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गुरूवार, जून 19, 2025

श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम्

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श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम्

श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम् (Sri Sukta Sara Lakshmi Stotram) एक अत्यंत प्रभावशाली और श्रद्धापूर्वक पाठित स्तोत्र है, जो देवी लक्ष्मी की महिमा, सौंदर्य, ऐश्वर्य और करुणा का संक्षिप्त और सारगर्भित वर्णन करता है। श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम् का शाब्दिक अर्थ है—‘श्रीसूक्त का सार’। यह स्तोत्र ऋग्वेद के श्रीसूक्त के मूल भावों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। इसमें देवी लक्ष्मी के विभिन्न रूपों, गुणों और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली समृद्धि, सुख-शांति, और आध्यात्मिक उन्नति का वर्णन किया गया है।

Sri Sukta Sara Lakshmi Stotram

हिरण्यवर्णां हिमरौप्यहारां चन्द्रां त्वदीयां च हिरण्यरूपाम्।
लक्ष्मीं मृगीरूपधरां श्रियं त्वं मदर्थमाकारय जातवेदः।
यस्यां सुलक्ष्म्यामहमागतायां हिरण्यगोऽश्वात्मजमित्रदासान्।
लभेयमाशु ह्यनपायिनीं तां मदर्थमाकारय जातवेदः।
प्रत्याह्वये तामहमश्वपूर्वां देवीं श्रियं मध्यरथां समीपम्।
प्रबोधिनीं हस्तिसुबृंहितेनाहूता मया सा किल सेवतां माम्।
कांसोस्मितां तामिहद्मवर्णामाद्रां सुवर्णावरणां ज्वलन्तीम्।
तृप्तां हि भक्तानथ तर्पयन्तीमुपह्वयेऽहं कमलासनस्थाम्।
लोके ज्वलन्तीं यशसा प्रभासां चन्द्रामुदामुत देवजुष्टाम्।
तां पद्मरूपां शरणं प्रपद्ये श्रियं वृणे त्वों व्रजतामलक्ष्मीः।
वनस्पतिस्ते तपसोऽधिजातो वृक्षोऽथ बिल्वस्तरुणार्कवर्णे ।
फलानि तस्य त्वदनुग्रहेण माया अलक्ष्मीश्च नुदन्तु बाह्याः।
उपैतु मां देवसखः कुबेरः सा दक्षकन्या मणिना च कीर्तिः।
जातोऽस्मि राष्ट्रे किल मर्त्यलोके कीर्तिं समृद्धिं च ददातु मह्यम्।
क्षुत्तृट्कृशाङ्गी मलिनामलक्ष्मीं तवाग्रजां तामुतनाशयामि।
सर्वामभूतिं ह्यसमृद्धिमम्बे गृहाच्च निष्कासय मे द्रुतं त्वम्।
केनाप्यधर्षाम्मथ गन्धचिह्नां पुष्टां गवाश्वादियुतां च नित्यम्।
पद्मालये सर्वजनेश्वरीं तां प्रत्याह्वयेऽहं खलु मत्समीपम्।
लभेमहि श्रीमनसश्च कामं वाचस्तु सत्यं च सुकल्पितं वै।
अन्नस्य भक्ष्यं च पयः पशूनां सम्पद्धि मय्याश्रयतां यशश्च।
मयि प्रसादं कुरु कर्दम त्वं प्रजावती श्रीरभवत्त्वया हि।
कुले प्रतिष्ठापय में श्रियं वै त्वन्मातरं तामुत पद्ममालाम्।
स्निग्धानि चापोऽभिसृजन्त्वजस्रं चिक्लीतवासं कुरु मद्गृहे त्वम् ।
कुले श्रियं मातरमाशुमेऽद्य श्रीपुत्र संवासयतां च देवीम्।
तां पिङ्गलां पुष्करिणीं च लक्ष्मीमाद्रां च पुष्टिं शुभपद्ममालाम्।
चन्द्रप्रकाशां च हिरण्यरूपां मदर्थमाकारय जातवेदः।
आद्रां तथा यष्टिकरां सुवर्णां तां यष्टिरूपामथ हेममालाम्।
सूर्यप्रकाशां च हिरण्यरूपां मदर्थमाकारय जातवेदः।
यस्यां प्रभूतं कनकं च गावो दास्यस्तुरङ्गान्पुरुषांश्च सत्याम्।
विन्देयमाशु ह्यनपायिनीं तां मदर्थमाकारय जातवेदः।
श्रियः पञ्चदशश्लोकं सूक्तं पौराणमन्वहम्।
यः पठेज्जुहुयाच्चाज्यं श्रीयुतः सततं भवेत्।

श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम् पाठ की विधि

  • समय: प्रातःकाल या संध्या के समय शांत वातावरण में पाठ करना श्रेष्ठ होता है।
  • स्थान: देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठकर पाठ करें।
  • सामग्री: दीपक, पुष्प, धूप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  • विधि: शुद्ध मन और श्रद्धा के साथ प्रत्येक श्लोक का उच्चारण करें।

श्रीसूक्त सार लक्ष्मी स्तोत्रम् पाठ के लाभ

  • धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति
  • घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास
  • दरिद्रता और दुर्भाग्य का नाश
  • आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति

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