नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम्(Nakshatra Shantikara Stotram) एक वैदिक स्तोत्र है, जिसका उपयोग नक्षत्र दोषों और उनके अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र उन व्यक्तियों के लिए अत्यधिक लाभकारी है जिनकी कुंडली में नक्षत्रों की स्थिति अशुभ होती है। 27 नक्षत्रों का वर्णन वैदिक ज्योतिष में मिलता है, और इनका प्रभाव हमारे जीवन, स्वभाव, और भाग्य पर पड़ता है। नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से इन अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है।
नक्षत्रों का महत्व Importance of Nakshatra Shantikara Stotram
नक्षत्र वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा की गति के आधार पर विभाजित 27 खंड हैं। ये नक्षत्र हमारे स्वभाव, मानसिक स्थिति, और जीवन की घटनाओं को प्रभावित करते हैं। जब कोई नक्षत्र अशुभ हो, तो व्यक्ति को मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं, आर्थिक नुकसान और अन्य बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
27 नक्षत्रों के नाम और स्वभाव: 27 Nakshtatra Name
- अश्विनी: ऊर्जा और स्वास्थ्य का प्रतीक।
- भरणी: सहनशीलता और दृढ़ता।
- कृत्तिका: तप और परिश्रम का प्रतीक।
- रोहिणी: प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक।
- मृगशिरा: ज्ञान और सत्य का प्रतीक।
- आर्द्रा: दृढ़ता और संघर्ष का प्रतीक।
- पुनर्वसु: पुनरुत्थान और समृद्धि।
- पुष्य: पोषण और सुरक्षा।
- आश्लेषा: मानसिक दृढ़ता।
- मघा: अधिकार और शक्ति।
- पूर्वाफाल्गुनी: आनंद और सृजन।
- उत्तराफाल्गुनी: स्थिरता और सफलता।
- हस्त: कुशलता और कर्म।
- चित्रा: सौंदर्य और कला।
- स्वाति: स्वतंत्रता और गति।
- विशाखा: ऊर्जा और महत्वाकांक्षा।
- अनुराधा: मित्रता और समर्पण।
- ज्येष्ठा: अधिकार और नेतृत्व।
- मूल: जड़ और गहराई।
- पूर्वाषाढ़ा: संघर्ष और विजय।
- उत्तराषाढ़ा: स्थायित्व और शक्ति।
- श्रवण: सुनना और ज्ञान।
- धनिष्ठा: धन और समृद्धि।
- शतभिषा: रहस्य और चिकित्सा।
- पूर्वाभाद्रपद: करुणा और आध्यात्म।
- उत्तराभाद्रपद: स्थायित्व और संतुलन।
- रेवती: समृद्धि और शांति।
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ Nakshatra Shantikara Stotram
कृत्तिका परमा देवी रोहिणी रुचिरानना।
श्रीमान् मृगशिरा भद्रा आर्द्रा च परमोज्ज्वला।
पुनर्वसुस्तथा पुष्य आश्लेषाऽथ महाबला।
नक्षत्रमातरो ह्येताः प्रभामालाविभूषिताः।
महादेवाऽर्चने शक्ता महादेवाऽनुभावितः।
पूर्वभागे स्थिता ह्येताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा।
मघा सर्वगुणोपेता पूर्वा चैव तु फाल्गुनी।
उत्तरा फाल्गुनी श्रेष्ठा हस्ता चित्रा तथोत्तमा।
स्वाती विशाखा वरदा दक्षिणस्थानसंस्थिताः।
अर्चयन्ति सदाकालं देवं त्रिभुवनेश्वरम्।
नक्षत्रमारो ह्येतास्तेजसापरिभूषिताः।
ममाऽपि शान्तिकं नित्यं कुर्वन्तु शिवचोदिताः।
अनुराधा तथा ज्येष्ठा मूलमृद्धिबलान्वितम्।
पूर्वाषाढा महावीर्या आषाढा चोत्तरा शुभा।
अभिजिन्नाम नक्षत्रं श्रवणः परमोज्ज्वलः।
एताः पश्चिमतो दीप्ता राजन्ते राजमूर्तयः।
ईशानं पूजयन्त्येताः सर्वकालं शुभाऽन्विताः।
मम शान्तिं प्रकुर्वन्तु विभूतिभिः समन्विताः।
धनिष्ठा शतभिषा च पूर्वाभाद्रपदा तथा।
उत्तराभाद्ररेवत्यावश्विनी च महर्धिका।
भरणी च महावीर्या नित्यमुत्तरतः स्थिताः।
शिवार्चनपरा नित्यं शिवध्यानैकमानसाः।
शान्तिं कुर्वन्तु मे नित्यं सर्वकालं शुभोदयाः।
पाठ करने की विधि
- शुद्धता का ध्यान रखें
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक शांत स्थान पर बैठकर पाठ करें।
- पूजन सामग्री
- दीपक, अगरबत्ती, पुष्प और चावल का उपयोग करें।
- नक्षत्रों के अनुसार अलग-अलग रंगों के पुष्प अर्पित करना शुभ होता है।
- समय और दिशा
- प्रातःकाल या संध्या के समय इस स्तोत्र का पाठ करना सबसे शुभ होता है।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पाठ क्रम
- सर्वप्रथम भगवान गणेश का ध्यान करें।
- इसके बाद नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ करें।
- पाठ के बाद भगवान सूर्य और चंद्र को जल अर्पित करें।
नक्षत्र दोष निवारण के उपाय
- दान: संबंधित नक्षत्र के लिए दान करना जैसे अनाज, कपड़े या धातु।
- मंत्र जप: प्रत्येक नक्षत्र का विशेष मंत्र जप लाभकारी होता है।
- रत्न धारण: नक्षत्र दोष को शांत करने के लिए ज्योतिषाचार्य की सलाह से रत्न धारण करें।
- व्रत और उपवास: नक्षत्र विशेष के दिन उपवास रखें।
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का महत्व Importance of Nakshatra Shantikara Stotram
- ग्रह दोष शांति: कुंडली में ग्रहों के दोषों को शांत करता है।
- मानसिक शांति: जीवन में मानसिक और भावनात्मक स्थिरता लाता है।
- सफलता में वृद्धि: कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
- शारीरिक और आर्थिक लाभ: स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याओं में सुधार करता है।
विशेष दिन
- पूर्णिमा, अमावस्या, और ग्रहण के दिन इसका पाठ विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
- यह स्तोत्र विशेष रूप से जन्म नक्षत्र के समय पढ़ा जाना चाहिए।
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs of Nakshatra Shantikara Stotram
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् क्या है?
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् एक धार्मिक पाठ है जो नक्षत्रों के अशुभ प्रभावों को शांत करने और जीवन में सुख, समृद्धि, तथा शांति लाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे वैदिक ज्योतिष और धर्मशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल, स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करने के बाद, शुद्ध मन और आस्था के साथ करना चाहिए। विशेष रूप से इसे चंद्रमा या अपने जन्म नक्षत्र के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए किया जाता है।
क्या नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ हर व्यक्ति कर सकता है?
हाँ, नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ हर व्यक्ति कर सकता है। इसे करने के लिए किसी विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन गुरु से मार्गदर्शन लेना लाभकारी होता है।
नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
इस स्तोत्र का पाठ नक्षत्र दोषों के प्रभाव को कम करता है, मन को शांति प्रदान करता है, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। साथ ही, यह स्वास्थ्य, धन, और सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
क्या नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् का पाठ किसी विशेष दिन पर करना चाहिए?
इस स्तोत्र का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन इसे सोमवार या अपने जन्म नक्षत्र के दिन करना अधिक प्रभावशाली माना जाता है। विशेष तिथियों पर जैसे पूर्णिमा या अमावस्या को भी यह अत्यधिक लाभकारी होता है।