वराह पुराण
श्री वराह पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह वैष्णव पुराणों की श्रेणी में आता है और भगवान विष्णु के तीसरे अवतार, वराह अवतार, की महिमा और लीलाओं का विस्तृत वर्णन करता है। इस पुराण का नाम भगवान वराह के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पृथ्वी को जलमग्न होने से बचाने के लिए यह अवतार धारण किया था। श्री वराह पुराण न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सृष्टि के रहस्यों, तीर्थों के माहात्म्य, धर्म के सिद्धांतों और जीवन के नैतिक मूल्यों को समझाने में भी अद्वितीय योगदान देता है।

वराह पुराण की उत्पत्ति और संरचना
श्री वराह पुराण को महर्षि वेदव्यास द्वारा संकलित माना जाता है, जो हिंदू धर्म के सभी पुराणों के रचयिता हैं। इस पुराण में लगभग 217 अध्याय और 24,000 श्लोक शामिल हैं, हालांकि विभिन्न संस्करणों में श्लोकों की संख्या में कुछ अंतर देखा जाता है। यह ग्रंथ दो प्रमुख भागों में विभाजित है: पूर्व भाग और उत्तर भाग। पूर्व भाग में सृष्टि की उत्पत्ति, वराह अवतार की कथा, और विभिन्न धार्मिक कथाओं का वर्णन है, जबकि उत्तर भाग में तीर्थों, व्रतों, यज्ञों और अनुष्ठानों का विस्तृत विवरण मिलता है।
इस पुराण की शुरुआत भगवान वराह और पृथ्वी के बीच एक संवाद से होती है। कथा के अनुसार, जब पृथ्वी को उद्धार के बाद भगवान वराह ने अपने दांतों पर स्थापित किया, तब पृथ्वी ने उनसे सृष्टि और धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने की जिज्ञासा व्यक्त की। भगवान वराह ने पृथ्वी को जो उपदेश दिया, वही इस पुराण का आधार बना।
वराह अवतार की कथा
श्री वराह पुराण का केंद्रीय विषय भगवान विष्णु का वराह अवतार है। यह अवतार सतयुग में तब प्रकट हुआ जब दैत्य हिरण्याक्ष ने अपने अहंकार और शक्ति के बल पर पृथ्वी को समुद्र की गहराइयों में छिपा दिया था। इस संकट से पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने विशाल सूअर (वराह) का रूप धारण किया। उनकी थूथनी से पृथ्वी की खोज की और हिरण्याक्ष से युद्ध कर उसका वध किया। इसके बाद, भगवान वराह ने पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर समुद्र से बाहर निकाला और उसे उसके मूल स्थान पर स्थापित किया। इस कथा में भगवान विष्णु की शक्ति, करुणा और धर्म की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का चित्रण है।
वराह अवतार को पूरी तरह सूअर के रूप में या मानव शरीर के साथ सूअर के सिर के रूप में चित्रित किया जाता है। उनकी शक्ति और पत्नी भूदेवी (पृथ्वी की देवी) को इस कथा में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
पुराण का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
श्री वराह पुराण का उद्देश्य केवल कथाओं का वर्णन करना नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन को धर्म, कर्म और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर प्रकाश डाला गया है:
1. तीर्थों का माहात्म्य
इस पुराण में अनेक तीर्थों का वर्णन है, जैसे सोरों सूकर क्षेत्र, मथुरा मंडल, व्रज के तीर्थ, और विभिन्न आदित्य तीर्थ (जैसे चक्रतीर्थ, रूपतीर्थ, सोमतीर्थ आदि)। इन तीर्थों की महिमा और वहां किए जाने वाले धार्मिक कार्यों का महत्व बताया गया है। विशेष रूप से मथुरा और व्रज के तीर्थों का वर्णन श्रीकृष्ण की लीलाओं के प्रभाव से जोड़ा गया है।
2. व्रत, यज्ञ और अनुष्ठान
वराह पुराण में व्रतों, यज्ञों, श्राद्ध, तर्पण और दान की विधियों का विस्तृत वर्णन है। यह ग्रंथ बताता है कि इन कर्मकांडों को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और पापों से मुक्ति मिलती है। गोदान, पिंडदान और श्राद्ध की महिमा पर विशेष बल दिया गया है।
3. देवी-देवताओं की महिमा
इस पुराण में भगवान विष्णु के साथ-साथ त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) और त्रिशक्ति (ब्रह्माणी, वैष्णवी, रुद्राणी) की महिमा का वर्णन है। गणपति, कार्तिकेय, सूर्य, चंद्र, अग्नि, अश्विनीकुमार, दुर्गा, कुबेर और पितृगण जैसे अन्य देवताओं की उत्पत्ति और उनके चरित्र भी इसमें शामिल हैं। साथ ही, शिव-पार्वती के विवाह और गौरी की उत्पत्ति की कथाएं भी रोचकता के साथ प्रस्तुत की गई हैं।
4. धर्म और नैतिकता
वराह पुराण में धर्म को गतिशील और देश-काल के अनुसार परिवर्तनशील बताया गया है। यह उपदेश देता है कि सच्चा सुख परोपकार, सत्यनिष्ठा और स्वार्थ त्याग से प्राप्त होता है। ईश्वर का सच्चा भक्त वही है जो परनिंदा से बचता हो, सत्य बोलता हो और दूसरों के प्रति बुरी दृष्टि न रखता हो।
5. सृष्टि और भूगोल
इस पुराण में सृष्टि की रचना, सप्तद्वीपों, नदियों, पर्वतों और युगों का माहात्म्य वर्णित है। यह भौगोलिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें स्थानों का वर्णन अन्य पुराणों की तुलना में अधिक स्पष्ट और प्रमाणिक है।
