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गुरूवार, मार्च 6, 2025

नासदीय सूक्तम्

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Nasadiya Suktam In Hindi

नासदीय सूक्तम्(Nasadiya Sukta) ऋग्वेद के दसवें मंडल (10.129) में स्थित एक प्रसिद्ध सूक्त है। इसे ‘नासदीय ऋषि’ के नाम से भी जाना जाता है। यह सूक्त ब्रह्मा, सृष्टि और सृष्टि के उत्पत्ति की रहस्यमयता पर विचार करता है। इस सूक्त का प्रमुख विषय ब्रह्मा का अस्तित्व, सृष्टि के आरंभ और उसके कारण के बारे में है। नासदीय सूक्तम् एक अद्वितीय और दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो प्राचीन भारतीय विचारधारा और ब्रह्म के बारे में गहरे प्रश्न उठाता है।

नासदीय सूक्त का सार

नासदीय सूक्तम्(Nasadiya Sukta) ब्रह्मा के जन्म और सृष्टि के आरंभ से संबंधित प्रमुख प्रश्नों को उठाता है। यह सूक्त यह प्रश्न करता है कि “क्या पहले कुछ भी था?” और “कहाँ से यह सब अस्तित्व आया?”। इस सूक्त में, ऋषि यह स्वीकार करते हैं कि हम सृष्टि के आरंभ के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते। यहां पर एक गहरी चिंता व्यक्त की जाती है कि हमारे पास उस समय के बारे में कोई भी स्पष्ट या प्रमाणित जानकारी नहीं है जब सृष्टि का आरंभ हुआ था। साथ ही यह भी कहा जाता है कि उस समय न तो कोई पदार्थ था, न कोई आकाश था, और न ही किसी भी प्रकार का अस्तित्व। इस सूक्त में ‘नासद’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है “नहीं था” या “कुछ भी नहीं था”।

सूक्त के प्रमुख विचार

  1. सृष्टि का रहस्य: नासदीय सूक्त यह दर्शाता है कि सृष्टि का उत्पत्ति रहस्यमय है और उसे पूरी तरह से समझना कठिन है। इस सूक्त के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की जाती है कि सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में सभी लोग असमर्थ हैं, क्योंकि इस विषय पर कोई भी पक्की जानकारी नहीं है।
  2. ब्रह्मा का अस्तित्व: सूक्त में ब्रह्मा के अस्तित्व के बारे में भी सवाल उठाया गया है। यह सूक्त इस बात को संदिग्ध बनाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की या नहीं, और वह कौन था। “सृष्टि का उत्पत्ति कहाँ से हुई” और “क्या ब्रह्मा ही सृष्टि का कारण थे?” जैसे प्रश्न उठाए जाते हैं।
  3. धार्मिक दृष्टिकोण: नासदीय सूक्त धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ब्रह्मा के अस्तित्व के बारे में संदेह करता है और हमें यह समझाता है कि हमें सृष्टि और अस्तित्व के बारे में सटीक या अंतिम ज्ञान नहीं हो सकता है।
  4. अवधारणाओं का विरोध: सूक्त की यह विशेषता है कि यह किसी विशेष धार्मिक या दार्शनिक अवधारणा को नहीं अपनाता। यह उन सभी मान्यताओं को चुनौती देता है जो सृष्टि के बारे में स्थिर और निश्चित विचार प्रस्तुत करती हैं।

नासदीय सूक्तम् Nasadiya Suktam

(ऋ.१०.१२९)

नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानी॒-न्नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् ।
किमाव॑रीवः॒ कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भः॒ किमा॑सी॒द्गह॑न-ङ्गभी॒रम् ॥ १ ॥

न मृ॒त्युरा॑सीद॒मृत॒-न्न तर्​हि॒ न रात्र्या॒ अह्न॑ आसीत्प्रके॒तः ।
आनी॑दवा॒तं स्व॒धया॒ तदेक॒-न्तस्मा॑द्धा॒न्यन्न प॒रः कि-ञ्च॒नास॑ ॥ २ ॥

तम॑ आसी॒त्तम॑सा गू॒ल्​हमग्रे॑-ऽप्रके॒तं स॑लि॒लं सर्व॑मा इ॒दम् ।
तु॒च्छ्येना॒भ्वपि॑हितं॒-यँदासी॒त्तप॑स॒स्तन्म॑हि॒नाजा॑य॒तैक॑म् ॥ ३ ॥

काम॒स्तदग्रे॒ सम॑वर्त॒ताधि॒ मन॑सो॒ रेतः॑ प्रथ॒मं-यँदासी॑त् ।
स॒तो बन्धु॒मस॑ति॒ निर॑विन्दन् हृ॒दि प्र॒तीष्या॑ क॒वयो॑ मनी॒षा ॥ ४ ॥

ति॒र॒श्चीनो॒ वित॑तो र॒श्मिरे॑षाम॒ध-स्स्वि॑दा॒सी 3 दु॒परि॑ स्विदासी 3 त् ।
रे॒तो॒धा आ॑सन्महि॒मान॑ आसन्त्स्व॒धा अ॒वस्ता॒त्प्रय॑तिः प॒रस्ता॑त् ॥ ५ ॥

को अ॒द्धा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑च॒त्कुत॒ आजा॑ता॒ कुत॑ इ॒यं-विँसृ॑ष्टिः ।
अ॒र्वाग्दे॒वा अ॒स्य वि॒सर्ज॑ने॒नाथा॒ को वे॑द॒ यत॑ आब॒भूव॑ ॥ ६ ॥

इ॒यं-विँसृ॑ष्टि॒र्यत॑ आब॒भूव॒ यदि॑ वा द॒धे यदि॑ वा॒ न ।
यो अ॒स्याध्य॑क्षः पर॒मे व्यो॑म॒न्त्सो अ॒ङ्ग वे॑द॒ यदि॑ वा॒ न वेद॑ ॥ ७ ॥

नासदीय सूक्तम् का महत्व Nasadiya Suktam Importance

नासदीय सूक्तम् भारतीय दर्शन और सृष्टि के बारे में गहरी सोच को व्यक्त करता है। यह सूक्त न केवल ऋग्वेद का एक अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्राचीन भारत में अस्तित्व, सृष्टि, और ब्रह्मा के बारे में विचार कितने जटिल और गहरे थे। यह सूक्त उस समय के वैज्ञानिक, दार्शनिक और धार्मिक दृष्टिकोणों का संगम है, जिसमें सृष्टि के बारे में किसी भी निश्चित उत्तर का अभाव है, और यह मानवता को इसके रहस्यों को समझने के लिए प्रेरित करता है।

नासदीय सूक्तम् यह दिखाता है कि ज्ञान का अंतिम रूप केवल हमारे अनुभवों और दृष्टिकोणों से परे होता है, और सृष्टि के अदृश्य रहस्यों को समझने का प्रयास निरंतर जारी रहना चाहिए।

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