ऋषि पंचमी २०२४ Rishi Panchami 2024
ऋषि पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन पुरुष भी इसे रख सकते हैं। ऋषि पंचमी का उद्देश्य शरीर और मन को पवित्र करना और जीवन में शुद्धता और सदाचार की दिशा में अग्रसर होना है।
ऋषि पंचमी की पौराणिक मान्यता
ऋषि पंचमी का संबंध सप्तर्षियों से है, जो प्राचीन काल के सात महान ऋषि माने जाते हैं—कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि और विश्वामित्र। इन महान ऋषियों की पूजा ऋषि पंचमी के दिन की जाती है। मान्यता है कि यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और वह मानसिक और शारीरिक शुद्धि प्राप्त करता है।
ऋषि पंचमी का स्कंद पुराण में उल्लेख: Rishi Panchami Information In Skandh Puran
स्कंद पुराण में यह कहा गया है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने जीवन में शुद्धता और पवित्रता प्राप्त करता है। यह व्रत मनुष्य के पापों को धोकर उसे मोक्ष की ओर ले जाने में सहायक होता है। ऋषि पंचमी के व्रत में स्त्रियां सुबह स्नान कर पवित्र जल में स्नान करती हैं और फिर सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं। इस पूजा में विशेष रूप से चावल, दही, और विशेष पकवानों का भोग लगाया जाता है। व्रत का पालन करने वाली महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और केवल एक समय फलाहार करती हैं।
ऋषि पंचमी व्रत की विधि Rishi Panchami Fast(Vrat) Information
- तैयारी: व्रत करने वाले को प्रातःकाल स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करना चाहिए। आमतौर पर इस दिन उपवास रखा जाता है, जिसमें अन्न का सेवन वर्जित होता है। केवल फलाहार और विशेष रूप से तैयार भोजन ग्रहण किया जाता है।
- पूजन सामग्री: पूजा के लिए सप्तर्षियों की मूर्ति या चित्र, जल, फूल, धूप, दीपक, पंचामृत, लाल वस्त्र, और दूर्वा की आवश्यकता होती है।
- पूजा विधि:
- व्रती को सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनने चाहिए।
- मिट्टी, जौ या तिल के पानी से स्नान करना।
- इसके बाद सप्तर्षियों की मूर्ति या चित्र स्थापित करके उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
- सप्तर्षियों को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) से स्नान कराया जाता है।
- फिर जल अर्पित कर उन्हें फूल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
- पूजा के दौरान व्रत की कथा सुनी या पढ़ी जाती है।
- व्रत का आहार: इस दिन साधारण भोजन के बजाय फल, दूध, दही, और अन्य सत्त्विक भोजन लिया जाता है। अन्न का त्याग किया जाता है। व्रत करने वाले लोग इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
ऋषि पंचमी व्रत की कथा Rishi Panchami Vrat Vidhi
कहानी के अनुसार, एक ब्राह्मण परिवार की महिला ने अज्ञानता में मासिक धर्म के दौरान रसोई में प्रवेश किया और खाना पकाया, जिससे उसे अगले जन्म में कष्ट सहने पड़े। इसके बाद जब उसने एक ऋषि से इसका उपाय पूछा, तो ऋषि ने ऋषि पंचमी व्रत करने की सलाह दी, जिससे उसके पापों का नाश हुआ। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि ऋषि पंचमी व्रत करने से शारीरिक और मानसिक पवित्रता प्राप्त होती है और पिछले जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
ऋषि पंचमी व्रत का महत्व Importance of Rishi Panchami
ऋषि पंचमी का व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दौरान हुई अशुद्धियों को दूर करने के लिए किया जाता है। यह व्रत शुद्धता और सात्विकता को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से न केवल वर्तमान जीवन के पाप धुल जाते हैं, बल्कि पिछले जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं।
स्वास्थ्य और धार्मिक दृष्टिकोण Health Benifits of Rishi Panchami Fast(Vrat)
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है। मासिक धर्म के समय की स्वच्छता का महत्व इस व्रत के माध्यम से उजागर होता है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह व्रत शरीर को विषमुक्त और शुद्ध करने का एक तरीका माना जाता है, क्योंकि व्रत के दौरान हल्का और पाचन योग्य आहार लिया जाता है।
ऋषि पंचमी मन्त्र Rishi Panchami Mantra
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
ऋषि पंचमी आरती Rishi Panchami Aarti
श्री हरि हर गुरु गणपति , सबहु धरि ध्यान।
मुनि मंडल श्रृंगार युक्त, श्री गौतम करहुँ बखान।।
ॐ जय गौतम त्राता , स्वामी जी गौतम त्राता ।
ऋषिवर पूज्य हमारे ,मुद मंगल दाता।। ॐ जय।।
द्विज कुल कमल दिवाकर , परम् न्याय कारी।
जग कल्याण करन हित, न्याय रच्यौ भारी।। ॐ जय।।
पूरी आरती के लिइ इस लिंक पर जाए
ऋषि स्तुति Rishi Panchami Stuti
भृगुर्वशिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च मनुः पुलस्त्यः पुलहश्च गौतमः।
रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।
सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरिपिङ्गलौ च ।
सप्त स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।
सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेद् स्मरेद् वा शृणुयाच्च तद्वत्।
दुःखप्रणाशस्त्विह सुप्रभाते भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात्।