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शनिवार, फ़रवरी 22, 2025

श्री वेङ्कटेश्वर सुप्रभातम्

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Sri Venkateswara Suprabhatam

श्री वेङ्कटेश्वर सुप्रभातम् भगवान श्री वेङ्कटेश्वर (बालाजी) की आराधना के लिए प्रातः काल में गाया जाने वाला एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र विशेष रूप से तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रतिदिन सुबह भगवान को जगाने के लिए गाया जाता है।

रचना एवं रचयिता


इस दिव्य स्तोत्र की रचना प्रख्यात संस्कृत विद्वान श्री अन्नमाचार्य द्वारा की गई थी, जो भगवान वेंकटेश्वर के अनन्य भक्त थे। किंतु वर्तमान में जो सुप्रभातम् प्रचलित है, उसकी रचना प्रख्यात कवि व भक्त प्रभाती संकल्पम श्रीमान् वेंकटेश्वरदास द्वारा की गई मानी जाती है।

संरचना

यह स्तोत्र चार भागों में विभाजित है:

  1. सुप्रभातम् (29 श्लोक) – जिसमें भगवान का जागरण किया जाता है।
  2. स्तोत्रम् (11 श्लोक) – जिसमें उनकी महिमा का गुणगान किया गया है।
  3. प्रपत्ति (16 श्लोक) – जिसमें पूर्ण समर्पण भाव प्रकट किया गया है।
  4. मङ्गलाशासनम् (14 श्लोक) – जिसमें भगवान के प्रति मंगलकामना व्यक्त की गई है।

सुप्रभातम् का महत्व

  • यह स्तोत्र तिरुमला के वेंकटेश्वर मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 3:00 बजे गाया जाता है।
  • यह भगवान श्रीनिवास को जगाने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
  • इसकी ध्वनि और लय इतनी मधुर होती है कि यह भक्तों को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराती है।
  • मान्यता है कि इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से समस्त दुःख-दर्द समाप्त होते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

Sri Venkateswara Suprabhatam

कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वासन्ध्या प्रवर्तते ।
उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥ 1 ॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु ॥ 2 ॥

मातस्समस्त जगतां मधुकैटभारेः
वक्षोविहारिणि मनोहर दिव्यमूर्ते ।
श्रीस्वामिनि श्रितजनप्रिय दानशीले
श्री वेङ्कटेश दयिते तव सुप्रभातम् ॥ 3 ॥

तव सुप्रभातमरविन्द लोचने
भवतु प्रसन्नमुख चन्द्रमण्डले ।
विधि शङ्करेन्द्र वनिताभिरर्चिते
वृश शैलनाथ दयिते दयानिधे ॥ 4 ॥

अत्र्यादि सप्त ऋषयस्समुपास्य सन्ध्यां
आकाश सिन्धु कमलानि मनोहराणि ।
आदाय पादयुग मर्चयितुं प्रपन्नाः
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 5 ॥

पञ्चाननाब्ज भव षण्मुख वासवाद्याः
त्रैविक्रमादि चरितं विबुधाः स्तुवन्ति ।
भाषापतिः पठति वासर शुद्धि मारात्
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 6 ॥

ईशत्-प्रफुल्ल सरसीरुह नारिकेल
पूगद्रुमादि सुमनोहर पालिकानाम् ।
आवाति मन्दमनिलः सहदिव्य गन्धैः
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 7 ॥

उन्मील्यनेत्र युगमुत्तम पञ्जरस्थाः
पात्रावसिष्ट कदली फल पायसानि ।
भुक्त्वाः सलील मथकेलि शुकाः पठन्ति
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 8 ॥

तन्त्री प्रकर्ष मधुर स्वनया विपञ्च्या
गायत्यनन्त चरितं तव नारदोऽपि ।
भाषा समग्र मसत्-कृतचारु रम्यं
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 9 ॥

भृङ्गावली च मकरन्द रसानु विद्ध
झुङ्कारगीत निनदैः सहसेवनाय ।
निर्यात्युपान्त सरसी कमलोदरेभ्यः
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 10 ॥

योषागणेन वरदध्नि विमथ्यमाने
घोषालयेषु दधिमन्थन तीव्रघोषाः ।
रोषात्कलिं विदधते ककुभश्च कुम्भाः
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 11 ॥

पद्मेशमित्र शतपत्र गतालिवर्गाः
हर्तुं श्रियं कुवलयस्य निजाङ्गलक्ष्म्याः ।
भेरी निनादमिव भिभ्रति तीव्रनादम्
शेषाद्रि शेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ 12 ॥

श्रीमन्नभीष्ट वरदाखिल लोक बन्धो
श्री श्रीनिवास जगदेक दयैक सिन्धो ।
श्री देवता गृह भुजान्तर दिव्यमूर्ते
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 13 ॥

श्री स्वामि पुष्करिणिकाप्लव निर्मलाङ्गाः
श्रेयार्थिनो हरविरिञ्चि सनन्दनाद्याः ।
द्वारे वसन्ति वरनेत्र हतोत्त माङ्गाः
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 14 ॥

श्री शेषशैल गरुडाचल वेङ्कटाद्रि
नारायणाद्रि वृषभाद्रि वृषाद्रि मुख्याम् ।
आख्यां त्वदीय वसते रनिशं वदन्ति
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 15 ॥

सेवापराः शिव सुरेश कृशानुधर्म
रक्षोम्बुनाथ पवमान धनाधि नाथाः ।
बद्धाञ्जलि प्रविलसन्निज शीर्षदेशाः
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 16 ॥

धाटीषु ते विहगराज मृगाधिराज
नागाधिराज गजराज हयाधिराजाः ।
स्वस्वाधिकार महिमाधिक मर्थयन्ते
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 17 ॥

सूर्येन्दु भौम बुधवाक्पति काव्यशौरि
स्वर्भानुकेतु दिविशत्-परिशत्-प्रधानाः ।
त्वद्दासदास चरमावधि दासदासाः
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 18 ॥

तत्-पादधूलि भरित स्फुरितोत्तमाङ्गाः
स्वर्गापवर्ग निरपेक्ष निजान्तरङ्गाः ।
कल्पागमा कलनयाऽऽकुलतां लभन्ते
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 19 ॥

त्वद्गोपुराग्र शिखराणि निरीक्षमाणाः
स्वर्गापवर्ग पदवीं परमां श्रयन्तः ।
मर्त्या मनुष्य भुवने मतिमाश्रयन्ते
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 20 ॥

श्री भूमिनायक दयादि गुणामृताब्दे
देवादिदेव जगदेक शरण्यमूर्ते ।
श्रीमन्ननन्त गरुडादिभि रर्चिताङ्घ्रे
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 21 ॥

श्री पद्मनाभ पुरुषोत्तम वासुदेव
वैकुण्ठ माधव जनार्धन चक्रपाणे ।
श्री वत्स चिह्न शरणागत पारिजात
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 22 ॥

कन्दर्प दर्प हर सुन्दर दिव्य मूर्ते
कान्ता कुचाम्बुरुह कुट्मल लोलदृष्टे ।
कल्याण निर्मल गुणाकर दिव्यकीर्ते
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 23 ॥

मीनाकृते कमठकोल नृसिंह वर्णिन्
स्वामिन् परश्वथ तपोधन रामचन्द्र ।
शेषांशराम यदुनन्दन कल्किरूप
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 24 ॥

एलालवङ्ग घनसार सुगन्धि तीर्थं
दिव्यं वियत्सरिति हेमघटेषु पूर्णम् ।
धृत्वाद्य वैदिक शिखामणयः प्रहृष्टाः
तिष्ठन्ति वेङ्कटपते तव सुप्रभातम् ॥ 25 ॥

भास्वानुदेति विकचानि सरोरुहाणि
सम्पूरयन्ति निनदैः ककुभो विहङ्गाः ।
श्रीवैष्णवाः सतत मर्थित मङ्गलास्ते
धामाश्रयन्ति तव वेङ्कट सुप्रभातम् ॥ 26 ॥

ब्रह्मादय-स्सुरवरा-स्समहर्षयस्ते
सन्तस्सनन्दन-मुखास्त्वथ योगिवर्याः ।
धामान्तिके तव हि मङ्गलवस्तुहस्ताः
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 27 ॥

लक्श्मीनिवास निरवद्य गुणैक सिन्धो
संसारसागर समुत्तरणैक सेतो ।
वेदान्त वेद्य निजवैभव भक्त भोग्य
श्री वेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥ 28 ॥

इत्थं वृषाचलपतेरिह सुप्रभातं
ये मानवाः प्रतिदिनं पठितुं प्रवृत्ताः ।
तेषां प्रभात समये स्मृतिरङ्गभाजां
प्रज्ञां परार्थ सुलभां परमां प्रसूते ॥ 29 ॥

लोकप्रियता और प्रभाव

  • भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी यह स्तोत्र अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ गाया जाता है।
  • तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु इसे सुनने के लिए उपस्थित रहते हैं।
  • विभिन्न संगीतकारों और गायकों ने इसे अपनी मधुर ध्वनि में प्रस्तुत किया है, जिससे यह विश्वभर में लोकप्रिय हुआ है।

श्री वेङ्कटेश्वर सुप्रभातम् केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह भक्ति और श्रद्धा के साथ गाया जाए तो भगवान श्रीनिवास की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन को शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे जीवन की कठिनाइयों का सामना करना सरल हो जाता है।

गोविंदा! गोविंदा! 🙏

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