वामन पुराण – वामन अवतार की संपूर्ण कहानी Vamana Purana
वामन पुराण हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों में से एक है, जो वामन अवतार पर केंद्रित है। यह पुराण न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें समाज, संस्कृति और नैतिकता से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें भी समाहित हैं। इस लेख में, हम वामन पुराण की विभिन्न पहलुओं को विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि यह पुराण क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
वामन पुराण का उद्भव Origin of Vamana Purana
वामन पुराण का उद्भव वैदिक काल में माना जाता है। इस पुराण का रचना काल लगभग 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। इस पुराण में 95 अध्याय हैं, जिनमें विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
वामन पुराण की संरचना Structure of Vamana Purana
वामन पुराण की संरचना अत्यंत विस्तृत और विविधतापूर्ण है। इसमें विभिन्न प्रकार की कथाएं, उपदेश, और धार्मिक नियम शामिल हैं। इस पुराण का मुख्य आकर्षण वामन अवतार की कथा है, लेकिन इसके अलावा भी इसमें अनेक रोचक और महत्वपूर्ण कथाएं हैं।
वामन अवतार का परिचय और उदेश्य Introduction and purpose of Vamana avatar
वामन अवतार भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में से एक है। इस अवतार में, भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण के रूप में अवतार लिया था। असुर राजा बलि जब समुद्र मंथन में असुर के साथ हुवे अन्याय का प्रतिउतर देने के लिए दैत्य गुरु शुक्राचार्य की सहायता से शहस्त्र अस्वमेघ यज्ञ करके जब अंतिम यज्ञ समाप्त होने के बाद बलि राजा को देव लोक के साथ साथ तीनो लोको का साम्राज्य मिल जाएगा तब देवराज इंद्र भयबित होकर श्री हरी विष्णु के पास सहायता के लिए गए तब प्रभु विष्णु ने वामन अवतार धारण किआ। वामन अवतार ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और अपनी विशालकाय रूप धारण करके तीन पग में समस्त ब्रह्मांड को नाप लिया। इस प्रकार, राजा बलि का अभिमान चूर-चूर हो गया और उसने भगवान विष्णु की शरण ली।
प्रह्लाद की कथा Story of prahlad
प्रह्लाद भगवान विष्णु के एक प्रमुख भक्त थे। उनकी कथा न केवल भक्ति की महिमा को दर्शाती है, बल्कि उसमें यह भी दिखाया गया है कि सच्ची भक्ति और धर्म के सामने अत्याचार कभी टिक नहीं सकते। प्रह्लाद की कथा वामन पुराण में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
ध्रुव की कथा Dhruva’s story
ध्रुव की कथा भी वामन पुराण में उल्लेखित है। ध्रुव की कथा एक छोटे बालक की अटूट भक्ति और उसकी कठिन तपस्या की कहानी है, जो अंततः भगवान विष्णु के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करती है। ध्रुव की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और तपस्या से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
वामन पुराण में धार्मिक उपदेश
वामन पुराण में अनेक धार्मिक उपदेश और नियम भी बताए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपदेश निम्नलिखित हैं:
धर्म और नैतिकता
वामन पुराण में धर्म और नैतिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है। इसमें यह बताया गया है कि धर्म का पालन कैसे किया जाए और नैतिकता का जीवन में क्या महत्व है।
यज्ञ और अनुष्ठान
वामन पुराण में यज्ञ और अनुष्ठानों का भी विशेष महत्व बताया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार के यज्ञों और अनुष्ठानों के नियम और विधियां विस्तार से दी गई हैं। इन यज्ञों और अनुष्ठानों का धार्मिक और सामाजिक महत्व भी स्पष्ट किया गया है।
वामन पुराण का सांस्कृतिक महत्व Cultural significance of Vamana Purana
वामन पुराण का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न त्योहारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का भी उल्लेख है।
त्योहार और उत्सव
वामन पुराण में विभिन्न त्योहारों और उत्सवों का उल्लेख है। इसमें विशेष रूप से वामन जयंती का महत्व बताया गया है। वामन जयंती भगवान वामन के अवतार दिवस के रूप में मनाई जाती है और यह त्योहार विशेष रूप से विष्णु भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
कश्यप द्वारा भगवन वामन की स्तुति Stuti of Lord Vamana by Kashyap
कश्यप उवाच
नमोऽस्तु ते देवदेव एकशृङ्ग वृषार्चे सिन्धुवृष वृषाकपे सुरवृष अनादिसम्भव रुद्र कपिल विष्वक्सेन
सर्वभूतपते ध्रुव धर्माधर्म वैकुण्ठ वृषाव अनादिमध्यनिधन धनञ्जय शुचिश्रवः पृश्नितेजः
निजजय अमृतेशय सनातन त्रिधाम तुषित महातत्त्व
लोकनाथ पद्मनाभ विरिश्चे बहुरूप अक्षय अक्षर हव्यभुज खण्डपरशो
शक्र मुञ्जकेश हंस महादक्षिण हृषीकेश सूक्ष्म महानियमधर विरज लोकप्रतिष्ठ
अरूप अग्रज धर्मज धर्मनाभ गभस्तिनाभ शतक्रतुनाभ चन्द्ररथ सूर्यतेजः
समुद्रवासः अजः सहस्त्रशिरः सहस्त्रपाद अधोमुख महापुरुष पुरुषोत्तम
सहस्त्रबाहो सहस्त्रमूर्ते सहस्त्रास्य सहस्त्रसम्भव सहस्त्रसत्त्वं त्वामाहुः ।
पुष्पहास चरम त्वमेव वौषट् वषट्कारं त्वामाहुरग्रयं
मखेषु प्राशितारं सहस्त्रधारं च भूश्च भुवश्च स्वश्च
त्वमेव वेदवेद्य ब्रह्मशय ब्राह्मणप्रिय
त्वमेव द्यौरसि मातरिश्वाऽसि धर्मोऽसि होता पोता
मन्ता नेता होमहेतुस्त्वमेव अग्रय विश्वधाम्ना त्वमेव दिग्भिः
सुभाण्ड इज्योऽसि सुमेधोऽसि समिधस्त्वमेव मतिर्गतिर्दाता त्वमसि ।
मोक्षोऽसि योगोऽसि
। सृजसि।
धाता परमयज्ञोऽसि सोमोऽसि दीक्षितोऽसि दक्षिणाऽसि विश्वमसि ।
स्थविर हिरण्यनाभ नारायण त्रिनयन आदित्यवर्ण आदित्यतेजः
महापुरुष पुरुषोत्तम आदिदेव सुविक्रम प्रभाकर शम्भो स्वयम्भो भूतादिः
महाभूतोऽसि विश्वभूत विश्वं त्वमेव विश्वगोप्ताऽसि पवित्रमसि
विश्वभव ऊर्ध्वकर्म अमृत दिवस्पते वाचस्पते घृतार्चे अनन्तकर्म वंश प्राग्वंश विश्वपातस्त्वमेव ।
वरार्थिनां त्वम् । वरदोऽसि चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पञ्चभिरेव च।
हूयते च पुनर्द्राभ्यां तुम्भं होत्रात्मने नमः ॥ १