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शनिवार, मई 24, 2025

संतोषी माता चालीसा

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Santoshi Chalisa

हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है, और हर देवी अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करने के लिए जानी जाती हैं। इनमें से एक हैं संतोषी माता, जो संतोष, धैर्य और सुख की प्रतीक मानी जाती हैं। संतोषी माता की भक्ति में रची-बसी संतोषी माता चालीसा एक ऐसी प्रार्थना है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मकता और शांति लाती है। यह चालीसा न केवल माता की महिमा का गुणगान करती है, बल्कि भक्तों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने का भी वादा करती है। इस लेख में हम संतोषी माता चालीसा के महत्व, उत्पत्ति और इसके पाठ की विधि पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

संतोषी माता कौन हैं?

संतोषी माता को मां दुर्गा का एक रूप माना जाता है। उनका नाम “संतोष” से लिया गया है, जिसका अर्थ है संतुष्टि और शांति। ऐसा विश्वास है कि संतोषी माता अपने भक्तों को जीवन में संतोष और सुख प्रदान करती हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से महिलाओं में प्रचलित है, जो अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए माता से प्रार्थना करती हैं। संतोषी माता की लोकप्रियता 1975 में आई फिल्म “जय संतोषी मां” के बाद और बढ़ गई, जिसने उनके चमत्कारों और भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया।

Santoshi Chalisa

॥ दोहा ॥

श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान। सन्तोषी मां की करूँ, कीरति सकल बखान।

॥ चौपाई ॥

जय संतोषी मां जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी ।
गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता।

माता-पिता की रहौ दुलारी, कीरति केहि विधि कहूं तुम्हारी ।
क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी, कानन कुण्डल को छवि न्यारी।

सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुनहरी धारी।
आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला, धारण करहु गले वन माला।

निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी।
जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई।

तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई।
वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त की आप सहाई।

ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई।
शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी।

शक्ति रूप प्रगटी जन जानी, रुद्र रूप भई मात भवानी।
दुष्टदलन हित प्रगटी काली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली।

चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे।
महिमा वेद पुरानन बरनी, निज भक्तन के संकट हरनी।

रूप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी।
प्रगटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया ।

पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरू तारे, तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे।
पालन पोषण तुमहीं करता, क्षण भंगुर में प्राण हरता।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें, शेष महेश सदा मन लावे ।
मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव भय तरनी।

चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता।
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावें, पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं।

पति वियोगी अति व्याकुलनारी, तुम वियोग अति व्याकुलयारी।
कन्या जो कोई तुमको ध्यावै, अपना मन वांछित वर पावै।

शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया ।
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहि अमित सुख सम्पति भरहीं।

गुड़ और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै।
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं।

उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा ।
नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती।

जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसो ही फल पावा।
सात शुक्र जो ब्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे।

सेवा करहि भक्ति युत जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई।
जो जन शरण माता तेरी आवै, ताके क्षण में काज बनावै।

जय जय जय अम्बे कल्यानी, कृपा करौ मोरी महारानी ।
जो कोई पढ़ें मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा।

नित प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुम्हारा प्यारा।
नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोष कबहूँ नहीं लागे।

॥ दोहा ॥

सन्तोषी माँ के सदा बन्दहुँ पग निश वास।
पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास ॥


संतोषी माता चालीसा का महत्व

चालीसा एक 40 पंक्तियों की भक्ति रचना होती है, जो किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखी जाती है। संतोषी माता चालीसा भी इसी तरह की एक प्रार्थना है, जिसमें माता के गुणों, उनकी शक्ति और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। इस चालीसा का पाठ करने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह भी माना जाता है कि नियमित रूप से चालीसा का पाठ करने से माता अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

चालीसा पाठ की विधि

  1. समय: संतोषी माता की पूजा विशेष रूप से शुक्रवार को की जाती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है।
  2. पूजा सामग्री: माता को गुड़ और चने का भोग लगाएं। इसके साथ फूल, धूप, दीप और लाल चुनरी चढ़ाएं।
  3. संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले मन में संकल्प लें कि आप यह पाठ किस मनोकामना के लिए कर रहे हैं।
  4. शुद्धता: स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें और पूजा स्थल को साफ रखें।
  5. नियम: चालीसा का पाठ 16 शुक्रवार तक लगातार करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दौरान खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।

चालीसा के लाभ

  • जीवन में संतोष और शांति की प्राप्ति।
  • आर्थिक समस्याओं से मुक्ति।
  • पारिवारिक सुख और समृद्धि।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति और कष्टों से छुटकारा।
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