Sri Subrahmanya Kavacha Stotram
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम्(Sri Subrahmanya Kavacha Stotram) भगवान कार्तिकेय (श्री सुब्रह्मण्य स्वामी) का एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भक्तों की रक्षा, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसे श्री स्कन्द पुराण एवं अन्य ग्रंथों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाओं से रक्षा होती है तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान सुब्रह्मण्य का परिचय
भगवान सुब्रह्मण्य को कार्तिकेय, मुरुगन, स्कन्द, षण्मुख, गुह आदि नामों से भी जाना जाता है। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं तथा दैत्यों के संहारक माने जाते हैं। वे युद्ध के देवता हैं और तमिल संस्कृति में विशेष रूप से पूजनीय हैं।
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् का महत्त्व
- रक्षा कवच: यह स्तोत्र भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्त करने के लिए एक दिव्य कवच के रूप में कार्य करता है, जिससे व्यक्ति हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, भय और शत्रुओं से सुरक्षित रहता है।
- विजय और सफलता: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और जीवन की समस्याओं का समाधान होता है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने में सहायक होता है।
- ग्रह दोष निवारण: भगवान सुब्रह्मण्य की उपासना करने से राहु और केतु के दोषों का निवारण होता है और व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- कुंडली दोष निवारण: यदि किसी की जन्मकुंडली में मंगल दोष हो तो इस स्तोत्र के पाठ से लाभ मिलता है।
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् का पाठ करने की विधि
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान सुब्रह्मण्य के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक और धूप जलाकर बैठें।
- “ॐ श्री गणेशाय नमः” और “ॐ स्कन्दाय नमः” मंत्र का जप करें।
- कवच स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- अंत में भगवान सुब्रह्मण्य से रक्षा और कृपा की प्रार्थना करें।
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम्
अस्य श्रीसुब्रह्मण्यकवचस्तोत्रमहामंत्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप्छंदः, श्रीसुब्रह्मण्यो देवता, ॐ नम इति बीजं, भगवत इति शक्तिः, सुब्रह्मण्यायेति कीलकं, श्रीसुब्रह्मण्य प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
करन्यासः –
ॐ सां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ सीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ सूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ सैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अंगन्यासः –
ॐ सां हृदयाय नमः ।
ॐ सीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ सूं शिखायै वषट् ।
ॐ सैं कवचाय हुम् ।
ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सः अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥
ध्यानम् ।
सिंदूरारुणमिंदुकांतिवदनं केयूरहारादिभिः
दिव्यैराभरणैर्विभूषिततनुं स्वर्गादिसौख्यप्रदम् ।
अंभोजाभयशक्तिकुक्कुटधरं रक्तांगरागोज्ज्वलं
सुब्रह्मण्यमुपास्महे प्रणमतां सर्वार्थसिद्धिप्रदम् ॥ [भीतिप्रणाशोद्यतम्]
लमित्यादि पंचपूजा ।
ॐ लं पृथिव्यात्मने सुब्रह्मण्याय गंधं समर्पयामि ।
ॐ हं आकाशात्मने सुब्रह्मण्याय पुष्पाणि समर्पयामि ।
ॐ यं वाय्वात्मने सुब्रह्मण्याय धूपमाघ्रापयामि ।
ॐ रं अग्न्यात्मने सुब्रह्मण्याय दीपं दर्शयामि ।
ॐ वं अमृतात्मने सुब्रह्मण्याय स्वादन्नं निवेदयामि ।
ॐ सं सर्वात्मने सुब्रह्मण्याय सर्वोपचारान् समर्पयामि ।
कवचम् ।
सुब्रह्मण्योऽग्रतः पातु सेनानीः पातु पृष्ठतः ।
गुहो मां दक्षिणे पातु वह्निजः पातु वामतः ॥ 1 ॥
शिरः पातु महासेनः स्कंदो रक्षेल्ललाटकम् ।
नेत्रे मे द्वादशाक्षश्च श्रोत्रे रक्षतु विश्वभृत् ॥ 2 ॥
मुखं मे षण्मुखः पातु नासिकां शंकरात्मजः ।
ओष्ठौ वल्लीपतिः पातु जिह्वां पातु षडाननः ॥ 3 ॥
देवसेनापतिर्दंतान् चिबुकं बहुलोद्भवः ।
कंठं तारकजित्पातु बाहू द्वादशबाहुकः ॥ 4 ॥
हस्तौ शक्तिधरः पातु वक्षः पातु शरोद्भवः ।
हृदयं वह्निभूः पातु कुक्षिं पात्वंबिकासुतः ॥ 5 ॥
नाभिं शंभुसुतः पातु कटिं पातु हरात्मजः ।
ऊरू पातु गजारूढो जानू मे जाह्नवीसुतः ॥ 6 ॥
जंघे विशाखो मे पातु पादौ मे शिखिवाहनः ।
सर्वाण्यंगानि भूतेशः सर्वधातूंश्च पावकिः ॥ 7 ॥
संध्याकाले निशीथिन्यां दिवा प्रातर्जलेऽग्निषु ।
दुर्गमे च महारण्ये राजद्वारे महाभये ॥ 8 ॥
तुमुले रण्यमध्ये च सर्वदुष्टमृगादिषु ।
चोरादिसाध्वसेऽभेद्ये ज्वरादिव्याधिपीडने ॥ 9 ॥
दुष्टग्रहादिभीतौ च दुर्निमित्तादिभीषणे ।
अस्त्रशस्त्रनिपाते च पातु मां क्रौंचरंध्रकृत् ॥ 10 ॥
यः सुब्रह्मण्यकवचं इष्टसिद्धिप्रदं पठेत् ।
तस्य तापत्रयं नास्ति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ 11 ॥
धर्मार्थी लभते धर्ममर्थार्थी चार्थमाप्नुयात् ।
कामार्थी लभते कामं मोक्षार्थी मोक्षमाप्नुयात् ॥ 12 ॥
यत्र यत्र जपेद्भक्त्या तत्र सन्निहितो गुहः ।
पूजाप्रतिष्ठाकाले च जपकाले पठेदिदम् ॥ 13 ॥
तेषामेव फलावाप्तिः महापातकनाशनम् ।
यः पठेच्छृणुयाद्भक्त्या नित्यं देवस्य सन्निधौ ।
सर्वान्कामानिह प्राप्य सोऽंते स्कंदपुरं व्रजेत् ॥ 14 ॥
उत्तरन्यासः ॥
करन्यासः –
ॐ सां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ सीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ सूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ सैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अंगन्यासः –
ॐ सां हृदयाय नमः ।
ॐ सीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ सूं शिखायै वषट् ।
ॐ सैं कवचाय हुम् ।
ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सः अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥
इति श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् ।
श्री सुब्रह्मण्य कवच स्तोत्रम् भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी स्तोत्र है। जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ इसका पाठ करता है, उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत फलदायक है जो ग्रह दोषों, शत्रु बाधाओं या मानसिक तनाव से ग्रसित हैं।
ॐ श्री सुब्रह्मण्याय नमः। 🙏