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मंगलवार, फ़रवरी 4, 2025

सूर्य सूक्तम्

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Surya Suktam in Hindi

सूर्य सूक्तम्(Surya Suktam Hindi) हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में स्थित एक महत्वपूर्ण सूक्त है। यह सूक्त सूर्य देवता को समर्पित है और उनकी स्तुति में गाया जाता है। सूर्य सूक्तम् में सूर्य देवता की महिमा, उनके प्रकाश, ऊर्जा और जीवनदायिनी शक्ति का वर्णन किया गया है। यह सूक्त वैदिक संस्कृत में लिखा गया है और इसमें सूर्य देवता की उपासना करने वाले भक्तों के लिए आशीर्वाद और मार्गदर्शन की प्रार्थना की गई है।

सूर्य सूक्तम् का महत्व

  • सूर्य देवता की महिमा: सूर्य सूक्तम् में सूर्य देवता को सृष्टि का आधार और समस्त जीवन का स्रोत बताया गया है। सूर्य को प्रकाश, ऊर्जा और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
  • जीवनदायिनी शक्ति: सूर्य को जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक माना जाता है। सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है। इस सूक्त में सूर्य की इसी शक्ति की स्तुति की गई है।
  • आध्यात्मिक ज्ञान: सूर्य सूक्तम् में सूर्य देवता को आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है। सूर्य का प्रकाश अज्ञान के अंधकार को दूर करता है और मनुष्य को सही मार्ग दिखाता है।
  • स्वास्थ्य और ऊर्जा: सूर्य सूक्तम् का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। सूर्य की ऊर्जा से शरीर को नई शक्ति और स्फूर्ति मिलती है।

सूर्य सूक्तम् का पाठ करने के लाभ

  1. शारीरिक स्वास्थ्य: सूर्य सूक्तम् का पाठ करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और रोगों से मुक्ति मिलती है।
  2. मानसिक शांति: इस सूक्त के पाठ से मन को शांति मिलती है और तनाव दूर होता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: सूर्य सूक्तम् का पाठ करने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है और मनुष्य को सही मार्ग दिखाई देता है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: सूर्य सूक्तम् के पाठ से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है।

सूर्य सूक्तम् का पाठ करने का समय

सूर्य सूक्तम् का पाठ सुबह सूर्योदय के समय करना सबसे अधिक फलदायी माना जाता है। इस समय सूर्य की ऊर्जा सबसे अधिक प्रभावशाली होती है और इसका पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।

सूर्य सूक्तम्Surya Suktam Hindi

(ऋग्वेद – १०.०३७)

नमो॑ मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ चक्ष॑से म॒हो दे॒वाय॒ तदृ॒तं स॑पर्यत ।
दू॒रे॒दृशे॑ दे॒वजा॑ताय के॒तवे॑ दि॒वस्पु॒त्राय॒ सू॒र्या॑य शंसत ॥ १

सा मा॑ स॒त्योक्तिः॒ परि॑ पातु वि॒श्वतो॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ त॒तन॒न्नहा॑नि च ।
विश्व॑म॒न्यन्नि वि॑शते॒ यदेज॑ति वि॒श्वाहापो॑ वि॒श्वाहोदे॑ति॒ सूर्यः॑ ॥ २

न ते॒ अदे॑वः प्र॒दिवो॒ नि वा॑सते॒ यदे॑त॒शेभिः॑ पत॒रै र॑थ॒र्यसि॑ ।
प्रा॒चीन॑म॒न्यदनु॑ वर्तते॒ रज॒ उद॒न्येन॒ ज्याति॑षा यासि सूर्य ॥ ३

येन॑ सूर्य॒ ज्योति॑षा॒ बाध॑से॒ तमो॒ जग॑च्च॒ विश्व॑मुदि॒यर्​षि॑ भा॒नुना॑ ।
तेना॒स्मद्विश्वा॒मनि॑रा॒मना॑हुति॒मपामी॑वा॒मप॑ दु॒ष्ष्वप्न्यं॑ सुव ॥ ४

विश्व॑स्य॒ हि प्रेषि॑तो॒ रक्ष॑सि व्र॒तमहे॑लयन्नु॒च्चर॑सि स्व॒धा अनु॑ ।
यद॒द्य त्वा॑ सूर्योप॒ब्रवा॑महै॒ त-न्नो॑ दे॒वा अनु॑ मंसीरत॒ क्रतु॑म् ॥ ५

त-न्नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी तन्न॒ आप॒ इन्द्रः॑ शृण्वन्तु म॒रुतो॒ हवं॒-वँचः॑ ।
मा शूने॑ भूम॒ सूर्य॑स्य स॒न्दृशि॑ भ॒द्र-ञ्जीव॑न्तो जर॒णाम॑शीमहि ॥ ६

वि॒श्वाहा॑ त्वा सु॒मन॑स-स्सु॒चक्ष॑सः प्र॒जाव॑न्तो अनमी॒वा अना॑गसः ।
उ॒द्यन्त॑-न्त्वा मित्रमहो दि॒वेदि॑वे॒ ज्योग्जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥ ७

महि॒ ज्योति॒र्बिभ्र॑त-न्त्वा विचक्षण॒ भास्व॑न्त॒-ञ्चक्षु॑षेचक्षुषे॒ मयः॑ ।
आ॒रोह॑न्त-म्बृह॒तः पाज॑स॒स्परि॑ व॒य-ञ्जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥ ८

यस्य॑ ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि के॒तुना॒ प्र चेर॑ते॒ नि च॑ वि॒शन्ते॑ अ॒क्तुभिः॑ ।
अ॒ना॒गा॒स्त्वेन॑ हरिकेश सू॒र्याह्ना॑ह्ना नो॒ वस्य॑सावस्य॒सोदि॑हि ॥ ९

श-न्नो॑ भव॒ चक्ष॑सा॒ श-न्नो॒ अह्ना॒ श-म्भा॒नुना॒ शं हि॒मा श-ङ्घृणेन॑ ।
यथा॒ शमध्व॒ञ्छमस॑द्दुरो॒णे तत्सू॑र्य॒ द्रवि॑ण-न्धेहि चि॒त्रम् ॥ १०

अ॒स्माक॑-न्देवा उ॒भया॑य॒ जन्म॑ने॒ शर्म॑ यच्छत द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे ।
अ॒दत्पिब॑दू॒र्जय॑मान॒माशि॑त॒-न्तद॒स्मे शं-योँर॑र॒पो द॑धातन ॥ ११

यद्वो॑ देवाश्चकृ॒म जि॒ह्वया॑ गु॒रु मन॑सो वा॒ प्रयु॑ती देव॒हेल॑नम् ।
अरा॑वा॒ यो नो॑ अ॒भि दु॑च्छुना॒यते॒ तस्मि॒न्तदेनो॑ वसवो॒ नि धे॑तन ॥ १२

ॐ शान्ति॒-श्शान्ति॒-श्शान्तिः॑ ।

सूर्य सूक्तम् वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है जो सूर्य देवता की महिमा और उनके प्रकाश की स्तुति करता है। इस सूक्त का पाठ करने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। सूर्य सूक्तम् का पाठ करना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति लाने में भी सहायक है।

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