पराशर ऋषि का जीवन परिचय Parashara Rishi
आज की कथा क्षमा की महानता को बता रही है इतना ही नहीं इसी क्षमा के कारण कैसे क्रोध को छोड़ इस महान व्यक्ति ने विष्णु पुराण की रचना की यदि इस व्यक्ति ने क्षमा को ना अपनाया होता यदि वह युद्ध ही करता रहता तो सोचिए विष्णु पुराण जैसी महान कृति का निर्माण कैसे होता इस महान व्यक्ति का नाम है पराशर जी हां यही पराशर है जो विष्णु पुराण के रचयिता भी हैं दोस्तों हर राजा के लिए यज्ञ का आयोजन एक नियम हुआ करता था हर राजा यह चाहता था कि वह सबसे बड़ा यज्ञ संपन्न कराए और ईश्वर से कृपा प्राप्त करें एक बार राजा त्रिशंकु ने भी एक विराट और भव्य यज्ञ के आयोजन का निर्णय लिया यज्ञ में महर्षि विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ठ को भी बुलाया गया सब कुछ सही चल रहा यज्ञ आहुति और मंत्र उच्चारण से वातावरण शुद्ध हो चला था तभी इसी यज्ञ के दौरान महर्षि विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ठ के पुत्र शक्ति में विवाद हो गया वैसे तो बड़े लोगों का विवाद तार्किक होता है यानी की बात होती है फिर उसका निर्णय होता है और बात खत्म हो जाती है पर कभी-कभी बात का अंत नहीं होता और विवाद का भी नहीं।
महर्षि विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ठ के पुत्र शक्ति में विवाद इतना बढ़ गया कि विश्वामित्र ने शक्ति को श्राप तक दे दिया और विश्वामित्र के द्वारा दिया गया श्राप उसका अर्थ है कि बस आप समझ सकते हैं इसी शाप के कारण शक्ति और उसके सभी भाइयों को दानवों ने मार दिया बात वैसे तो आगे भी बढ़ सकती थी परंतु महर्षि वशिष्ठ क्षमा की मूर्ति थे इस कारण से इस विवाद का शक्ति की मृत्यु के साथ ही अंत हो गया महर्षी वशिष्ठ जी बहुत बड़े ज्ञानी थे वह सहन कर गए लेकिन उनके परिवार में कोहराम मच गया वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधति और शक्ति की पत्नी शोक में डूब गई महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें धीरज बंधा की पूरी कोशिश की तब शक्ति की पत्नी ने सबको बताया कि उनके गर्भ में एक बालक है।
पराशर ऋषि का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
बालक का जन्म हुआ महर्षि वशिष्ठ ने उसका नाम पराशर रखा पराशर जब बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता के बारे में पूछा प्रश्न के बारे में हो सकता है कि वह बचपन से ही उसके मन में हो परंतु उसने पूछने की हिम्मत बड़े होने के बाद की माता ने पराशर को पूरी बात कह बताई नव युवक में धैर्य की कमी तो होती ही है और अति उत्साही भी होते हैं ऐसा ही पराशर के साथ हुआ और उसे भयंकर क्रोध आ गया उसी समय पराशर ने भगवान शंकर की तपस्या आरंभ कर दी तपस्या से उन्होंने कई शक्तियां प्राप्त की इन शक्तियों का लक्ष्य था युद्ध अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध इन शक्तियों का लक्ष्य था विश्व संहार महर्षि वशिष्ठ ने पराशर को समझाने की बहुत कोशिश की पर वह मन बना चुका था उसके भीतर गहन दुख था कि उसके पिता के साथ बहुत गलत हुआ उसका ही उसे प्रतिशोध लेना था पर अपने प्रतिशोध के बदले पूरे विश्व का संहार करना कहां तक उचित था।
शिक्षा और ज्ञान
महर्षि वशिष्ठ की यह बात उसकी समझ में आई इससे वह थोड़ा शांत तो हुआ पर उसके मन में जो घृणा थी वह कम नहीं हुई पराशर ने अपनी विश्व संहार की योजना तो त्याग दी परंतु राक्षसों को मारने का उसने प्रण कर लिया इसी प्रण के चलते उसने राक्षस सत्र आरंभ किया यह राक्षस सत्र इतना भयंकर था कि राक्षस अग्नि में गिरकर भस्म होने लगे महर्षि वशिष्ठ ने पराशर को फिर से रोकने के लिए उसे समझाया कि ऐसा क्रोध तो सबका नाश कर देगा अपने कर्मों के अनुसार ही सबके साथ भला या बुरा होता है सज्जन अपने मन की घृणा का अंत कर दूसरे को क्षमा कर देते हैं इसी में उनकी सज्जनता होती है आखिरकार अपने पितामह की बात का पराशर पर असर पड़ा उसने राक्षस सत्र को अंत कर दिया विश्व एक भयंकर युद्ध से बच चुका था जब पराशर ने राक्षस शत्र को रोक दिया तो राक्षस कुल के कुल पुरुष महर्षि पुलसते बहुत प्रभावित हुए वे स्वयं आए और उन्होंने पराशर को आशीर्वाद देते हुए कहा कि अपने मन की घृणा का अंत करते हुए उसने प्रतिशोध की भावना का त्याग किया है यह आसान काम नहीं होता आशीर्वाद में उन्होंने कहा कि यह क्षमा पराशर के कुल के अनुरूप है और यह पराशर के गुणों में से एक गिना जाएगा और आशीर्वाद के रूप में उन्होंने पराशर से कहा कि वो वो आगे जाकर विष्णु पुराण की रचना करेंगे जी हां दोस्तों यही थी वह कथा जिसके बाद ऋषि पराशर ने विष्णु पुराण जैसी महान और काल जय रचना को रूप दिया।
पराशर ऋषि का योगदान
विष्णु पुराण की रचना
विष्णु पुराण की रचना महर्षि पराशर जी ने की थी, जो महर्षि वेद व्यास जी के पिता थे।
18 पुराणों में से सबसे छोटा पुराण है, जिसमें केवल 7000 श्लोक और 6 अध्याय हैं। विष्णु पुराण भगवान विष्णु और उनके अवतारों पर केंद्रित है, जिसमें श्रीकृष्ण और राम की कथाएं भी शामिल हैं। सृष्टि, प्रलय, देवताओं, ऋषियों, राजाओं और मनुष्यों के बारे में जानकारी देता है। धर्म, दर्शन, नीतिशास्त्र और योग के विषयों पर भी प्रकाश डालता है। हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। अगर आप विष्णु भगवान और उनके अवतारों, हिंदू धर्म के इतिहास और संस्कृति, या नैतिक मूल्यों और जीवन जीने के तरीके के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो विष्णु पुराण एक उत्कृष्ट ग्रंथ है।
पराशर संहिता
पराशर संहिता एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न पहलुओं को विस्तृत रूप से समझाता है। इसमें जन्म कुंडली, ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभाव, दशा और अंतर्दशा की विस्तृत जानकारी दी गई है। इस ग्रंथ ने ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और आज भी इसका अध्ययन किया जाता है।
पराशर स्मृति
पराशर स्मृति एक और महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसे पराशर ऋषि ने रचा। इसमें धर्म, आचार, न्याय और सामाजिक नियमों का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ ने समाज को एक दिशा दी और धर्म तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को स्थापित करने में मदद की। पराशर स्मृति ने भारतीय समाज के नैतिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पराशर ऋषि की कथाएं
सत्यवती और पराशर
सत्यवती और पराशर की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थी और पराशर ऋषि ने उनके साथ विवाह किया था। उनके विवाह से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम वेदव्यास था। वेदव्यास ने महाभारत और अनेक पुराणों की रचना की। सत्यवती और पराशर की कथा ने भारतीय समाज में प्रेम, त्याग और समर्पण के महत्व को स्थापित किया।
यज्ञ और तपस्या
पराशर ऋषि की एक अन्य प्रमुख कथा यज्ञ और तपस्या से संबंधित है। उन्होंने अनेक यज्ञ किए और कठोर तपस्या की, जिससे उन्होंने अनेक दिव्य शक्तियां प्राप्त कीं। उनकी यज्ञ और तपस्या की कथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और उन्हें धर्म और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
समाज पर प्रभाव
सोचिए यदि पराशर अपने प्रतिशोध के चलते युद्ध करते रहते तो न जाने कितने लोग मरते राक्षस कुल के लोग तो मरते पर वो जब पलटकर आक्रमण करते तो और लोग भी मरते केवल और केवल नाश ही नाश होता पर पराशर ने जब क्षमा जैसे महान गुण को अपनाया उन्होंने सकारात्मक होक के अपनी शक्ति का सदुपयोग करने का सोचा तो एक ऐसी रचना हमारे सामने आई जिससे हम आज भी शिक्षा ले रहे हैं और उन्हें याद कर रहे हैं क्षमा बहुत से घाव को भर देती है क्षमा के बाद आप अपनी परिस्थिति के लिए दूसरों को दोष ना देते हुए उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेते हैं और यही वीरता की निशानी होती है।