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सोमवार, अगस्त 18, 2025

ऋणहर गणेश स्तोत्रम्

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ऋणहर गणेश स्तोत्रम्(Rinhara Ganesh Stotram) एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान गणेश की स्तुति करता है और ऋण (कर्ज) से मुक्ति पाने के लिए विशेष रूप से प्रार्थना की जाती है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और शुभ कार्यों की शुरुआत के देवता माना जाता है। ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति को न केवल ऋणों से छुटकारा मिलता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी प्राप्त होती है।

ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का महत्त्व:

भगवान गणेश को सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाला देवता माना जाता है। उनका नाम स्मरण करने मात्र से भक्तों के सभी कष्ट और कर्ज दूर हो जाते हैं। ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का नियमित रूप से पाठ करने से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है, और व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति मिलती है। साथ ही, यह स्तोत्र जीवन में धन-धान्य की वृद्धि, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ:

  1. कर्ज से मुक्ति: जिन लोगों पर कर्ज का बोझ है, वे इस स्तोत्र का नियमित पाठ करके आर्थिक तंगी से बाहर आ सकते हैं।
  2. समृद्धि और धन की प्राप्ति: इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति को आर्थिक रूप से समृद्धि मिलती है।
  3. विघ्नों का नाश: भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, और इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।
  4. शांति और संतुलन: मानसिक शांति और जीवन में संतुलन प्राप्त करने के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।

ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें:

  • इस स्तोत्र का पाठ करने का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल होता है।
  • भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पाठ करना चाहिए।
  • किसी पवित्र स्थान पर बैठकर एकाग्रचित्त होकर पाठ करना चाहिए।
  • इसे 11 बार या 108 बार लगातार कुछ दिनों तक करने से विशेष लाभ होता है।

ऋणहर गणेश स्तोत्रम् का मूल पाठ:

सिंदूरवर्णं द्विभुजं गणेशं लंबोदरं पद्मदले निविष्टम् ।
ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम् ॥१॥

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणासम्यक् पूजितः फलसिद्धये ।
सदैव पार्वतीपुत्रःऋणनाशं करोतु मे ॥२॥

त्रिपुरस्य वधात्पूर्वं शंभुना सम्यगर्चितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥३॥

हिरण्यकश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनाऽर्चितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥४॥

महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥५॥

तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥६॥

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छविसिद्धये ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥७॥

शशिना कान्तिवृध्यर्थं पूजितो गणनायकः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥८॥

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः ।
सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥९॥

इदं तु ऋणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्‌र्यनाशनम् ।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः ॥१०॥

दारिद्‌र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत् ॥११॥

ऋणहर गणेश स्तोत्रम् के पाठ के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें:

  • पाठ करते समय ध्यान में शुद्धता और एकाग्रता होनी चाहिए।
  • स्तोत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही ढंग से होना चाहिए।
  • इसे नियमित रूप से करने से भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

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