Sasaswathi Nadi Stotram In Hindi
सरस्वती नदी स्तोत्रम्(Sasaswathi Nadi Stotram) एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है जो माँ सरस्वती नदी की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र देवी सरस्वती के जल रूप की स्तुति करता है, जो पवित्रता, ज्ञान और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। प्राचीन काल में सरस्वती नदी को वैदिक काल की महानतम नदियों में से एक माना जाता था, और इसका उल्लेख कई वेदों एवं पुराणों में मिलता है।
सरस्वती नदी का महत्त्व
- सरस्वती नदी को ज्ञान, शुद्धता और आध्यात्मिक चेतना की प्रतीक माना जाता है।
- यह नदी वैदिक काल में ऋषियों, मुनियों और विद्वानों की साधना स्थली थी।
- सरस्वती को तीर्थों की माता कहा जाता है, और इसे गंगा-यमुना के साथ त्रिवेणी संगम का हिस्सा माना जाता है।
- पुराणों में इसे मोक्षदायिनी कहा गया है, यानी जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने वाली है।
सरस्वती नदी स्तोत्रम् की उत्पत्ति और रचना
सरस्वती नदी स्तोत्रम् एक प्राचीन स्तोत्र है, जिसमें इस पवित्र नदी की महिमा, दिव्यता और उसकी शक्ति का वर्णन किया गया है। इसे ऋषियों और मुनियों ने सरस्वती नदी की स्तुति करने के लिए रचा था।
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो ज्ञान, बुद्धि, स्मरण शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति चाहते हैं।
सरस्वती नदी स्तोत्रम् का अर्थ और व्याख्या
- सरस्वती के जल की पवित्रता
- इस स्तोत्र में माँ सरस्वती के जल को अमृत के समान पवित्र और दिव्य बताया गया है।
- इसका जल पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
- ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती
- देवी सरस्वती को वाणी, संगीत और विद्या की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
- यह स्तोत्र माँ सरस्वती के रूप को नदी के रूप में पूजता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि ज्ञान की धारा निरंतर प्रवाहित होती रहनी चाहिए।
- सरस्वती का वेदों और ऋषियों से संबंध
- स्तोत्र में यह बताया गया है कि सरस्वती नदी वेदों की जननी है, क्योंकि वेदों की रचना उन्हीं ऋषियों ने की जो इस नदी के किनारे तपस्या करते थे।
- यह स्तोत्र ऋग्वेद और यजुर्वेद में वर्णित सरस्वती नदी की महिमा को दोहराता है।
- सरस्वती का त्रिवेणी संगम में स्थान
- प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि सरस्वती गंगा और यमुना के साथ प्रयागराज के संगम में विलीन हो जाती हैं।
- इस स्तोत्र में इस अदृश्य प्रवाह का उल्लेख किया गया है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम दर्शाता है।
Sasaswathi Nadi Stotram
वाग्वादिनी पापहरासि भेदचोद्यादिकं मद्धर दिव्यमूर्ते।
सुशर्मदे वन्द्यपदेऽस्तुवित्तादयाचतेऽहो मयि पुण्यपुण्यकीर्ते।
देव्यै नमः कालजितेऽस्तु मात्रेऽयि सर्वभाऽस्यखिलार्थदे त्वम्।
वासोऽत्र ते नः स्थितये शिवाया त्रीशस्य पूर्णस्य कलासि सा त्वम्।
नन्दप्रदे सत्यसुतेऽभवा या सूक्ष्मां धियं सम्प्रति मे विधेहि।
दयस्व सारस्वजलाधिसेवि- नृलोकपेरम्मयि सन्निधेहि।
सत्यं सरस्वत्यसि मोक्षसद्म तारिण्यसि स्वस्य जनस्य भर्म।
रम्यं हि ते तीरमिदं शिवाहे नाङ्गीकरोतीह पतेत्स मोहे।
स्वभूतदेवाधिहरेस्मि वा ह्यचेता अपि प्रज्ञ उपासनात्ते।
तीव्रतैर्जेतुमशक्यमेव तं निश्चलं चेत इदं कृतं ते।
विचित्रवाग्भिर्ज्ञ- गुरूनसाधुतीर्थाश्ययां तत्त्वत एव गातुम्।
रजस्तनुर्वा क्षमतेध्यतीता सुकीर्तिरायच्छतु मे धियं सा।
चित्राङ्गि वाजिन्यघनाशिनीयमसौ सुमूर्तिस्तव चाम्मयीह।
तमोघहं नीरमिदं यदाधीतीतिघ्न मे केऽपि न ते त्यजन्ति।
सद्योगिभावप्रतिमं सुधाम नान्दीमुखं तुष्टिदमेव नाम।
मन्त्रो व्रतं तीर्थमितोऽधिकं हि यन्मे मतं नास्त्यत एव पाहि।
त्रयीतपोयज्ञमुखा नितान्तं ज्ञं पान्ति नाधिघ्न इमेऽज्ञमार्ये।
कस्त्वल्पसंज्ञं हि दयेत यो नो दयार्हयार्योझ्झित ईशवर्ये।
समस्तदे वर्षिनुते प्रसीद धेह्यस्यके विश्वगते करं ते।
रक्षस्व सुष्टुत्युदिते प्रमत्तः सत्यं न विश्वान्तर एव मत्तः।
स्वज्ञं हि मां धिक्कृतमत्र विप्ररत्नैर्वरं विप्रतरं विधेहि।
तीक्ष्णद्युतेर्याऽधिरुगिष्ट- वाचोऽस्वस्थाय मे रात्विति ते रिरीहि।
स्तोतुं न चैव प्रभुरस्मि वेद तीर्थाधिपे जन्महरे प्रसीद।
त्रपैव यत्सुष्टुतयेस्त्यपायात् सा जाड्यहातिप्रियदा विपद्भ्यः।
सरस्वती नदी स्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ
- ज्ञान और विद्या की प्राप्ति – विद्यार्थी और विद्वान इसका पाठ करके बुद्धि और स्मरण शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
- पापों का नाश – यह स्तोत्र मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है।
- मोक्ष की प्राप्ति – सरस्वती की स्तुति करने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
- वाणी की शक्ति – यह स्तोत्र वाणी को मधुर, प्रभावशाली और सत्यनिष्ठ बनाता है।
- तीर्थ स्नान के समान फल – यदि कोई सरस्वती नदी में स्नान न कर सके, तो इस स्तोत्र के पाठ से उसे सरस्वती स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
सरस्वती नदी स्तोत्रम् का पाठ करने का सही तरीका
- सुबह के समय, स्नान करने के बाद, पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- यदि संभव हो, तो गंगा, यमुना या किसी पवित्र जल स्रोत के पास बैठकर इसे पढ़ें।
- पाठ करते समय सरस्वती देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
- विद्यार्थियों के लिए इसे नियमित रूप से पढ़ना बहुत लाभकारी होता है।