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शुक्रवार, मार्च 7, 2025

सर्प सूक्तम्

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Sarpa Suktam in Hindi

सर्प सूक्तम्(Sarpa Suktam Hindi) ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण सूक्त है जो सर्पों (साँपों) से संबंधित है। यह सूक्त सर्पों की पूजा और उनके प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। इसमें सर्पों को देवताओं के रूप में मान्यता दी गई है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मंत्रों का उल्लेख किया गया है। यह सूक्त वैदिक संस्कृति में सर्पों के प्रति आदर और भय के मिश्रित भाव को प्रकट करता है।

सर्प सूक्तम् का महत्व

  1. सर्पों की पूजा: वैदिक काल में सर्पों को दिव्य शक्ति के रूप में माना जाता था। उन्हें रक्षक और विनाशक दोनों रूपों में देखा जाता था। सर्प सूक्तम् में सर्पों की पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।
  2. सर्पों से सुरक्षा: इस सूक्त में सर्पों के क्रोध से बचने और उनकी सुरक्षा प्राप्त करने के लिए मंत्रों का उल्लेख है। यह माना जाता था कि सर्पों का क्रोध जहरीला और घातक हो सकता है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करना आवश्यक था।
  3. आयुर्वेदिक संदर्भ: सर्प सूक्तम् में सर्पदंश के उपचार के लिए भी मंत्रों का उल्लेख है। यह वैदिक काल में आयुर्वेदिक ज्ञान का एक हिस्सा था।
  4. प्रकृति और जीवन का प्रतीक: सर्पों को प्रकृति और जीवन चक्र का प्रतीक माना जाता है। उनका कुंडलिनी रूप आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है।

सर्प सूक्तम् का उपयोग

  • सर्पदंश के उपचार में: इस सूक्त के मंत्रों का उपयोग सर्पदंश के उपचार के लिए किया जाता था।
  • सर्पों की पूजा में: सर्पों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए इस सूक्त का पाठ किया जाता था।
  • आध्यात्मिक उन्नति के लिए: सर्पों को कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक मानकर इस सूक्त का उपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी किया जाता है।

सर्प सूक्तम् – Sarpa Suktam Hindi


नमो॑ अस्तु स॒र्पेभ्यो॒ ये के च॑ पृथि॒वी मनु॑ ।
ये अ॒न्तरि॑क्षे॒ ये दि॒वि तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ । (तै.सं.४.२.३)

ये॑-ऽदो रो॑च॒ने दि॒वो ये वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिषु॑ ।
येषा॑म॒प्सु सदः॑ कृ॒त-न्तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ।

या इष॑वो यातु॒धाना॑नां॒-येँ वा॒ वन॒स्पती॒ग्ं॒‍ रनु॑ ।
ये वा॑-ऽव॒टेषु॒ शेर॑ते॒ तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ।

इ॒दग्ं स॒र्पेभ्यो॑ ह॒विर॑स्तु॒ जुष्टम्᳚ ।
आ॒श्रे॒षा येषा॑मनु॒यन्ति॒ चेतः॑ ।
ये अ॒न्तरि॑क्ष-म्पृथि॒वी-ङ्क्षि॒यन्ति॑ ।
ते न॑स्स॒र्पासो॒ हव॒माग॑मिष्ठाः ।
ये रो॑च॒ने सूर्य॒स्यापि॑ स॒र्पाः ।
ये दिव॑-न्दे॒वीमनु॑स॒न्चर॑न्ति ।
येषा॑माश्रे॒षा अ॑नु॒यन्ति॒ कामम्᳚ ।
तेभ्य॑स्स॒र्पेभ्यो॒ मधु॑मज्जुहोमि ॥ २ ॥

नि॒घृष्वै॑रस॒मायु॑तैः ।
कालैर्​हरित्व॑माप॒न्नैः ।
इन्द्राया॑हि स॒हस्र॑युक् ।
अ॒ग्निर्वि॒भ्राष्टि॑वसनः ।
वा॒युश्वेत॑सिकद्रु॒कः ।
सं॒​वँ॒थ्स॒रो वि॑षू॒वर्णैः᳚ ।
नित्या॒स्ते-ऽनुच॑रास्त॒व ।
सुब्रह्मण्योग्ं सुब्रह्मण्योग्ं सु॑ब्रह्मण्योग्म् ॥ ३ ॥

ॐ शान्ति-श्शान्ति-श्शान्तिः ॥

सर्प सूक्तम् वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो सर्पों के प्रति मनुष्य के भय और आदर को दर्शाता है। यह सूक्त सर्पों की दिव्य शक्ति को स्वीकार करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। सर्पों को प्रकृति और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक मानकर, इस सूक्त का उपयोग शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।

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