नाथ अब कैसे हो कल्याण – प्रार्थना
Naath Ab Kaise Ho Kalyaan Lyrics
नाथ ! अब कैसे हो कल्याण ?
प्रभु-पद-पंकज-विमुख निरंतर रहते पामर प्राण ।
परसुखकातर महामलिन मन चाहत पद निर्वाण ॥
सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया सब कर गये दूर प्रयाण ।
लगा हृदयमें द्वेष-घृणा-हिंसाका बेधक बाण ।।
भेदबुद्धिसे भरा हृदय सब भाँति हुआ पाषाण ।
आत्मभावना भूल वैरपर सदा चढ़ाता शाण ।।
लगा कामना-भूत भयानक, मिटा धर्म-परिमाण ।
उभयभ्रष्ट हुआ बनकर अब पशु बिनु पूँछ विषाण ।।
श्रुति–स्मृतिकी करता अबहेला, पढ़ता नहीं पुराण ।
प्रभो ! पतित इस अधम दीनका तुम्हीं करो अब त्राण ।।



