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रविवार, नवम्बर 16, 2025

कावेरी स्तोत्रम्

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Kaveri Stotram In Hindi

कावेरी स्तोत्रम्(Kaveri Stotram) एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो माँ कावेरी नदी की महिमा का वर्णन करता है। कावेरी नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। यह स्तोत्र भक्तों द्वारा माँ कावेरी की कृपा प्राप्त करने, पापों से मुक्ति पाने, और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए गाया जाता है।

कावेरी नदी का धार्मिक महत्व

कावेरी नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र स्थान प्राप्त है। यह नदी कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसे भगवान ब्रह्मा, ऋषि अगस्त्य, और स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त है।

माँ कावेरी से जुड़ी प्रमुख मान्यताएँ

  1. दक्षिण भारत की गंगा – कावेरी नदी का जल उतना ही पवित्र माना जाता है जितना गंगा का।
  2. पापों का नाश – इस नदी में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  3. मुक्ति प्रदान करने वाली नदी – कावेरी जल का आचमन करने से मोक्ष प्राप्ति संभव होती है।
  4. श्रीरंगम और अन्य तीर्थ स्थल – कावेरी तट पर अनेक पवित्र स्थल स्थित हैं, जैसे श्रीरंगम (रंगनाथस्वामी मंदिर), तालकावेरी (कावेरी उद्गम स्थल), और मायावारम।

कावेरी स्तोत्रम् के लाभ

  1. पापों का नाश – इसे श्रद्धा से पढ़ने से पुराने पापों से मुक्ति मिलती है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति – यह स्तोत्र भक्त के मन को शांत और सात्त्विक बनाता है।
  3. पवित्रता और शुद्धि – कावेरी जल की भांति यह स्तोत्र आत्मा को पवित्र करता है।
  4. सुख-समृद्धि की प्राप्ति – माँ कावेरी की कृपा से घर-परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।
  5. मोक्ष प्राप्ति में सहायक – माँ कावेरी की स्तुति करने से जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है।

कावेरी स्तोत्रम् के पाठ की विधि

  • प्रातःकाल या संध्या के समय शुद्ध मन से पाठ करना उत्तम होता है।
  • इसे माँ कावेरी के तट पर या उनके चित्र के समक्ष बैठकर पढ़ने से विशेष फल मिलता है।
  • सोमवार और पूर्णिमा के दिन इसका पाठ अधिक शुभ माना जाता है।
  • स्नान के समय या जल से जुड़ी किसी भी पूजा में इसे पढ़ने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

Kaveri Stotram

कथं सह्यजन्ये सुरामे सजन्ये
प्रसन्ने वदान्या भवेयुर्वदान्ये।

सपापस्य मन्ये गतिञ्चाम्ब मान्ये
कवेरस्य धन्ये कवेरस्य कन्ये।

कृपाम्बोधिसङ्गे कृपार्द्रान्तरङ्गे
जलाक्रान्तरङ्गे जवोद्योतरङ्गे।

नभश्चुम्बिवन्येभ- सम्पद्विमान्ये
नमस्ते वदान्ये कवेरस्य कन्ये।

समा ते न लोके नदी ह्यत्र लोके
हताशेषशोके लसत्तट्यशोके।

पिबन्तोऽम्बु ते के रमन्ते न नाके
नमस्ते वदान्ये कवेरस्य कन्ये।

महापापिलोकानपि स्नानमात्रान्
महापुण्यकृद्भिर्महत्कृत्यसद्भिः।

करोष्यम्ब सर्वान् सुराणां समानान्
नमस्ते वदान्ये कवेरस्य कन्ये।

अविद्यान्तकर्त्री विशुद्धप्रदात्री
सस्यस्यवृद्धिं तथाऽऽचारशीलम्।

ददास्यम्ब मुक्तिं विधूय प्रसक्तिं
नमस्ते वदान्ये कवेरस्य कन्ये।

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