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शनिवार, सितम्बर 21, 2024

शिवाष्टकम्‌ श्रीमच्छडूराचार्यविरचितं

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शिवाष्टकम्‌ Shiva Shtakam Lyrics In Hindi

तस्मै नमः परमकारणकारणाय
दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय ।
नागोन्द्रहारकृतकुण्डल भूषणाय
ब्रहोन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय॥ १ ॥

अर्थ: जो कारणके भी परम कारण हैं, (अम्निशिखाके समान) अति देदीप्यमान उज्ज्वल और पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पराजोंके हार-कुण्डलादिसे भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्रादिको भी वर देनेवाले हैं, उन श्रीशङ्करको नमस्कार करता हूँ॥ १॥

श्रीमत्प्रसन्नरा रिपन्नगभूषणाय
शैलेन्क्र्जावदनचुम्बितलोचनाय ।
‘केलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय
‘लोकत्रयार्तिहरणाय नमः शिवाय ॥ २॥

अर्थ: शोभायमान एवं निर्मल चन्द्रकला तथा सर्प ही जिनके भूषण हैं, गिरिराजकुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास और महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दुःखको दूर करनेवाले हैं, उन श्रीशाङ्करको नमस्कार करता हूँ॥२॥

पद्यावदातमणिकुण्डळगोवृषाय
कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय |
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय
नीलाब्जकण्ठसदूशाय नमः शिवाय ॥ ३ ॥
अर्थ:
जो स्वच्छ ‘पदारागमणिके कुण्डलोंसे किरणोंकी वर्षा करनेवाले, अगरु ओर बहुत-से चन्दनसे चर्चित तथा भस्म, प्रफुल्लित कमल और जूहीसे सुशोभित हैं, ऐसे नीलकमलसदूश कण्ठवाले शिवको नमस्कार है॥ ३ ॥

लम्बत्सपिङ्गलजटामुकुटोत्कटाय
देष्राकरालविकटोत्कटभैरवाय ।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय
त्रैलोक्यनाथनमिताय नमः शिवाय ॥ ४ ॥
अर्थ:
लटकती हुई पिङ्गळवर्ण जटाओंके सहित मुकुट धारण करनेसे जो उत्कट जान पड़ते हैं, तीक्ष्ण दाढ़ोंके कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं, व्याघ्रचर्म धारण किये हुए हैं, अति मनोहर हैं तथा तीनों लोकोंके अधीश्वर भी जिनके चरणोंमें झुकते हैं, उन श्रीशङ्करको प्रणाम है ॥ ४ ॥

दक्षप्रजापतिमहामखनाशनाय
क्षिप्र सहात्रिपुरदानवघातनाय ।
ब्रह्मोर्जितोध्वगकरोटिनिकृन्तनाय
योगाय योगनमिताय नमः शिवाय ॥ ५॥
अर्थ:
दक्षप्रजापतिके महायज्ञको ध्वंस करनेवाले, महान्‌ त्रिपुरासुरको शीघ्र मार डाळनेवाले, दर्षयुक्त ब्रह्माके ऊर्ध्वमुख पञ्चम शिरका छेदन करनेवाले, योगस्वरूप, योगसे नमस्कृत शिवको मैं. नमस्कार करता हूँ॥ ५॥

संसारसुष्टिघटनापरिवर्तनाय
रक्षःपिशाचगणसिद्धसमाकुलाय ।
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय
शार्दूलचर्मवसनाय नमः शिवाय ॥ ६॥
अर्थ:
जो कल्प-कल्पमें संसाररचनाका परिवर्तन करनेवाले हैं; राक्षस, पिशाच और सिद्धगणोंसे घिरे रहते हैं; सिद्ध, सर्प, ग्रहगण तथा इन्द्रादिसे सेवित हैं तथा जो व्याघ्रचर्म धारण किये हुए हैं, उन श्रीशङ्करको नमस्कार करता हूँ ॥ ६ ॥

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय
सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय ।
गोरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय
गोक्षीरधारधवलाय नमः शिवाय ॥ ७ ॥

अर्थ: भस्मरूपी अङ्गरागले अङ्गरागसे जिन्होंने अपने रूपको अत्यन्त मनोहर बनाया है जे अति शान्त और सुन्दर वनका आश्रय करनेवालोंके आश्रित हैं, श्रीपार्वतीजीके कटाक्षकी ओर जो बाँकी चितवनसे निहार रहे हैं और गोदुग्धकी धाराके समान जिनका श्वेत वर्ण है, उन श्रीशङ्करको मैं नमस्कार करता हुँ॥ ७ ॥

आदित्यसोमवरुणानिलसेविताय
यज्ञामिहोत्रवरधूमनिकेतनाय ।
ऋतकसामवेदमुनिभि:ः स्तुतिसंयुताय
गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ॥ ८ ॥

अर्थ: सूर्य, चन्द्र, वरुण और पवनसे जो सेवित हैं, यज्ञ और अमिहोत्रके धूममें जिनका निवास है, ऋकूसामादि वेद और मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्चर- पूजित गौओंका पालन करनेवाले महादेवजीको नमस्कार करता हूँ ॥ ८ ॥

शिवाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्रोति शिवेन सह मोदते॥ ९ ॥

अर्थ: जो इस पवित्र शिवाष्टकको श्रीमहादेवजीके समीप पढ़ता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है और शङ्करजीके साथ आनन्द प्राप्त करता है ॥ ९॥

इति श्रीमच्छडूराचार्यविरचितं शिवाष्टकं सम्पूर्णम्‌ ।

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