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शुक्रवार, अक्टूबर 18, 2024

विष्णु पुराण

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विष्णु पुराण Vishnu Purana

भारतीय संस्कृति और धर्म का अध्ययन करते समय, विष्णु पुराण का उल्लेख महत्वपूर्ण रूप से आता है। यह पुराण हिन्दू धर्म के 18 प्रमुख पुराणों में से एक है उन सभी मे इसको तृतीय स्थान दिया गया है और विष्णु भगवान की महिमा का वर्णन करता है। इसमें न केवल धार्मिक कथाएँ हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी गहन दृष्टिकोण प्रदान किया गया है। विष्णु पुराण की महत्ता और इसकी शिक्षाओं को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय धार्मिक साहित्य का एक अनमोल रत्न है। सस्कृत के विद्वानो की दृष्टि में इसकी भाषा ऊंचे दर्जे की साहित्यिक, काव्यगुण सम्पन्न और प्रमादगुणयुक्त मानी गई है। जहाँ तक अनुमान है भाषा और वर्णनगंनी की चेष्टा में भागवत के सिवाय किसी धन्यप्रय की तुलना इससे नही की जा सक्ती । भूमण्डल का स्वरूप, ज्योतिष, राजाओं का इतिहास, कृष्ण चरित्र आदि विषयों का इसम धडे बोध- गम्य ढंग से वर्णन दिया गया है।

विष्णु पुराण की उत्पत्ति Origin of Vishnu Purana

इसके रचयिता पराशर ऋषि हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसकी रचना का समय अनुमानतः 3री से 5वी सदी के बीच माना जाता है। इस पुराण का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करना और उनके उपदेशों को जन-जन तक पहुँचाना है। महर्षि पराशर ने इस पुराण के माध्यम से धार्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षा का विस्तार किया है।

विष्णु पुराण की संरचना Structure of Vishnu Purana

विष्णुपुरण’ की श्लोक संख्या के विषय मे बडा मतभेद है। अधिकाश स्थानो मे २३ हजार श्लोक बतलाये गये हैं पर जो ग्रथ इस समय प्राप्त है उसमे केवल सात हजार श्लोक पाये जाते हैं। इस पर कई विद्वान कहते हैं कि ‘विष्णु धर्मोत्तर पुराण’ इसी का उत्तरार्थ है। हम तो इस विषय मे यही समजते हैं कि सभव है किसी कारणवश प्राचीन काल मे ही विष्णु पुराण का यह सक्षिप्त संस्करण किसी विद्वान ने पृथक कर दिया हो और मूल वडा ग्रथ विदेशियो केआक्रमण के समय नष्ट हो गया हो।

विष्णु पुराण का निर्माण छह अंशों (खंडों) में किया गया है जिनमें १२६ अध्याय है। पहले अंश मे काल का स्वरूप, सृष्टि की उत्पत्ति और ध्रुव, पृथु और प्रह्लाद का वृत्तान्त है। दूसरा अंश लोकों के स्वरूप के सम्बन्ध मे है। इसमे पृथ्वी के नौ खंड, सात पाताल लोक तथा सात ऊद्धं लोको का वर्णन है। ग्रह नक्षत्र, ज्योतिष चक्र, नवग्रह आदि का भी परिचय दिया गया है। तीसरे मे मनवन्तर, वेदो की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ-धर्म और श्राद्ध विर्धि गणित है। चौथे अंश में सूयं वंश, चद्रवंश आदि के राजाओ के चरित्र तथा उनकी वशावली वर्णन कीया गया है। पाचवा अंश, जो पर्याप्त बडा है, श्रीकृष्ण चरित्र तथा उनको लोकोत्तर लीलाओ से सम्बन्ध रखता है। यह बात उल्लेखनीय है कि जहाँ इसमे राम-चरित्र दस बीस श्लोको मे ही दिया गया है कृष्ण- चरित्र विस्तार सेकड़ो पृष्ठ मे है। अन्तिम अंश छोटा है और उसमे प्रलय घौर मोक्ष मार्ग का वर्णन करके ग्रंथ का उपसहार किया गया है। इस प्रकार शास्त्रों मे पुराणो के जो पाँचो लक्षण :

  1. सर्ग – तरको तात्ति और महाभूतो कीं सृष्टि,
  2. प्रतिसर्ग – सृष्टि का प्रारम्भ और विविध प्रशर के प्राणियो को उत्पत्ति,
  3. वंश – ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न मूल वशो वा वर्णन,
  4. मन्वंतर – वान एवं समय के खंड और कल्प आदि वा वर्णन)
  5. वंशानुचरित्र – ऐतिहासिक राजवशो के विशिष्ट महापुरुषो का परिचय, ‘विधणु पुराण’ में पाये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त बिच – बीच में अध्यात्म विवेचन, सदाचार और घर्म का निरूपण, कलिधर्म आदि उपयोगी विषयो का समावेश है। समस्त विपयो पर सम्यक अनुवाद और वर्णन करना इस पुराण की विशेषता है। इसी विषय का इतना धना वर्णन विस्तार नही किया गया है कि पाठक को पढ़ते पढ़ते भाव स्वरूप जान पड़ने लगे ।

  1. प्रथम अंश – सृष्टि की उत्पत्ति और प्रारंभिक देवताओं का वर्णन
  2. द्वितीय अंश – भूगोल और विभिन्न तीर्थ स्थानों का वर्णन
  3. तृतीय अंश – राजवंशों की सूची और उनकी कथाएँ
  4. चतुर्थ अंश – धर्म और धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन
  5. पंचम अंश – विभिन्न कालों और युगों का वर्णन
  6. षष्ठ अंश – कलियुग और भविष्यवाणियों का वर्णन
Vishnu Puran 1
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प्रथम अंश: सृष्टि की उत्पत्ति

इस खंड में सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति का वर्णन किया गया है। सृष्टि का प्रारंभिक काल, जिसमें ब्रह्मा जी ने संसार का निर्माण किया, विष्णु जी ने संरक्षण किया और शिव जी ने संहार किया, का वर्णन इसमें विस्तार से है। सृष्टि की उत्पत्ति की कथाओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी मिलता है, जो भारतीय संस्कृति की समृद्धि को दर्शाता है। इस खंड में बताया गया है कि कैसे विष्णु भगवान ने ब्रह्माण्ड की रचना की और इसे संतुलन में रखने के लिए अपनी लीलाओं का प्रदर्शन किया।

द्वितीय अंश: भूगोल और तीर्थ

द्वितीय अंश में पृथ्वी के भूगोल और विभिन्न तीर्थ स्थानों का विवरण मिलता है। इसमें सप्तद्वीप, सप्तसमुद्र और विभिन्न पर्वतों का वर्णन किया गया है। तीर्थ स्थानों की महिमा और उनके धार्मिक महत्व का उल्लेख भी इस खंड में किया गया है। ये तीर्थ स्थान धार्मिक यात्रा और आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। इस खंड में बताई गई जगहें और उनके धार्मिक महत्व आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पूजनीय हैं।

तृतीय अंश: राजवंशों की कथाएँ

तृतीय अंश में विभिन्न राजवंशों की कथाएँ और उनकी वंशावली का वर्णन है। इसमें सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं की कहानियाँ प्रमुखता से हैं। राजवंशों की कथाएँ न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे नैतिक और धार्मिक संदेश भी प्रदान करती हैं। इन कहानियों के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे विभिन्न राजाओं ने धर्म का पालन किया और अपने राज्य को उन्नति की ओर ले गए।

चतुर्थ अंश: धर्म और धार्मिक अनुष्ठान

इस खंड में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और उनकी विधियों का विवरण है। इसमें यज्ञ, हवन, पूजा और अन्य धार्मिक क्रियाओं का उल्लेख है। धर्म और धार्मिक अनुष्ठान हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं और उन्हें जीवन में धार्मिक आचरण की प्रेरणा देते हैं। यह खंड धार्मिक कर्तव्यों और आचरणों को स्पष्ट करता है, जिससे व्यक्ति धर्म के मार्ग पर सही तरीके से चल सके।

पंचम अंश: काल और युग

पंचम अंश में समय की अवधारणा और विभिन्न युगों का वर्णन है। इसमें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का विस्तार से वर्णन किया गया है। काल और युग की इन कथाओं में समाज की स्थिति और धार्मिक विश्वासों का चित्रण मिलता है। यह खंड हमें समय के प्रवाह और उसमें हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद करता है। युगों की इन कथाओं के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे समय के साथ धर्म और समाज में परिवर्तन आते हैं।

षष्ठ अंश: कलियुग और भविष्यवाणियाँ

इस खंड में कलियुग की विशेषताओं और भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। कलियुग में धर्म की गिरावट और अधर्म की वृद्धि का उल्लेख किया गया है। भविष्यवाणियाँ समाज को सचेत करने और धार्मिक आचरण को प्रोत्साहित करने का कार्य करती हैं। इस खंड में यह भी बताया गया है कि कलियुग के अंत में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा, जो अधर्म का नाश करेगा और धर्म की स्थापना करेगा।

विष्णु पुराण और समाज

विष्णु पुराण न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है। इसमें वर्णित नैतिक कहानियाँ और धर्मोपदेश समाज को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। समाज में नैतिकता और धर्म का पालन कैसे किया जाए, इसका मार्गदर्शन भी यह पुराण प्रदान करता है। यह पुराण समाज को एकजुट रखने और उसमें नैतिकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विष्णु पुराण का साहित्यिक महत्व Literary importance of Vishnu Purana

विष्णु पुराण का साहित्यिक महत्व भी कम नहीं है। यह संस्कृत साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें प्राचीन भारतीय साहित्य की उत्कृष्टता का प्रदर्शन होता है। इसके श्लोक और छंद संस्कृत भाषा की समृद्धि और उसकी साहित्यिक शैली का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। विष्णु पुराण का साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाता है और इसका अध्ययन साहित्य प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय अनुभव है।

Vishnu Puran 2
Image Sourece Bing Copilot AI

विष्णु पुराण कथाएं भाग १ Vishnu Puran PDF Part 1

विष्णु पुराण कथाएं भाग २ Vishnu Puran PDF Part 2

Vishnu Puran FAQs

विष्णु पुराण क्या है? What is Vishnu Puran?

विष्णु पुराण हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों में से एक है। यह पुराण भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है और उनके विभिन्न अवतारों की कथाएँ प्रस्तुत करता है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, राजाओं की वंशावली और धर्म के नियमों का विस्तृत वर्णन है।

विष्णु पुराण के प्रमुख कथानक क्या हैं?

विष्णु पुराण में कई प्रमुख कथानक हैं, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
-सृष्टि की उत्पत्ति और प्रारंभिक काल का वर्णन
-भगवान विष्णु के दस अवतारों की कहानियाँ
-प्रह्लाद और नरसिंह अवतार की कथा
-समुद्र मंथन की कथा
-ध्रुव और प्रह्लाद की भक्ति की कहानियाँ

विष्णु पुराण के कितने खंड हैं? How many khands in Vishnu Purana?

विष्णु पुराण के कुल छह खंड हैं, जिन्हें अंश या भाग कहा जाता है:
1.प्रथम अंश
2.द्वितीय अंश
3.तृतीय अंश
4.चतुर्थ अंश
5.पंचम अंश
6.षष्ठ अंश
प्रत्येक अंश में विभिन्न कथाएँ और शिक्षाएँ वर्णित हैं।

विष्णु पुराण में विष्णु के कितने अवतारों का वर्णन है? How many incarnations of Vishnu are described in Vishnu Purana?

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों का वर्णन है, जिन्हें दशावतार कहा जाता है:
1.मत्स्य अवतार 2.कूर्म अवतार 3.वराह अवतार 4.नरसिंह अवतार 5.वामन अवतार 6.परशुराम अवतार 7.राम अवतार 8.कृष्ण अवतार 9.बुद्ध अवतार 10.कल्कि अवतार

विष्णु पुराण का धार्मिक महत्व क्या है? What is the religious significance of Vishnu Purana?

विष्णु पुराण का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह ग्रंथ भगवान विष्णु की महिमा का विस्तार से वर्णन करता है और भक्तों को धर्म, भक्ति, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसके अध्ययन से व्यक्ति के जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान और धर्म के सिद्धांतों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

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