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मंगलवार, फ़रवरी 4, 2025

श्यामला दंडकम् ஷ்யாமளா தண்டகம்

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Shyamala Dandakam In Hindi

श्यामला दंडकम्(Shyamala Dandakam) भारतीय संस्कृत साहित्य का एक अद्वितीय काव्य रचना है। यह स्तोत्र देवी श्यामला (या देवी सरस्वती) को समर्पित है, जो ज्ञान, कला, संगीत और साहित्य की देवी मानी जाती हैं। इस दंडक स्तोत्र की रचना महाकवि कालिदास द्वारा की गई मानी जाती है, जो संस्कृत साहित्य के महान कवि और विद्वान थे। हालाँकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि इसकी रचना किसी अन्य प्राचीन कवि द्वारा की गई हो सकती है, लेकिन इसकी शैली और भाषा कालिदास के समय की है।

“दंडकम्” संस्कृत छंदों की एक विशिष्ट शैली है जिसमें अत्यंत लंबी पंक्तियाँ होती हैं और इसे उच्चारण में विशेष लय और प्रवाह के साथ गाया जाता है। दंडक का शाब्दिक अर्थ है “लंबी कविता,” और यह छंदों के माध्यम से देवी या देवताओं की महिमा का वर्णन करता है। इसमें गेयता और नाद का विशेष महत्व होता है।

श्यामला दंडकम् का महत्त्व Shyamala Dandakam Importance

श्यामला दंडकम् का महत्त्व देवी श्यामला (सरस्वती) की स्तुति और उनके सौंदर्य, ज्ञान और दैवीय शक्तियों का वर्णन करने में है। इसे पढ़ने और सुनने से भक्तों को ज्ञान, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में प्रगति और समृद्धि प्राप्त होती है। इसे संस्कृत भाषा में सर्वाधिक मधुर और ललित काव्य रचनाओं में से एक माना जाता है।

श्यामला दंडकम् स्त्रोत का साहित्यिक सौंदर्य

श्यामला दंडकम् की भाषा अत्यंत सुस्पष्ट और गहन है। इसमें देवी श्यामला के स्वरूप, आभूषण, वस्त्र, संगीत-कला और उनके अद्वितीय ज्ञान का वर्णन किया गया है। निम्नलिखित विशेषताएँ इसे साहित्यिक दृष्टि से अनुपम बनाती हैं:

  1. आलंकारिक भाषा: श्यामला दंडकम् में अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, रूपक और उपमा जैसे अलंकार इसके छंदों को अलंकृत करते हैं।
  2. संगीतमयता: इसकी लय और नाद अत्यंत मधुर है, जिसे गाया जाए तो यह भक्तिमय और भावपूर्ण वातावरण उत्पन्न करता है।
  3. भावनात्मक गहराई: श्यामला दंडकम् न केवल देवी की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि भक्ति और श्रद्धा के भावों से ओत-प्रोत है।

श्यामला दंडकम् स्त्रोत Shyamala Dandakam – ஷ்யாமளா தண்டகம்

माणिक्यवीणामुपलालयन्तीं
मदालसां मञ्जुलवाग्विलासाम्|
माहेन्द्रनीलद्युतिकोमलाङ्गीं
मातङ्गकन्यां मनसा स्मरामि|
चतुर्भुजे चन्द्रकलावतंसे
कुचोन्नते कुङ्कुमरागशोणे|
पुण्ड्रेक्षुपाशाङ्कुशपुष्पबाण-
हस्ते नमस्ते जगदेकमातः|
माता मरकतश्यामा मातङ्गी मदशालिनी|
कुर्यात् कटाक्षं कल्याणी कदम्बवनवासिनी|
जय मातङ्गतनये जय नीलोत्पलद्युते|
जय सङ्गीतरसिके जय लीलाशुकप्रिये|
जय जननि सुधासमुद्रान्तरुद्यन्मणीद्वीप-
संरूढबिल्वाटवीमध्यकल्पद्रुमाकल्प-
कादम्बकान्तारवासप्रिये कृत्तिवासप्रिये सर्वलोकप्रिये।
सादरारब्धसङ्गीतसम्भावनासम्भ्रमालोल-
नीपस्रगाबद्धचूलीसनाथत्रिके सानुमत्पुत्रिके।
शेखरीभूतशीतांशुरेखामयूखावली-
बद्धसुस्निग्धनीलालकश्रेणिश‍ृङ्गारिते लोकसम्भाविते।
कामलीलाधनुःसन्निभभ्रूलतापुष्प-
सन्दोहसन्देहकृल्लोचने वाक्सुधासेचने।
चारुगोरोचनापङ्ककेली-
ललामाभिरामे सुरामे रमे।
प्रोल्लसद्ध्वालिकामौक्तिकश्रेणिका-
चन्द्रिकामण्डलोद्भासिलावण्यगण्ड-
स्थलन्यस्तकस्तूरिकापत्ररेखासमुद्भूत-
सौरभ्यसंम्भ्रान्तभृङ्गाङ्गनागीत-
सान्द्रीभवन्मन्दतन्त्रीस्वरे सुस्वरे भास्वरे।
वल्लकीवादनप्रक्रियालोलताली-
दलाबद्धताटङ्कभूषाविशेषान्विते सिद्धसम्मानिते।
दिव्यहालामदोद्वेलहेलालसच्चक्षु-
रान्दोलनश्रीसमाक्षिप्तकर्णैकनीलोत्पले श्यामले।
पूरिताशेषलोकाभिवाञ्छाफले श्रीफले।
स्वेदबिन्दूल्लसद्फाललावण्यनिष्यन्द-
सन्दोहसन्देहकृन्नासिकामौक्तिके सर्वविश्वात्मिके सर्वसिद्ध्यात्मिके कालिके।
मुग्धमन्दस्मितोदारवक्त्रस्फुरत्पूग-
ताम्बूलकर्पूरखण्डोत्करे ज्ञानमुद्राकरे।
सर्वसम्पत्करे पद्मभास्वत्करे श्रीकरे।
कुन्दपुष्पद्युतिस्निग्धदन्तावलीनिर्मलालोल-
कल्लोलसम्मेलनस्मेरशोणाधरे चारुवीणाधरे पक्वबिम्बाधरे।
सुललितनवयौवनारम्भचन्द्रोदयोद्वेल-
लावण्यदुग्धार्णवाविर्भवत्कम्बु-
बिम्बोकभृत्कन्थरे सत्कलामन्दिरे मन्थरे।
दिव्यरत्नप्रभाबन्धुरच्छन्नहारादि-
भूषासमुदद्योतमानानवद्याङ्गशोभे शुभे।
रत्नकेयूररश्मिच्छटापल्लव-
प्रोल्लसद्दोल्लताराजिते योगिभिः पूजिते।
विश्वदिङ्मण्डलव्याप्तमाणिक्यतेजः-
स्फुरत्कङ्कणालङ्कृते विभ्रमालङ्कृते साधुभिः पूजिते।
वासरारम्भवेलासमुज्जृम्भमाणारविन्द-
प्रतिद्वन्द्विपाणिद्वये सन्ततोद्यद्दये अद्वये।
दिव्यरत्नोर्मिकादीधितिस्तोम-
सन्ध्यायमानाङ्गुलीपल्लवोद्य-
न्नखेन्दुप्रभामण्डले।
सन्नुताखण्डले चित्प्रभामण्डले प्रोल्लसत्कुण्डले।
तारकाराजिनीकाशहारावलि-
स्मेरचारुस्तनाभोगभारानमन्मध्य-
वल्लीवलिच्छेदवीचीसमुद्यत्समुल्लास-
सन्दर्शिताकारसौन्दर्यरत्नाकरे वल्लकीभृत्करे किङ्करश्रीकरे।
हेमकुम्भोपमोत्तुङ्गवक्षोज-
भारावनम्रे त्रिलोकावनम्रे।
लसद्वृत्तगम्भीरनाभीसरस्तीर-
शैवालशङ्काकरश्याम-
रोमावलीभूषणे मञ्जुसम्भाषणे।
चारुशिञ्चत्कटीसूत्रनिर्भत्सितानङ्ग-
लीलधनुश्शिञ्चिनीडम्बरे दिव्यरत्नाम्बरे।
पद्मरागोल्लसन्मेखलामौक्तिक-
श्रोणिशोभाजितस्वर्ण-
भूभृत्तले चन्द्रिकाशीतले।
विकसितनवकिम्शुकाताम्रदिव्याम्शुक-
च्छन्नचारूरुशोभापराभूतसिन्दूर-
शोणायमानेन्द्रमातङ्गहस्मार्गले वैभवानर्ग्गले।
श्यामले कोमलस्निग्द्धनीलोत्पलोत्पादि-
तानङ्गतूणीरशङ्काकरोदारजङ्घालते चारुलीलागते।
नम्रदिक्पालसीमन्तिनीकुन्तलस्निग्द्ध-
नीलप्रभापुञ्चसञ्जातदुर्वाङ्कुराशङ्क-
सारङ्गसंयोगरिङ्खन्नखेन्दूज्ज्वले प्रोज्ज्वले।
निर्मले प्रह्वदेवेशलक्ष्मीशभूतेश-
तोयेशवाणीशकीनाशदैत्येशयक्षेश-
वाय्वग्निकोटीरमाणिक्यसम्हृष्ट-
बालातपोद्दामलाक्षारसारुण्य-
तारुण्यलक्ष्मीगृहीताङ्घ्रिपद्म्मे सुपद्मे उमे।
सुरुचिरनवरत्नपीठस्थिते सुस्थिते।
रत्नपद्मासने रत्नसिंहासने।
शङ्खपद्मद्वयोपाश्रिते विश्रुते।
तत्र विघ्नेशदुर्गावटुक्षेत्रपालैर्युते मत्तमातङ्गकन्यासमूहान्विते भैरवैरष्टभिर्वेष्टिते।
मञ्चुलामेनकाद्यङ्गनामानिते देवि वामादिभिः शक्तिभिः सेविते।
धात्रि लक्ष्म्यादिशक्त्यष्टकैः संयुते मातृकामण्डलैर्मण्डिते।
यक्षगन्धर्वसिद्धाङ्गना-
मण्डलैरर्चिते।
भैरवीसंवृते पञ्चबाणात्मिके पञ्चबाणेन रत्या च संभाविते।
प्रीतिभाजा वसन्तेन चानन्दिते भक्तिभाजं परं श्रेयसे कल्पसे।
योगिनां मानसे द्योतसे छन्दसामोजसा भ्राजसे।
गीतविद्याविनोदाति-
तृष्णेन कृष्णेन सम्पूज्यसे।
भक्तिमच्चेतसा वेधसा स्तूयसे विश्वहृद्येन वाद्येन विद्याधरैर्गीयसे।
श्रवणहरदक्षिणक्वाणया वीणया किन्नरैर्गीयसे।
यक्षगन्धर्वसिद्धाङ्गनामण्डलैरर्च्यसे।
सर्वसौभाग्यवाञ्छावतीभि-
र्वधूभिस्सुराणां समाराध्यसे।
सर्वविद्याविशेषत्मकं चाटुगाथा समुच्चारणाकण्ठमूलोल्ल-
सद्वर्णराजित्रयं कोमलश्यामलोदारपक्षद्वयं तुण्डशोभातिदूरी-
भवत्किंशुकं तं शुकं लालयन्ती परिक्रीडसे।
पाणिपद्मद्वयेनाक्षमालामपि स्फाटिकीं ज्ञानसारात्मकं पुस्तकञ्चङ्कुशं पाशमाबिभ्रती तेन सञ्चिन्त्यसे।
तस्य वक्त्रान्तरात् गद्यपद्यात्मिका भारती निःसरेद् येन वाध्वंसनादा कृतिर्भाव्यसे।
तस्य वश्या भवन्ति स्त्रियः पूरुषाः।
येन वा शातकम्बद्युतिर्भाव्यसे।
सोऽपि लक्ष्मीसहस्रैः परिक्रीडते।
किन्न सिद्ध्येद्वपुःश्यामलं कोमलं चन्द्रचूडान्वितं तावकं ध्यायतः।
तस्य लीला सरोवारिधीः।
तस्य केलीवनं नन्दनम्।
तस्य भद्रासनं भूतलम्।
तस्य गीर्देवता किङ्करी।
तस्य चाज्ञाकरी श्रीः स्वयम्।
सर्वतीर्थात्मिके सर्वमन्त्रात्मिके।
सर्वयन्त्रात्मिके सर्वतन्त्रात्मिके।
सर्वचक्रात्मिके सर्वशक्त्यात्मिके।
सर्वपीठात्मिके सर्ववेदात्मिके।
सर्वविद्यात्मिके सर्वयोगात्मिके।
सर्ववर्णात्मिके सर्वगीतात्मिके।
सर्वनादात्मिके सर्वशब्दात्मिके।
सर्वविश्वात्मिके सर्ववर्गात्मिके।
सर्वसर्वात्मिके सर्वगे सर्वरूपे।
जगन्मातृके पाहि मां पाहि मां पाहि माम्।
देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमः।

श्यामला दंडकम् स्त्रोत के लाभ Shyamala Dandakam Benifits

  1. ज्ञान की प्राप्ति: इसे पढ़ने से बुद्धि और स्मरणशक्ति बढ़ती है।
  2. संगीत और कला में प्रगति: यह स्तोत्र देवी श्यामला, जो कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं, उनकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम है।
  3. आध्यात्मिक शांति: इसे सुनने और गाने से मन में शांति और सकारात्मकता का संचार होता है।

श्यामला दंडकम् स्त्रोत की लोकप्रियता

श्यामला दंडकम् विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि और वसंत पंचमी के अवसर पर गाया जाता है। यह मंदिरों, विद्वानों के सभा-स्थलों और संगीत समारोहों में अत्यंत प्रचलित है। दक्षिण भारत में, विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में, यह स्तोत्र अत्यंत श्रद्धा से गाया जाता है।

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