మహిమసేవకు భాగ్యముమీకటాక్షము
ధాతకు శక్యమా పొగడ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 62 ॥
భూపలలామ రామరఘుపుంగవరామ త్రిలోక రాజ్య సం
స్ధాపనరామ మోక్షఫల దాయక రామ మదీయ పాపముల్
పాపగదయ్యరామ నిను బ్రస్తుతి చేసెదనయ్యరామ సీ
తాపతిరామ భద్రగిరి దాసరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 63 ॥
నీసహజంబు సాత్వికము నీవిడిపట్టు సుధాపయోధి, ప
ద్మాసనుడాత్మజుండు, గమలాలయనీ ప్రియురాలు నీకు సిం
హాసనమిద్ధరిత్రి; గొడుగాక సమక్షులు చంద్రబాస్కరుల్
నీసుమతల్పమాదిఫణి నీవె సమస్తము గొల్చినట్టి నీ
దాసుల భాగ్యమెట్టిదయ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 64 ॥
చరణము సోకినట్టి శిలజవ్వనిరూపగు టొక్కవింత, సు
స్ధిరముగ నీటిపై గిరులు దేలిన దొక్కటి వింతగాని మీ
స్మరణ దనర్చుమానవులు సద్గతి జెందిన దెంతవింత? యీ
ధరను ధరాత్మజారమణ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 65 ॥
దైవము తల్లిదండ్రితగు దాత గురుండు సఖుండు నిన్నె కా
భావన సేయుచున్నతఱి పాపములెల్ల మనోవికార దు
ర్భావితుజేయుచున్నవికృపామతివైనను కావుమీ జగ
త్పావనమూర్తి భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 66 ॥
వాసవ రాజ్యభోగ సుఖ వార్ధిని దేలు ప్రభుత్వమబ్బినా
యాసకుమేర లేదు కనకాద్రిసమాన ధనంబుగూర్చినం
గాసును వెంటరాదు కని కానక చేసిన పుణ్యపాపముల్
వీసరబోవ నీవు పదివేలకు జాలు భవంబునొల్ల నీ
దాసునిగాగ నేలుకొను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 67 ॥
సూరిజనుల్ దయాపరులు సూనృతవాదు లలుబ్ధమానవుల్
వేరపతిప్రతాంగనలు విప్రులు గోవులు వేదముల్ మహా
భారముదాల్పగా జనులు పావనమైన పరోపకార స
త్కార మెఱుంగులే రకట దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 68 ॥
వారిచరావతారము వారిధిలో జొఱబాఱి క్రోధ వి
స్తారగుడైన యా నిగమతస్కరవీర నిశాచరేంద్రునిం
జేరి వధించి వేదముల చిక్కెడలించి విరించికి మహో
దారతనిచ్చితీవెగద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 69 ॥
కరమనుర క్తిమందరము గవ్వముగా నహిరాజుద్రాడుగా
దొరకొన దేవదానవులు దుగ్ధపయోధిమథించుచున్నచో
ధరణిచలింపలోకములు తల్లడమందగ గూర్మమై ధరా
ధరము ధరించితీవెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 70 ॥
ధారుణి జాపజుట్టిన విధంబునగైకొని హేమనేత్రుడ
వ్వారిధిలోనదాగినను వానివధించి వరాహమూర్తివై
ధారుణిదొంటికై వడిని దక్షిణశృంగమున ధరించి వి
స్తార మొనర్చితీవే కద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 71 ॥
పెటపెటనుక్కు కంబమున భీకరదంత నఖాంతర ప్రభా
పటలము గప్ప నుప్పతిలి భండనవీధి నృసింహభీకర
స్ఫుటపటుశక్తి హేమకశిపు విదళించి సురారిపట్టి నం
తటగృపజూచితీవెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 72 ॥
పదయుగళంబు భూగగన భాగముల వెసనూని విక్రమా
స్పదమగునబ్బలీంద్రునొక పాదమునందల క్రిందనొత్తిమే
లొదవజగత్త్రయంబు బురు హూతునికియ్యవటుండవైనచి
త్సదమలమూర్తి వీవెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 73 ॥
ఇరువదియొక్కమాఱు ధరణీశుల నెల్లవధించి తత్కళే
బర రుధిర ప్రవాహమున బైతృకతర్పణ మొప్పజేసి భూ
సురవరకోటికి ముదము సొప్పడ భార్గవరామమూర్తివై
ధరణినొసంగితీ వెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 74 ॥
దురమున దాటకందునిమి ధూర్జటివిల్ దునుమాడిసీతనుం
బరిణయమంది తండ్రిపనుప ఘన కాననభూమి కేగి దు
స్తరపటుచండ కాండకులిశాహతి రావణకుంభకర్ణ భూ
ధరముల గూల్చితీ వెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 75 ॥
అనుపమయాదవాన్వయసు ధాబ్ధిసుధానిధి కృష్ణమూర్తినీ
కనుజుడుగాజనించి కుజనావళినెల్ల నడంచి రోహిణీ
తనయుడనంగ బాహుబల దర్పమున బలరామ మూర్తివై
తనరిన వేల్పవీవెకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 76 ॥
సురలునుతింపగా ద్రిపుర సుందరుల వరియింపబుద్ధరూ
పరయగ దాల్చితీవు త్రిపురాసురకోటి దహించునప్పుడా
హరునకుదోడుగా వరశ రాసన బాణముఖో గ్రసాధనో
త్కర మొనరించితీవుకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 77 ॥
సంకరదుర్గమై దురిత సంకులమైన జగంబుజూచి స
ర్వంకషలీల ను త్తమ తురంగమునెక్కి కరాసిబూని వీ
రాంకవిలాస మొప్ప గలి కాకృత సజ్జనకోటికి నిరా
తంక మొనర్చితీవుకద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 78 ॥
మనముననూహపోషణలు మర్వకమున్నె కఫాదిరోగముల్
దనువుననంటి మేనిబిగి దప్పకమున్నెనరుండు మోక్ష సా
ధన మొనరింపँగావలయుँ దత్త్వవిచారము మానియుండుట
ల్తనువునకు విరోధమిది దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 79 ॥
ముదమున కాటపట్టుభవ మోహమద్వ దిరదాంకుశంబు సం
పదల కొటారు కోరికల పంట పరంబున కాది వైరుల
న్నదన జయించుత్రోవ విపదబ్ధికినావగదా సదాభవ
త్సదమలనామసంస్మరణ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 80 ॥
దురిత లతానుసార భయ దుఃఖ కదంబము రామనామభీ
కరతల హేతిచేँ దెగి వకావకలై చనకుండ నేర్చునే
దరికొని మండుచుండు శిఖ దార్కొనిన శలబాదికీటకో
త్కరము విలీనమైచనవె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 81 ॥
హరిపదభక్తినింద్రియజ యాన్వితుడుత్తముँడింద్రిమంబులన్
మరుగక నిల్పనూదినను మధ్యముँడింద్రియపారశ్యుడై
పరగినచో నికృష్టుడని పల్కగ దుర్మతినైన నన్ను నా
దరమున నెట్లుకాచెదవొ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 82 ॥
వనకరిచిక్కు మైనసకు పాచవికిం జెడిపోయె మీనుతా
వినికికిँజిక్కెँజిల్వగను వేँదుఱుँ జెందెను లేళ్ళు తావిలో
మనికినశించె దేటితర మాయిరుమూँటిని గెల్వనై దుసా
ధనములనీ వె కావనగు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 83 ॥
కరములుమీకుమ్రొక్కులిడ కన్నులు మిమ్మునె చూడ జిహ్వ మీ
స్మరణదనర్పవీనులుభ వత్కథలన్ వినుచుండనాస మీ
యఱుతును బెట్టుపూసరుల కాసగొనం బరమార్థ సాధనో
త్కరమిది చేయవేకృపను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 84 ॥
చిరతరభక్తి నొక్కతుళసీదళ మర్పణ చేయువాడు ఖే
చరగరు డోరగ ప్రముఖ సంఘములో వెలుగన్ సధా భవత్
సురుచిర ధీంద పాదముల బూజలొనర్చిన వారికెల్లద
త్పర మరచేతిధాత్రిగద దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 85 ॥
భానుడు తూర్పునందుగను పుట్టినँ బావక చంద్ర తేజముల్
హీనత జెందినట్లు జగదేక విరాజితమైన నీ పద
ధ్యానము చేయుచున్నँ బర దైవమరీచులడంగకుండు నే
దానవ గర్వ నిర్దళన దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 86 ॥
నీమహనీయతత్త్వ రస నిర్ణ యబోధ కథామృతాబ్ధిలో
దామునుగ్రుంకులాడకవృ థాతనుకష్టముజెంది మానవుం
డీ మహిలోకతీర్థముల నెల్ల మునింగిన దుర్వికార హృ
తామసపంకముల్ విదునె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 87 ॥
నీమహనీయతత్త్వ రస నిర్ణ యబోధ కథామృతాబ్ధిలో
దామునుగ్రుంకులాడకవృ థాతనుకష్టముజెంది మానవుం
డీ మహిలోకతీర్థముల నెల్ల మునింగిన దుర్వికార హృ
తామసపంకముల్ విదునె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 88 ॥
కాంచన వస్తుసంకలిత కల్మష మగ్ని పుటంబు బెట్టెవా
రించినరీతి నాత్మనిగిడించిన దుష్కర దుర్మలత్రయం
బంచిత భ క్తియోగ దహ నార్చిँదగుల్పక పాయునే కన
త్కాంచనకుండలాభరణ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 89 ॥
నీసతి పెక్కు గల్ములిడనేర్పిరి, లోక మకల్మషంబుగా
నీసుత సేయు పావనము నిర్మిత కార్యధురీణ దక్షుడై
నీసుతుడిచ్చు నాయువులు నిన్న భుజించినँ గల్గకుండునే
దాసులకీప్సి తార్థముల దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 90 ॥
వారిజపత్రమందిడిన వారివిధంబున వర్తనీయమం
దారయ రొంపిలోన దను వంటని కుమ్మరపుర్వురీతి సం
సారమున మెలంగుచు విచారడైపరమొందుగాదెస
త్కార మెఱింగి మానవుడు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 91 ॥
ఎక్కడి తల్లిదండ్రి సుతులెక్కడి వారు కళత్ర బాంధవం
బెక్కడ జీవుँడెట్టి తను వెత్తిన బుట్టును బోవుచున్న వా
డొక్కడెపాప పుణయ ఫల మొందిన నొక్కడె కానరాడువే
ఱొక్కడు వెంటనంటిభవ మొల్లనయాకృప జూడువయ్యనీ
టక్కరి మాయలందిడక దాశరథీ కరుణా పయోనిధీ. ॥ 92 ॥
దొరసినకాయముల్ముదిమి తోచినँజూచిప్రభుత్వముల్సిరు
ల్మెఱపులుగాగజూచిమఱి మేదినిలోँదమతోడివారుముం
దరుగుటజూచిచూచి తెగు నాయువెఱుంగక మోహపాశము
ళరుగనివారికేమిగతి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 93 ॥
సిరిగలనాँడు మైమఱచి చిక్కిననాँడుదలంచి పుణ్యముల్
పొరిँబొరి సేయనైతినని పొక్కినँ గల్గు నెగాలిచిచ్చుపైँ
గెరలిన వేళँదప్పికొని కీడ్పడు వేళ జలంబు గోరి త
త్తరమునँ ద్రవ్వినం గలదె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 94 ॥
జీవనమింకँ బంకమున జిక్కిన మీను చలింపకెంతయు
దావుననిల్చి జీవనమె దద్దయుँ గోరువిధంబు చొప్పడం
దావలమైనँగాని గుఱి తప్పనివాँడు తరించువాँడయా
తావకభక్తియో గమున దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 95 ॥
సరసునిమానసంబు సర సజ్ఞుడెరుంగును ముష్కరాధముం
డెఱిँగిగ్రహించువాడె కొల నేకనిసముँ గాగదుర్దురం
బరయँగ నేర్చునెట్లు విక చాబ్దమరంద రసైక సౌరభో
త్కరముమిళింద మొందుక్రియ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 96 ॥
నోँచినతల్లిదండ్రికిँ దనూభవుँడొక్కడెచాలు మేటిచే
చాँచనివాడు వేఱొకँడు చాచిన లేదన కిచ్చువాँడునో
రాँచినిజంబకాని పలు కాడనివాँడు రణంబులోన మేన్
దాచనివాँడు భద్రగిరి దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 97 ॥
శ్రీయుతజానకీరమణ చిన్నయరూప రమేశరామ నా
రాయణ పాహిపాహియని బ్రస్తుతిँ జేసితి నామనంబునం
బాయక కిల్బిషవ్రజ వి పాటనమందँగ జేసి సత్కళా
దాయి ఫలంబునాకియవె దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 98 ॥
ఎంతటిపుణ్యమో శబరి యెంగిలిగొంటివి వింతగాదె నీ
మంతన మెట్టిదో యుడుత మైనిక రాగ్ర నఖాంకురంబులన్
సంతసమందँ జేసితివి సత్కులజన్మము లేమి లెక్క వే
దాంతముగాదె నీ మహిమ దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 99 ॥
బొంకనివాँడెయోగ్యుడరి బృందము లెత్తిన చోటజివ్వకుం
జంకనివాँడెజోదు రభసంబున నర్థి కరంబుసాँచినం
గొంకనివాँడెదాత మిముँ గొల్చిభజించిన వాँడె పోనిరా
తంక మనస్కుँ డెన్న గను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 100 ॥
భ్రమరముగీటకంబుँ గొని పాల్పడి ఝాంకరణో కారియై
భ్రమరముగానొనర్చునని పల్కుటँ జేసి భవాది దుఃఖసం
తమసమెడల్చి భక్తిసహి తంబుగ జీవుని విశ్వరూప త
త్త్వమునధరించు టేమరుదు దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 101 ॥
తరువులు పూచికాయలగు దక్కుసుమంబులు పూజగాభవ
చ్చరణము సోకిదాసులకు సారములో ధనధాన్యరాశులై
కరిభట ఘోటకాంబర నకాయములై విరజా సము
త్తరణ మొనర్చుజిత్రమిది దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 102 ॥
పట్టితిభట్టరార్యగురు పాదములిమ్మెయినూర్ధ్వ పుండ్రముల్
వెట్టితిమంత్రరాజ మొడి బెట్టితి నయ్యమకింక రాలికిం
గట్టితిబొమ్మమీచరణ కంజలందుँ దలంపుపెట్టి బో
దట్టితిँ బాపపుంజముల దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 103 ॥
అల్లన లింగమంత్రి సుతుడత్రిజ గోత్రజుడాదిశాఖ కం
చెర్ల కులోద్బవుం దంబ్రసిద్ధిడనై భవదంకితంబుగా
నెల్లకవుల్ నుతింప రచియించితి గోపకవీంద్రుడన్ జగ
ద్వల్లభ నీకు దాసుడను దాశరథీ కరుణాపయోనిధీ. ॥ 104 ॥
दाशरथी शतकम्, एक अद्भुत काव्य है जो न केवल भक्तों को श्रीराम की भक्ति में लीन करती है, बल्कि विभिन्न जीवन मूल्य भी सिखाती है। यह कविता आज भी पाठकों के हृदय में अपने स्थान को बनाए रखती है और भारतीय साहित्य में एक अमूल्य धरोहर के रूप में पहचान रखती है। दाशरथी कृष्णमाचार्य का यह कार्य भारतीय धर्म और संस्कृति का गहन अध्ययन करने वालों के लिए प्रेरणादायक है।