त्रिपुरसुंदरी अष्टकम(Tripurasundari Ashtakam) एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो देवी त्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। त्रिपुरसुंदरी को आदि शक्ति, महात्रिपुरा, महात्रिपुरसुंदरी, और श्रीविद्या के रूप में जाना जाता है। यह स्तोत्र देवी की महिमा, शक्ति, और उनकी कृपा का वर्णन करता है। इसे साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और यह साधक को आत्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
त्रिपुरसुंदरी का अर्थ है “तीनों लोकों की सबसे सुंदर देवी।” उन्हें शिव की शक्ति और सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनकी उपासना श्रीविद्या उपासना का केंद्रबिंदु है। त्रिपुरसुंदरी को सृष्टि की मूल शक्ति, ब्रह्मांड की जननी, और सौंदर्य, ज्ञान, और आनंद की देवी के रूप में पूजा जाता है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम Tripurasundari Ashtakam
कदम्बवनचारिणीं मुनिकदम्बकादम्बिनीं
नितम्बजितभूधरां सुरनितम्बिनीसेविताम्।
नवाम्बुरुहलोचनामभिनवाम्बुदश्यामलां
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुन्दरीमाश्रये।
कदम्बवनवासिनीं कनकवल्लकीधारिणीं
महार्हमणिहारिणीं मुखसमुल्लसद्वारुणीम्।
दयाविभवकारिणीं विशदरोचनाचारिणीं
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुन्दरीमाश्रये।
कदम्बवनशालया कुचभरोल्लसन्मालया
कुचोपमितशैलया गुरुकृपलसद्वेलया।
मदारुणकपोलया मधुरगीतवाचालया
कयापि घनलीलया कवचिता वयं लीलया।
कदम्बवनमध्यगां कनकमण्डलोपस्थितां
षडम्बुरुवासिनीं सततसिद्धसौदामिनीम्।
विडम्बितजपारुचिं विकचचन्द्रचूडामणिं
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुन्दरीमाश्रये।
कुचाञ्चितविपञ्चिकां कुटिलकुन्तलालङ्कृतां
कुशेशयनिवासिनीं कुटिलचित्तविद्वेषिणीम्।
मदारुणविलोचनां मनसिजारिसम्मोहिनीं
मतङ्गमुनिकन्यकां मधुरभाषिणीमाश्रये।
स्मरेत्प्रथमपुष्पिणीं रुधिरबिन्दुनीलाम्बरां
गृहीतमधुपात्रिकां मदविघूर्णनेत्राञ्चलाम्।
घनस्तनभरोन्नतां गलितचूलिकां श्यामलां
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुन्दरीमाश्रये।
सकुङ्कुमविलेपनामलिकचुम्बिकस्तूरिकां
समन्दहसितेक्षणां सशरचापपाशाङ्कुशाम्।
अशेषजनमोहिनीमरुणमाल्यभूषाम्बरां
जपाकुसुरभासुरां जपविधौ स्मराम्यम्बिकाम्।
पुरन्दरपुरन्ध्रिकां चिकुरबन्धसैरन्ध्रिकां
पितामहपतिव्रतापटुपटीरचर्चारताम्।
मुकुन्दरमणीमणीलसदलङ्क्रियाकारिणीं
भजामि भुवनम्बिकां सुरवधूटिकाचेटिकाम्।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का महत्व Tripurasundari Ashtakam Importance
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम में देवी की स्तुति आठ श्लोकों में की गई है। प्रत्येक श्लोक में उनकी विभिन्न शक्तियों और गुणों का वर्णन मिलता है। यह स्तोत्र न केवल देवी की महिमा का गान करता है, बल्कि साधक को मानसिक शांति, आत्मिक बल, और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम में देवी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया गया है:
- सौंदर्य और करुणा: देवी का रूप त्रिलोक को आनंदित करने वाला है। उनका सौंदर्य शाश्वत और अद्वितीय है।
- ज्ञान और विद्या: देवी को ज्ञान और विद्या की देवी माना जाता है। वे साधक को आत्मज्ञान प्रदान करती हैं।
- शक्ति का स्वरूप: देवी सृष्टि, स्थिति, और संहार की शक्ति हैं। वे ब्रह्मांड की संपूर्ण ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- आनंद स्वरूपा: देवी का स्वरूप आनंदमय है। उनकी उपासना साधक को आत्मिक आनंद का अनुभव कराती है।
अष्टकम का पाठ और लाभ Tripurasundari Ashtakam Benifits
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का नियमित पाठ करने से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- मानसिक शांति और आत्मविश्वास में वृद्धि।
- ध्यान और साधना में प्रगाढ़ता।
- नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार।
- आत्मज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होना।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम पर आधारित सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम क्या है?
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें देवी त्रिपुरसुंदरी की महिमा और उपासना का वर्णन है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए शांति और आध्यात्मिक उत्थान का स्रोत माना जाता है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का मुख्य उद्देश्य क्या है?
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का मुख्य उद्देश्य देवी त्रिपुरसुंदरी की कृपा प्राप्त करना और साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करना है। यह भौतिक और आध्यात्मिक दोनों सुखों की प्राप्ति में सहायक है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का पाठ प्रातःकाल या संध्या समय में शुद्ध मन और स्थान पर करना चाहिए। इसे स्नान के बाद देवी की पूजा के साथ शांत मन से पढ़ना उत्तम माना जाता है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम के पाठ से क्या लाभ होता है?
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम के पाठ से मानसिक शांति, आत्मिक संतोष, और देवी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यह साधक के भीतर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का धार्मिक महत्व क्या है?
त्रिपुरसुंदरी अष्टकम का धार्मिक महत्व देवी त्रिपुरसुंदरी की शक्ति और सौंदर्य की स्तुति में निहित है। यह स्तोत्र श्रीविद्या उपासना का एक महत्वपूर्ण भाग है और इसे पढ़ने से साधक को देवी के परम रूप का अनुभव होता है।