Agni Suktam In Hindi
अग्नि सूक्तम्(Agni Suktam) ऋग्वेद का प्रथम सूक्त है, जो कि संहिता के प्रथम मंडल में स्थित है। इसे ऋषि माधुच्छन्दा वैश्वामित्र द्वारा रचित माना जाता है। यह सूक्त अग्निदेव की स्तुति करता है, जो वैदिक परंपरा में ईश्वर और मनुष्यों के बीच माध्यम माने जाते हैं।
अग्नि का महत्व
वैदिक परंपरा में अग्नि देवता को बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अग्नि को यज्ञों में प्रधान देवता माना जाता है, क्योंकि वह देवताओं तक हवि (हवन सामग्री) पहुँचाने का कार्य करते हैं। अग्नि तीनों लोकों (पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग) में विद्यमान हैं और वे सभी यज्ञों के साक्षी होते हैं। अग्नि को जीवनदायक शक्ति, पवित्रता, ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक माना गया है।
अग्नि सूक्त के मंत्रों की संरचना
अग्नि सूक्त कुल 9 ऋचाओं (मंत्रों) का संग्रह है। इन ऋचाओं में अग्नि देव की महिमा, उनकी कृपा और उनके यज्ञ में योगदान को दर्शाया गया है। प्रत्येक मंत्र में अग्नि को विभिन्न उपाधियों से संबोधित किया गया है, जैसे—
- ऋत्विज् – जो यज्ञों में मुख्य पुरोहित होते हैं।
- होता – जो यज्ञ में आहुतियों को ग्रहण करते हैं।
- प्रिय देवता – जो देवताओं को हवि प्रदान करते हैं।
- सत्यधर्मा – जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले हैं।
- उत्तम पथ प्रदर्शक – जो मानव को श्रेष्ठ मार्ग दिखाते हैं।
अग्नि सूक्तम् (ऋग्वेद) – Agni Suktam
(ऋ.वे.१.१.१)
अ॒ग्निमी॑ले पु॒रोहि॑तं-यँ॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् ।
होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥ १
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्-ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त ।
स दे॒वा।ण् एह व॑क्षति ॥ २
अ॒ग्निना॑ र॒यिम॑श्नव॒त्पोष॑मे॒व दि॒वेदि॑वे ।
य॒शसं॑-वीँ॒रव॑त्तमम् ॥ ३
अग्ने॒ यं-यँ॒ज्ञम॑ध्व॒रं-विँ॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑ ।
स इद्दे॒वेषु॑ गच्छति ॥ ४
अ॒ग्निर्होता॑ क॒विक्र॑तु-स्स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः ।
दे॒वो दे॒वेभि॒रा ग॑मत् ॥ ५
यद॒ङ्ग दा॒शुषे॒ त्वमग्ने॑ भ॒द्र-ङ्क॑रि॒ष्यसि॑ ।
तवेत्तत्स॒त्यम॑ङ्गिरः ॥ ६
उप॑ त्वाग्ने दि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒या व॒यम् ।
नमो॒ भर॑न्त॒ एम॑सि ॥ ७
राज॑न्तमध्व॒राणा॑-ङ्गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम् ।
वर्ध॑मानं॒ स्वे दमे॑ ॥ ८
स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवे-ऽग्ने॑ सूपाय॒नो भ॑व ।
सच॑स्वा न-स्स्व॒स्तये॑ ॥ ९
अग्नि की विशेषताएँ
- यज्ञकर्ता: अग्नि को यज्ञ का प्रमुख देवता माना जाता है।
- संपर्क से शुद्धता: अग्नि जिसे छूता है, उसे पवित्र कर देता है।
- ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक: अग्नि ज्ञान, चेतना और सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- त्रैगुणिक स्वरूप: अग्नि का रूप तीन रूपों में देखा जाता है— पृथ्वी पर ज्वाला, आकाश में बिजली, और सूर्य में ऊर्जा के रूप में।
अग्नि सूक्त का आध्यात्मिक महत्व
इस सूक्त का पाठ करने से मानसिक और आत्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। यह सूक्त व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, पवित्रता को बढ़ावा देता है और जीवन में उज्ज्वल मार्ग दिखाता है। वैदिक काल से लेकर आज तक अग्नि सूक्त का पाठ धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।