Sangeeta Jnanada Saraswati Stotram
संगीता ज्ञानदा सरस्वती स्तोत्रम् एक प्राचीन और पवित्र स्तोत्र है, जो देवी सरस्वती की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र न केवल ज्ञान की देवी की आराधना है, बल्कि संगीत, कला और सृजनात्मकता के स्रोत के रूप में भी उनकी महत्ता को उजागर करता है। नीचे इस स्तोत्र की विस्तृत जानकारी दी गई है
संगीता ज्ञानदा सरस्वती स्तोत्रम् का महत्व और उद्देश्य
- ज्ञान, संगीत और कला की प्रदाता:
देवी सरस्वती को भारतीय परंपरा में ज्ञान, साहित्य, संगीत और कला की देवी माना जाता है। यह स्तोत्र उन्हीं के गुणों का विस्तृत वर्णन करता है और उनके आशीर्वाद की कामना करता है। - विद्यार्थियों और कलाकारों के लिए लाभकारी:
विद्यार्थियों, संगीतकारों, नर्तकों और लेखकों द्वारा इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। माना जाता है कि इसका नियमित पाठ स्मरण शक्ति, बौद्धिक क्षमता, और सृजनात्मकता को बढ़ाता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
यह स्तोत्र भक्तों के मन में शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक जागृति का संचार करता है, जिससे जीवन में संतुलन और समृद्धि आती है।
संगीता ज्ञानदा सरस्वती स्तोत्रम् के लाभ
- शैक्षिक सफलता:
विद्यार्थियों में स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता में वृद्धि, साथ ही परीक्षा एवं अध्ययन में सफलता के लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी माना जाता है। - संगीत एवं कला में प्रवीणता:
संगीतकारों, नर्तकों और कलाकारों के लिए यह स्तोत्र रचनात्मकता एवं कलात्मक कौशल को प्रोत्साहित करता है। - मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागृति:
स्तोत्र के पाठ से मन में शांति आती है, तनाव कम होता है और आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है। - सकारात्मक ऊर्जा का संचार:
यह स्तोत्र नियमित रूप से पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
पाठ की विधि एवं अनुष्ठान
- पवित्रता एवं एकाग्रता के साथ:
इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करके, शुद्ध विचारों और मन की एकाग्रता के साथ करना चाहिए। - उचित समय:
सुबह के समय या सरस्वती पूजा के विशेष अवसरों, जैसे वसंत पंचमी पर, इस स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है। - पूजा सामग्री का उपयोग:
पाठ के दौरान देवी सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के सामने फूल, अगरबत्ती, दीप और संगीत वाद्य यंत्र अर्पित किए जाते हैं।
संगीता ज्ञानदा सरस्वती स्तोत्रम्
शारदां चन्द्रवदनां वीणापुस्तकधारिणीम् ।
सङ्गीतविद्याधिष्ठात्रीं नमस्यामि सरस्वतीम् ॥
श्वेताम्बरधरे देवि श्वेतपद्मासने शुभे।
श्वेतगन्धार्चिताङ्घ्रिं त्वां नमस्यामि सरस्वतीम् ॥
या देवी सर्ववाद्येषु दक्षा सङ्गीतवर्तिनी ।
या सदा ज्ञानदा देवी नमस्यामि सरस्वति ॥
शारदे सर्ववाद्येषु दक्षं मां कुरु पाहि माम् ।
सिद्धिं देहि सदा देवि जिह्वायां तिष्ठ मे स्वयम् ॥
ज्ञानं देहि स्वरस्यापि लयतालगुणं मम ।
भक्तिं च यच्छ मे नित्यं सरस्वति नमोऽस्तु ते ॥
विद्यां बुद्धिं च मे देवि प्रयच्छाऽद्य सरस्वति ।
यशो मे शाश्वतं देहि वरदा भव मे सदा ॥
प्रणमामि जगद्धात्रीं वागीशानीं सरस्वतीम् ।
सङ्गीते देहि सिद्धिं मे गीते वाद्ये महामति ॥
सरस्वत्या इदं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान् नरः ।
सङ्गीतस्वरतालेषु समवाप्नोत्यभिज्ञताम् ॥
संगीता ज्ञानदा सरस्वती स्तोत्रम् देवी सरस्वती की अनंत कृपा, ज्ञान, संगीत और कला के महत्व का दिव्य वर्णन करता है। इसका नियमित पाठ विद्यार्थियों, कलाकारों एवं ज्ञान के साधकों के जीवन में शैक्षिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बनता है।