22.2 C
Gujarat
शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2025

सप्तशती सारा दुर्गा स्तोत्रम्

Post Date:

Saptashati Sara Durga Stotram in Hindi

सप्तशती (सप्तशती दुर्गा स्तोत्रम्), जिसे देवी महात्म्य या दुर्गा महात्म्य भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत आता है और इसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इसे विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान पूजा और जप के रूप में किया जाता है, लेकिन इसका पाठ या श्रवण किसी भी समय किया जा सकता है, जब भी व्यक्ति को देवी की कृपा और आशीर्वाद की आवश्यकता महसूस हो।

सप्तशती के महत्व

  1. रक्षात्मक महिमा: यह ग्रंथ संकटों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय, और मनोबल को बढ़ाने में सहायक माना जाता है। देवी दुर्गा की महिमा का गायन करने से मानसिक शांति और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।
  2. कष्टों का निवारण: सप्तशती के पाठ से व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्याओं का निवारण होता है। इसमें विशेष रूप से देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का स्मरण किया जाता है, जो सबके जीवन से कष्टों को हरने वाली मानी जाती हैं।
  3. नवरात्रि में विशेष महत्व: नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा की पूजा विशेष रूप से होती है और सप्तशती का पाठ इन दिनों में अत्यधिक महत्व रखता है। इसे करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

सप्तशती का पाठ कैसे करें?

  1. स्थल का चयन: घर या मंदिर में स्वच्छ और शांत स्थान पर देवी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा रखें।
  2. स्नान और शुद्धता: पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और मानसिक शांति के लिए ध्यान लगाएं।
  3. पाठ विधि: सप्तशती के 700 श्लोकों का नियमित रूप से या विशेष अवसरों पर पाठ किया जाता है। इसे 1 दिन में भी पूरा किया जा सकता है, या 7 दिनों में भी। सात दिन का पाठ करने से इसे सप्ताह पाठ कहा जाता है।
  4. अर्चन और पूजन: देवी की पूजा में फूल, दीपक, फल, पंचामृत आदि का अर्पण करें। साथ ही, पाठ के साथ मंत्र जाप करें और देवी के आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

Saptashati Sara Durga Stotram सप्तशती सारा दुर्गा स्तोत्रम्

यस्या दक्षिणभागके दशभुजा काली कराला स्थिता
यद्वामे च सरस्वती वसुभुजा भाति प्रसन्नानना।
यत्पृष्ठे मिथुनत्रयं च पुरतो यस्या हरिः सैरिभ-
स्तामष्टादशबाहुमम्बुजगतां लक्ष्मीं स्मरेन्मध्यगाम्।
लं पृथ्व्यात्मकमर्पयामि रुचिरं गन्धं हमभ्रात्मकं
पुष्पं यं मरुदात्मकं च सुरभिं धूपं विधूतागमम्।
रं वह्न्यात्मकदपिकं वममृतात्मानं च नैवेद्यकं
मातर्मानसिकान्गृहाण रुचिरान्पञ्चोपचारानमून्।
कल्पान्ते भुजगाधिपं मुररिपावास्तीर्य निद्रामिते
सञ्जातौ मधुकैटभौ सुररिपू तत्कर्णपीयूषतः।
दृष्ट्वा भीतिभरान्वितेन विधिना या संस्तुताऽघातयद्
वैकुण्ठेन विमोह्य तौ भगवती तामस्मि कालीं भजे।
या पूर्वं महिषासुरार्दितसुरोदन्तश्रुतिप्रोत्थित-
क्रोधव्याप्तशिवादिदैवतनुतो निर्गत्य तेजोमयी।
देवप्राप्तसमस्तवेषरुचिरा सिंहेन साकं सुर-
द्वेष्टॄणां कदनं चकार नितरां तामस्मि लक्ष्मीं भजे।
सैन्यं नष्टमवेक्ष्य चिक्षुरमुखा योक्तुं ययुर्येऽथ तान्
हत्वा श‍ृङ्गखुरास्यपुच्छवलनैस्त्रस्तत्त्रिलोकीजनम्।
आक्रम्य प्रपदेन तं च महिषं शूलेन कण्ठेऽभिनद्-
या मद्यारुणनेत्रवक्त्रकमला तामस्मि लक्ष्मीं भजे।
ब्रह्मा विष्णुमहेश्वरौ च गदितुं यस्याः प्रभावं बलं
नालं सा परिपालनाय जगतोऽस्माकं च कुर्यान्मतिम्।
इत्थं शक्रमुखैः स्तुताऽमरगणैर्या संस्मृताऽऽपद्व्रजं
हन्ताऽस्मीति वरं ददावतिशुभं तामस्मि लक्ष्मीं भजे।
भूयः शुम्भनिशुम्भपीडितसुरैः स्तोत्रं हिमाद्रौ कृतं
श्रुत्वा तत्र समागतेशरमणीदेहादभूत्कौशिकी।
या नैजग्रहणेरिताय सुरजिद्दूताय सन्धारणे
यो जेता स पतिर्ममेत्यकथयत्तामस्मि वाणीं भजे।
तद्दूतस्य वचो निशम्य कुपितः शुम्भोऽथ यं प्रेषयत्
केशाकर्षणविह्वलां बलयुतस्तामानयेति द्रुतम्।
दैत्यं भस्म चकार धूम्रनयनं हुङ्कारमात्रेण या
तत्सैन्यं च जघान यन्मृगपतिस्तामस्मि वाणीं भजे।
चण्डं मुण्डयुतं च सैन्यसहितं दृष्ट्वाऽऽगतं संयुगे
काल्या भैरवया ललाटफलकादुद्भूतयाघातयत्।
तावादाय समागतेत्यथ च या तस्याः प्रसन्ना सती
चामुण्डेत्यभिधां व्यधात्त्रिभुवने तामस्मि वाणीं भजे।
श्रुत्वा संयति चण्डमुण्डमरणं शुम्भो निशुम्भान्वितः
क्रुद्धस्तत्र समेत्य सैन्यसहितश्चक्रेऽद्भुतं संयुगम्।
ब्रह्माण्यादियुता रणे बलपतिं या रक्तबीजासुरं
चामुण्डा परिपीतरक्तमवधीत्तामस्मि वाणीं भजे।
दृष्ट्वा रक्तजनुर्वधं प्रकुपितौ शुम्भो निशुम्भोऽप्युभौ
चक्राते तुमुलं रणं प्रतिभयं नानास्त्रशस्त्रोत्करैः।
तत्राद्यं विनिपात्य मूर्च्छितमलं छित्त्वा निशुम्भं शिरः
खड्गेनैनमपातयत्सपदि या तामस्मि वाणीं भजे।
शुम्भं भ्रातृवधादतीव कुपितं दुर्गे त्वमन्याश्रयात्
गर्विष्ठा भव मेत्युदीर्य सहसा युध्यन्तमत्युत्कटम्।
एकैवाऽस्मि न चापरेति वदती भित्त्वा च शूलेन या
वक्षस्येनमपातयद्भुवि बलात्तामस्मि वाणीं भजे।
दैत्येऽस्मिन्निहतेऽनलप्रभृतिभिर्देवैः स्तुता प्रार्थिता
सर्वार्तिप्रशमाय सर्वजगतः स्वीयारिनाशाय च।
बाधा दैत्यजनिर्भविष्यति यदा तत्रावतीर्य स्वयं
दैत्यान्नाशयितास्म्यहं वरमदात्तामस्मि वाणीं भजे।
यश्चैतच्चरितत्रयं पठति ना तस्यैधते सन्तति-
र्धान्यं कीर्तिधनादिकं च विपदां सद्यश्च नाशो भवेत्।
इत्युक्त्वान्तरधीयत स्वयमहो या पूजिता प्रत्यहं
वित्तं धर्ममतिं सुतांश्च ददते तामस्मि वाणीं भजे।
इत्येतत्कथितं निशम्य चरितं देव्याः शुभं मेधसा-
राजासौ सुरथः समाधिरतुलं वैश्यश्च तेपे तपः।
या तुष्टाऽत्र परत्र जन्मनि वरं राज्यं ददौ भूभृते
ज्ञानं चैव समाधये भगवतीं तामस्मि वाणीं भजे।
दुर्गासप्तशतीत्रयोदशमिताध्यायार्थसङ्गर्भितं
दुर्गास्तोत्रमिदं पठिष्यति जनो यः कश्चिदत्यादरात्।
तस्य श्रीरतुला मतिश्च विमला पुत्रः कुलालङ्कृतिः
श्रीदुर्गाचरणारविन्दकृपया स्यादत्र कः संशयः।
वेदाभ्रावनिसम्मिता नवरसा वर्णाब्धितुल्याः कराम्नाया
नन्दकरेन्दवो युगकराः शैलद्वयोऽग्न्यङ्गकाः
चन्द्राम्भोधिसमा भुजानलमिता बाणेषवोऽब्जार्णवा
नन्दद्वन्द्वसमा इतीह कथिता अध्यायमन्त्राः क्रमात्।
श्रीमत्काशीकरोपाख्यरामकृष्णसुधीकृतम्।
दुर्गास्तोत्रमिदं धीराः पश्यन्तु गतमत्सराः।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

Lakshmi Shataka Stotram

Lakshmi Shataka Stotramआनन्दं दिशतु श्रीहस्तिगिरौ स्वस्तिदा सदा मह्यम् ।या...

आज सोमवार है ये शिव का दरबार है

आज सोमवार है ये शिव का दरबार है -...

वाराही कवचम्

Varahi Kavachamवाराही देवी(Varahi kavacham) दस महाविद्याओं में से एक...

श्री हनुमत्कवचम्

Sri Hanumatkavachamश्री हनुमत्कवचम्(Sri Hanumatkavacham) एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है...