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सोमवार, मार्च 10, 2025

तुंगभद्रा स्तोत्रम् Tungabhadraa Stotram

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Tungabhadraa Stotram In Hindi

तुंगभद्रा स्तोत्रम्(Tungabhadraa Stotram) एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जो देवी तुंगभद्रा को समर्पित है। तुंगभद्रा नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह नदी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों से होकर बहती है और अपने पवित्र जल से भक्तों को शुद्ध करती है।

तुंगभद्रा नदी का धार्मिक महत्व

  1. गंगा के समान पवित्रता – तुंगभद्रा को दक्षिण भारत की गंगा माना जाता है।
  2. शुद्धिकरण एवं मोक्षदायिनी – इस नदी के जल में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. हंपि एवं विजय नगर साम्राज्य से संबंध – तुंगभद्रा नदी हंपि के पवित्र क्षेत्र से बहती है, जो विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी।
  4. श्रीरंगपट्टनम और मंदिरों से जुड़ाव – इसके तट पर कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं, जैसे विद्यारण्य मठ, श्रीरंगम, एवं अन्य शिव तथा विष्णु मंदिर

तुंगभद्रा स्तोत्रम् के लाभ

  1. सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
  2. मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
  4. परिवार में शांति और कल्याण बना रहता है।
  5. जीवन में आने वाली बाधाएँ और कष्ट दूर होते हैं।

पाठ करने का उचित समय एवं विधि

  • सुबह स्नान के बाद तुंगभद्रा नदी या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत के पास पाठ करें।
  • एकांत और शांत स्थान में ध्यानपूर्वक पढ़ें।
  • शुक्रवार एवं पूर्णिमा के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
  • गंगा जल या तुंगभद्रा जल के साथ स्तोत्र पढ़ने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

तुंगभद्रा स्तोत्रम्

तुङ्गा तुङ्गतरङ्गवेगसुभगा गङ्गासमा निम्नगा
रोगान्ताऽवतु सह्यसंज्ञितनगाज्जातापि पूर्वाब्धिगा।

रागाद्यान्तरदोषहृद्वरभगा वागादिमार्गातिगा
योगादीष्टसुसिद्धिदा हतभगा स्वङ्गा सुवेगापगा।

स्वसा कृष्णावेणीसरित उत वेणीवसुमणी-
प्रभापूतक्षोणीचकितवरवाणीसुसरणिः।

अशेषाघश्रेणीहृदखिलमनोध्वान्ततरणिर्दृढा
स्वर्निश्रेणिर्जयति धरणीवस्त्ररमणी।

दृढं बध्वा क्षिप्ता भवजलनिधौ भद्रविधुता
भ्रमच्चित्तास्त्रस्ता उपगत सुपोता अपि गताः।

अधोधस्तान्भ्रान्तान्परमकृपया वीक्ष्य तरणिः
स्वयं तुङ्गा गङ्गाभवदशुभभङ्गापहरणी।

वर्धा सधर्मा मिलितात्र पूर्वतो भद्रा कुमुद्वत्यपि वारुणीतः।
तन्मध्यदेशेऽखिलपापहारिणी व्यालोकि तुङ्गाऽखिलतापहारिणी।

भद्रया राजते कीत्र्या या तुङ्गा सह भद्रया।
सन्निधिं सा करोत्वेतं श्रीदत्तं लघुसन्निधिम्।

गङ्गास्नानं तुङ्गापानं भीमातीरे यस्य ध्यानं
लक्ष्मीपुर्या भिक्षादानं कृष्णातीरे चानुष्ठानम्।

सिंहाख्याद्रौ निद्रास्थानं सेवा यस्य प्रीत्या ध्यानं
सद्भक्तायाक्षय्यं दानं श्रीदत्तास्यास्यास्तु ध्यानम्।

तुङ्गापगा महाभङ्गा पातु पापविनाशिनी।
रागातिगा महागङ्गा जन्तुतापविनाशिनी।

हर परमरये समस्तमदामयान्
खलबलदलनेऽघमप्यमले मम।

हरसि रसरसे समस्तमनामलं
कुरु गुरुकरुणां समस्तमते मयि।

वेगातुङ्गापगाघं हरतु रथरया देवदेवर्षिवन्द्या
वारं वारं वरं यज्जलमलमलघुप्राशने शस्तशर्म।

श्रीदत्तो दत्तदक्षः पिबति बत बहु स्याः पयः पद्मपत्रा-
क्षीं तामेतामितार्थां भज भज भजतां तारकां रम्यरम्याम्।

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