रुद्राभिषेकस्तोत्रम् Rudrabhisheka Stotra
रुद्राभिषेकस्तोत्रम् महाभारत का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान शिव की स्तुति करता है और विशेष रूप से उनके रुद्र रूप की उपासना के लिए माना जाता है। यह स्तोत्र महाभारत के शांतिपर्व में आता है, जहाँ भगवान कृष्ण, युधिष्ठिर को यह उपदेश देते हैं कि शिव की उपासना किस प्रकार की जानी चाहिए। इस स्तोत्र के माध्यम से शिवजी की रुद्र रूप में आराधना करने का विधान बताया गया है।
महाभारत में रुद्राभिषेकस्तोत्रम् की स्थानिकता:
महाभारत के शांतिपर्व (अध्याय 284) में, भगवान श्रीकृष्ण पाण्डवों के बड़े भाई युधिष्ठिर को युद्ध के बाद राज्य का पुनः निर्माण और प्रशासनिक कार्यों की सफलता हेतु शिव की उपासना करने का निर्देश देते हैं। कृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं कि भगवान शिव के रुद्र रूप की आराधना ही सारी बाधाओं को हरती है और राज्य की शांति, समृद्धि और सुख की स्थापना करती है।
रुद्राभिषेकस्तोत्रम् का महत्व:
यह स्तोत्र भगवान शिव के रुद्र रूप की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्र शब्द का अर्थ होता है ‘जो दुःखों को दूर करता है’। इस स्तोत्र में भगवान शिव को जल, दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक करने का विधान बताया गया है, जिसे रुद्राभिषेक कहते हैं। माना जाता है कि इस स्तोत्र के पाठ और रुद्राभिषेक से सभी प्रकार के कष्टों और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
रुद्राभिषेकस्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ:
- सभी प्रकार के कष्टों का निवारण: इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव की आराधना करने से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
- आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति: रुद्राभिषेक का विशेष फल यह है कि यह दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और संपन्नता प्रदान करता है।
- शांति और समृद्धि: यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में शांति, सुख और समृद्धि लाने वाला है। यह राजा के लिए राज्य की शांति और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए भी लाभकारी है।
- मोक्ष प्राप्ति: महाभारत में यह भी बताया गया है कि इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
रुद्राभिषेक की विधि:
रुद्राभिषेक में भगवान शिव का अभिषेक जल, दूध, शहद, घी, दही आदि से किया जाता है। यह अभिषेक विशेष मन्त्रों के साथ किया जाता है, जिसमें रुद्राभिषेकस्तोत्र का पाठ भी शामिल होता है। भगवान शिव के रुद्र रूप की उपासना करते हुए यह अभिषेक किया जाता है ताकि भगवान की कृपा प्राप्त हो सके।
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रुद्राभिषेकस्तोत्रं महाभारतान्तर्गतम् Rudrabhisheka Stotra
कृष्णार्जुनावूचतुः ।
नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।
पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ॥1॥
महादेवाय भीमाय त्र्यम्बकाय च शान्तये ।
ईशानाय मखघ्नाय नमोऽस्त्वन्धकघातिने ॥2॥
कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे ।
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ॥3॥
विलोहिताय ध्रूम्राय व्याधायानपराजिते ।
नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुषे ॥4॥
होत्रे पोत्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे ।
अचिन्त्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुताय च ॥5॥
वृषध्वजाय मुण्डाय जटिने ब्रह्मचारिणे ।
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च ॥6॥
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते ।
नमोनमस्ते सेव्याय भूतानां प्रभवे सदा ॥7॥
ब्रह्मवक्त्राय सर्वाय शंकराय शिवाय च ।
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः ॥8॥
अभिगम्याय काम्याय स्तुत्यायार्याय सर्वदा ।
नमोऽस्तु देवदेवाय महाभूतधराय च ।
नमो विश्वस्य पतये पत्तीनां पतये नमः ॥
नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नमः ।
नमः सहस्रशिरसे सहस्रभुजमृत्यवे॥9॥
सहस्रनेत्रपादाय नमोऽसङ्ख्येयकर्मणे ।
नमो हिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च ।
भक्तानुकम्पिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो ॥10॥
सञ्जय उवाच ।
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः ।
प्रसादयामास भवं तदा ह्यस्त्रोपलब्धये ॥11॥
॥इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि प्रतिज्ञापर्वणि अर्जुनस्वप्ने अशीतितमोऽध्यायः ॥८०॥