शिवाष्टकम्(Shivashtakam) भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाला प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह आठ श्लोकों का समूह है, जो भगवान शिव की आराधना और उनके गुणों की स्तुति में लिखा गया है। शिवाष्टकम् का पाठ भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त करने, आंतरिक शांति, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यधिक लाभकारी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि शिवाष्टकम् की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी, जो भारतीय दर्शन के महान आचार्य थे। आदि शंकराचार्य ने वेदांत को सरल और सुगम रूप में प्रस्तुत करने के लिए कई स्तोत्रों की रचना की, जिनमें से शिवाष्टकम् एक है।
शिवाष्टकम् का अर्थ Shivashtakam Meaning
शिवाष्टकम् में “अष्टक” का अर्थ है आठ। इस स्तोत्र में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनके गुणों, और उनके अनंत दयालुता की महिमा का वर्णन किया गया है। शिवाष्टकम् के प्रत्येक श्लोक में शिव को प्रणाम किया गया है और उनके प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति की गई है।
शिवाष्टकम् का महत्व Shivashtakam Importance
शिवाष्टकम् का पाठ शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ और लाभकारी माना गया है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है बल्कि जीवन की समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी सहायक होता है। ऐसा कहा जाता है कि नियमित रूप से शिवाष्टकम् का पाठ करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है और भक्त का जीवन शांतिपूर्ण बनता है।
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शिवाष्टकम् हिंदी में Shivashtakam In Hindi
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानंद भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ १ ॥
गले रुंडमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम् ।
जटाजूट गंगोत्तरंगैर्विशालं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ २ ॥
मुदामाकरं मंडनं मंडयंतं महा मंडलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ३ ॥
वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ४ ॥
गिरींद्रात्मजा संगृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम् ।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वंद्यमानं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ५ ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदांभोज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ६ ॥
शरच्चंद्र गात्रं गणानंदपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ७ ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशाने वसंतं मनोजं दहंतं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ ८ ॥
स्वयं यः प्रभाते नरश्शूल पाणे पठेत् स्तोत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् ।
सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥