शांति दुर्गा स्तोत्रम्
शांति दुर्गा स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली और श्रद्धा से पूर्ण स्तोत्र है, जो माँ दुर्गा के शांत, कल्याणकारी और करुणामयी स्वरूप को समर्पित है। इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से मानसिक शांति, भय निवारण, गृह क्लेश से मुक्ति और साधक के जीवन में आध्यात्मिक स्थिरता के लिए किया जाता है।
यह स्तोत्र सामान्यतः दक्षिण भारत में “शांति दुर्गा” नामक देवी के रूप में पूजित देवी के लिए प्रसिद्ध है, विशेषकर गोवा में “शांतादुर्गा” (Shantadurga) मंदिर के कारण। यह देवी शक्ति का एक अद्वितीय रूप हैं जो शिव और विष्णु के बीच संतुलन बनाती हैं।
देवी शांतादुर्गा का परिचय
- देवी शांति दुर्गा को शक्ति, सौम्यता, करुणा और न्याय की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
- यह देवी दुर्गा का वह रूप हैं जो अहंकार, भय, असंतुलन, और कलह को शांत कर जीवन में संतुलन लाती हैं।
- गोवा के पोंडा क्षेत्र में स्थित शांतादुर्गा मंदिर इस देवी के प्रति श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है।
शांति दुर्गा स्तोत्रम् का स्वरूप
यह स्तोत्र माँ दुर्गा की शांतमयी शक्ति का वर्णन करता है, जिसमें वे:
- रक्षण करने वाली,
- भय का नाश करने वाली,
- कलह का अंत करने वाली,
- भक्ति और शांति देने वाली
रूप में स्तुतिगीत में प्रकट होती हैं।
इस स्तोत्र में माँ को करुणा की साक्षात मूर्ति कहा गया है, जो भक्त के कष्ट हर लेती हैं और उसे सुख, वैभव और शांति प्रदान करती हैं।
Shanti Durga Stotram
आदिशक्तिर्महामाया सच्चिदानन्दरूपिणी ।
पालनार्थं स्वभक्तानां शान्तादुर्गाभिधामता ॥
नमो दुर्गे महादुर्गे नवदुर्गास्वरूपिणि ।
कैवल्यवासिनि श्रीमच्छान्तादुर्गे नमोऽस्तु ते ॥
शान्त्यै नमोऽस्तु शरणागतरक्षणायै
कान्त्यै नमोऽस्तु कमनीयगुणाश्रयायै ।
क्षात्यै नमोऽस्तु दुरितक्षयकारणायै
धान्त्यै नमोऽस्तु धनधान्यसमृद्धिदायै ॥
शान्तादुर्गे नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके ।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय ॥
शान्तिदुर्गे जगन्मातः शरणागतवत्सले ।
कैवल्यवासिनी देवि शान्ते दुर्गे नमोऽस्तु ते ॥
शांति दुर्गा स्तोत्रम् पाठ विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- माँ दुर्गा या शांति दुर्गा के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीप जलाएं।
- यदि संभव हो तो लाल पुष्प अर्पित करें।
- शांत मन से इस स्तोत्र का पाठ करें विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार और नवरात्रि के दिनों में।
शांति दुर्गा स्तोत्रम् का फल
- घर-परिवार में प्रेम, समृद्धि और सुरक्षा की अनुभूति होती है।
- रोग, शोक, दुख, भय आदि जीवन से दूर होते हैं।
- साधक को आत्मिक शक्ति और दृढ़ विश्वास प्राप्त होता है।
- संकटों से रक्षा और माँ की कृपा जीवन में बनी रहती है।