श्री गिरिराज वास मैं पाऊं Shree Giriraj Vas Me Pau Vraj Taj Vaikunt Na Jau
श्री गिरिराज वास मैं पाऊं, ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं।
विचरूं मैं लता पतन में
गिरिराज तरहटी बन में
आन्यौर जतीपुरा जन में
राधाकुंड गोवरधन में
कुंडन के कर असनान, करूं जलपान
परयौ रहूं रज में
दीजौ प्रभु बारंबार जनम मोहे ब्रज में।।
को कछु मिले प्रसाद,पाय कै गोविन्द के गुण गाउं…..ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं
पक्षिन में मोर बनैयो,कदमन में वास करैयौ।
गिरवर पै नाच नचैयौ,करूना करके कौह कैयौ।।
झालर घंटन की घोर, करूं सुन शोर, शब्द शंखन के
धारें मन मोहन मुकुट मोर पंखन के।।
नेत्र सुफल जब होंय करूं दरसन निज हिय हरसाउं…ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं
पशु आदिक मौहे रचैयौ,पर ब्रज को वास बसैयौ।
मानसी गंगा जल प्य्इयौ,रज में विश्राम करैयौ।।
निज मंदिर को कर वैल,करूंगौ टहल, चलूं गाड़ी में
मैं चरौ करूं परिक्रमा की झाड़ी में।।
गाड़ी में सामान प्रभु को लाद लाद के लाउं…ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं
जो कदंब मोहे किजौ,तो श्याम ढाक में दीजौ
दधि लूट लूट के लीजौ,दौना भर भर भर के पीजौ।।
मैं सदा करूं ब्रजवास,रही आस,प्रभु मेरे मन में
निज जान दास मोय राख पास चरनन में।।
“घासीराम ” नाम रट छीतर बार बार समझाऊं…ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं
अरे गिरिराज वास मैं पाऊं ब्रज तज बैकुंठ न जाऊं।।