गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्रम् Gauri Kritam Heramba Stotram
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्रम् भगवान गणेश को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसे माता गौरी ने भगवान गणेश की स्तुति में रचा था। यह स्तोत्र भगवान हेरम्ब, जो गणेश जी का ही एक रूप है, की महिमा का वर्णन करता है। हेरम्ब, गणेश जी का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें उन्हें पांच सिर और दस भुजाओं के साथ दर्शाया जाता है। यह रूप विशेष रूप से रक्षात्मक और मातृत्व के गुणों से जुड़ा होता है।
हेरम्ब का अर्थ और विशेषता:
‘हेरम्ब’ का शाब्दिक अर्थ है ‘प्यारा और कोमल’, और यह नाम गणेश जी के उस रूप का संकेत देता है जो विशेष रूप से अपने भक्तों के प्रति करुणामय और सहानुभूतिपूर्ण है। हेरम्ब गणेश जी के इस रूप को कठिनाइयों को दूर करने और भक्तों को शांति प्रदान करने वाला माना जाता है। हेरम्ब का यह रूप मुख्य रूप से तांत्रिक उपासना में पूजित होता है और उन्हें संकटों का नाशक माना जाता है।
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्र की रचना:
यह स्तोत्र माता पार्वती द्वारा रचित माना जाता है, जो स्वयं देवी गौरी के रूप में जानी जाती हैं। माता पार्वती ने इस स्तोत्र की रचना भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त करने और उनके रक्षात्मक गुणों की स्तुति में की थी। यह स्तोत्र भक्तों को उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने में सहायक माना जाता है।
स्तोत्र के पाठ का महत्त्व:
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्तों को अनेक प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिलता है। इसे विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है जो अपने जीवन में शांति, समृद्धि, और सुरक्षा की कामना करते हैं। हेरम्ब गणेश जी का यह रूप शत्रु बाधाओं से रक्षा करता है और जीवन में आने वाली कठिनाइयों को समाप्त करता है।
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्रम्
गौर्युवाच ।
गजानन ज्ञानविहारकारिन्न मां च जानासि परावमर्षाम् ।
गणेश रक्षस्व न चेच्छरीरं त्यजामि सद्यस्त्वयि भक्तियुक्ता ॥१॥
विघ्नेश हेरम्ब महोदर प्रिय लम्बोदर प्रेमविवर्धनाच्युत ।
विघ्नस्य हर्ताऽसुरसङ्घहर्ता मां रक्ष दैत्यात्वयि भक्तियुक्ताम् ॥२॥
किं सिद्धिबुद्धिप्रसरेण मोहयुक्तोऽसि किं वा निशि निद्रितोऽसि ।
किं लक्षलाभार्थविचारयुक्तः किं मां च विस्मृत्य सुसंस्थितोऽसि ॥३॥
किं भक्तसङ्गेन च देवदेव नानोपचारैश्च सुयन्त्रितोऽसि ।
किं मोदकार्थे गणपाद्धृतोऽसि नानाविहारेषु च वक्रतुण्ड ॥४॥
स्वानन्दभोगेषु परिहृतोऽसि दासीं च विस्मृत्य महानुभाव ।
आनन्त्यलीलासु च लालसोऽसि किं भक्तरक्षार्थसुसङ्कटस्थः ॥५॥
अहो गणेशामृतपानदक्षामरैस्तथा वाऽसुरपैः स्मृतोऽसि ।
तदर्थनानाविधिसंयुतोऽसि विसृज्य मां दासीमनन्यभावाम् ॥६॥
रक्षस्व मां दीनतमां परेश सर्वत्र चित्तेषु च संस्थितस्त्वम् ।
प्रभो विलम्बेन विनायकोऽसि ब्रह्मेश किं देव नमो नमस्ते ॥७॥
भक्ताभिमानीति च नाम मुख्यं वेदे त्वभावान् नहि चेन्महात्मन् ।
आगत्य हत्वाऽदितिजं सुरेश मां रक्ष दासीं हृदि पादनिष्ठाम् ॥८॥
अहो न दूरं तव किञ्चिदेव कथं न बुद्धीश समागतोऽसि ।
सुचिन्त्यदेव प्रजहामि देहं यशः करिष्ये विपरीतमेवम् ॥९॥
रक्ष रक्ष दयासिन्धोऽपराधान्मे क्षमस्व च ।
क्षणे क्षणे त्वहं दासी रक्षितव्या विशेषतः ॥१०॥
स्तुवत्यामेव पार्वत्यां शङ्करो बोधसंयुतः ।
बभूव गणपानां वै श्रुत्वा हाहारवं विधेः ॥११॥
गणेशं मनसा स्मृत्वा वृषारूढः समाययौ ।
क्षणेन दैत्यराजं तं दृष्ट्वा डमरुणाहनत् ॥१२॥
ततः सोऽपि शिवं वीक्ष्यालिङ्गितुं धवितो.आभवत् ।
शिवस्य शूलिकादीनि शस्त्राणि कुण्ठितानि वै ॥१३॥
तं दृष्ट्वा परमाश्चर्यं भयभीतो महेश्वरः ।
सस्मार गणपं सोऽपि निर्विघ्नार्थं प्रजापते ॥१४॥
पार्वत्याः स्तवनं श्रुत्वा गजाननः समाययौ ।
इति मुद्गलपुराणोक्तं हेरम्बस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्र का लाभ:
- संकटों से मुक्ति: यह स्तोत्र भगवान गणेश के हेरम्ब रूप की स्तुति करता है, जो सभी प्रकार के संकटों को दूर करने वाले हैं।
- धन और समृद्धि: जिन लोगों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वे इस स्तोत्र का पाठ करके भगवान गणेश की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
- परिवार में शांति: इस स्तोत्र के पाठ से पारिवारिक कलह और विवाद समाप्त होते हैं और परिवार में शांति और सामंजस्य बना रहता है।
- मन की शांति: गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
गौरिकृतं हेरम्ब स्तोत्र का पाठ विधि:
1.स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2.गणेश जी की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं।
3.शांत चित्त होकर भगवान गणेश का ध्यान करें और इस स्तोत्र का पाठ करें।
4.स्तोत्र के पाठ के बाद भगवान गणेश की आरती करें और उन्हें मोदक या लड्डू का भोग लगाएं।