Mahishasura Mardini Stotram In Hindi
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्(Mahishasura Mardini Stotram) देवी दुर्गा की स्तुति और उपासना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय स्तोत्र है। यह स्तोत्र भक्तों के बीच विशेष रूप से नवरात्रि और दुर्गा पूजा के समय प्रचलित है। इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, हालांकि इसके रचनाकार को लेकर विभिन्न मत हैं। यह स्तोत्र देवी की शक्ति, महिमा और महिषासुर पर उनकी विजय का गुणगान करता है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का महत्व
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् देवी महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) की शक्ति और उनके युद्ध कौशल का वर्णन करता है। यह स्तोत्र महिषासुर, जो एक अत्याचारी और अहंकारी दैत्य था, के वध की कथा को आधार बनाकर लिखा गया है। देवी दुर्गा को आदिशक्ति, प्रकृति और संहारक शक्ति का प्रतीक माना गया है। यह स्तोत्र हमें यह संदेश देता है कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग आवश्यक है।

|| महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् ||
अयि-गिरि-नंदिनि-नंदित-मेदिनि-विश्व-विनोदिनि-नंद-नुते गिरि-वर-विंध्य-शिरोधि-निवासिनि-विष्णु-विलासिनि-जिष्णु-नुते ।
भगवति-हे-शिति-कण्ठ-कुटुंबिनि-भूरि-कुटुंबिनि-भूरि-कृते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १॥
सुर-वर-वर्षिणि-दुर्धर-धर्षिणि-दुर्मुख-मर्षिणि-हर्ष-रते त्रिभुवन-पोषिणि-शंकर-तोषिणि-किल्बिष-मोषिणि-घोष-रते ।
दनुज-नि-रोषिणि-दिति-सुत-रोषिणि-दुर्मद-शोषिणि-सिन्धु-सुते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ २॥
अयि-जगदंब-मदंब-कदंब-वन-प्रिय-वासिनि-हास-रते शिखरि-शिरो-मणि-तुंग-हिमालय-शृंग-निजालय-मध्य-गते ।
मधु-मधुरे-मधु-कैटभ-गंजिनि-कैटभ-भंजिनि-रास-रते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ३॥
अयि-शत-खण्ड-विखण्डित-रुंड-वितुंडित-शुण्ड-गजाधिपते रिपु-गज-गण्ड-विदारण-चण्ड-पराक्रम-शुण्ड-मृगाधिपते ।
निज-भुज-दण्ड-निपातित-खण्ड-विपातित-मुण्ड-भटाधिपते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ४॥
अयि-रण-दुर्मद-शत्रु-वधोदित-दुर्धर-निर्जर-शक्ति-भृते चतुर-विचार-धुरीण-महाशिव-दूत-कृत-प्रमथाधिपते ।
दुरित-दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानव-दूत-कृतांतमते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ५॥
अयि-शरणागत-वैरि-वधू-वर-वीर-वराभयदायकरे त्रिभुवन-मस्तक-शूल-विरोधि-शिरोधि-कृतामल-शूल-करे ।
दुमि-दुमितामर-दुंदुभि-नाद-महो-मुखरी-कृत-तिग्म-करे जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ६॥
अयि-निज-हुँकृति-मात्र-निराकृत-धूम्र-विलोचन-धूम्र-शते समर-विशोषित-शोणित-बीज-समुद्भव-शोणित-बीज-लते ।
शिवशिव-शुंभ-निशुंभ-महा-हव-तर्पित-भूत-पिशाच-रते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ७॥
धनुरनुसंग-रण-क्षण-संग-परिस्फुरतंग-नटत्कटके कनक-पिशंग-पृषत्क-निषंग-रसद-भट-शृंग-हतावटुके ।
कृत-चतुरङ्ग-बल-क्षितिरङ्ग-घटद्बहुरङ्ग-रटद्बटुके जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ८॥
सुर-ललना-ततथेयि-तथेयि-तथाभिनयोत्तर-नृत्य-रते हास-विलास-हुलास-मयि-प्रणतार्त-जने-ऽमितप्रेमभरे ।
धिमिकिट-धिक्कट-धिकट-धिमि-ध्वनि-घोर-मृदंग-निनाद-रते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ९॥
जय-जय-जप्य-जये-जय-शब्द-पर-स्तुति-तत्पर-विश्व-नुते झण-झण-झिञ्झिमि-झिंकृत-नूपुर-सिंजित-मोहित-भूत-पते ।
नटित-नटार्ध-नटी-नटनायक-नाटित-नाट्य-सुगान-रते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १०॥
अयि-सुमनः-सुमनः-सुमनः-सुमनः-सुमनोहर-कांति-युते श्रित-रजनी-रजनी-रजनी-रजनी-रजनीकर-वक्त्र-वृते ।
सुनयन-विभ्रम-रभ्रम-रभ्रम-रभ्रम-रभ्रमराधिपते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ ११॥
सहित-महा-हव-मल्ल-मतल्लिक-मल्लित-रल्लक-मल्ल-रते विरचित-वल्लिक-पल्लिक-मल्लिक-झिल्लिक-भिल्लिक-वर्ग-वृते ।
सितकृत-फुल्लि-समुल्लसितारुण-तल्लज-पल्लव-सल्ललिते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १२॥
अविरल-गण्ड-गलन्मदमेदुर-मत्त-मतङ्गज-राज-पते त्रिभुवन-भूषण-भूत-कलानिधि-रूप-पयोनिधि-राज-सुते ।
अयि-सुदती-जनलालस-मान-समोहन-मन्मथ-राज-सुते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १३॥
कमल-दलामल-कोमल-कांति-कलाकलितामल-भाल-लते सकल-विलास-कलानिलय-क्रम-केलि-चलत्कल-हंस-कुले ।
अलिकुल-सङ्कुल-कुवलय-मण्डल-मौलि-मिलद्भकुलालिकुले जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १४॥
कर-मुरली-रव-वीजित-कूजित-लज्जित-कोकिल-मञ्जु-मते मिलित-पुलिन्द-मनोहर-गुञ्जित-रञ्जित-शैल-निकुञ्ज-गते ।
निज-गुण-भूत-महा-शबरी-गण-सद्गुण-सम्भृत-केलि-तले जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १५॥
कटितट-पीत-दुकूल-विचित्र-मयूख-तिरस्कृत-चन्द्र-रुचे प्रणत-सुरासुर-मौलि-मणि-स्फुरदंशु-लसन्नख-चंद्ररुचे ।
जित-कनकाचल-मौलि-पदोर्जित-निर्झर-कुञ्जर-कुंभ-कुचे जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १६॥
विजितसहस्रकरैक-सहस्रकरैक-सहस्रकरैक-नुते कृत-सुरतारक-सङ्गर-तारक-सङ्गर-तारक-सूनु-सुते ।
सुरथ-समाधि-समान-समाधि-समाधि-समाधि-सुजात-रते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १७॥
पद-कमलं-करुणा-निलये-वरिवस्यति-योऽनुदिनं-स-शिवे अयि-कमले-कमलानिलये कमलानिलयः स-स-कथं-न-भवेत् ।
तव-पदमेव-परंपदमेव-मनुशीलयतो-मम-किं-न-शिवे जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १८॥
कनक-लसत्कल-सिन्धुजलैरनु-सिञ्चिनुते-गुण-रङ्गभुवं भजति-स-किं-न-शची-कुच-कुंभ-तटी-परिरंभ-सुख-अनुभवम् ।
तव-चरणं-शरणं-करवाणि-नतामरवाणि-निवासि-शिवं जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ १९॥
तव-विमलेन्दुकुलं-वदनेन्दुमलं-सकलं-ननु-कूलयते किमु-पुरुहूत-पुरीन्दुमुखी-सुमुखी-भिरसौ-विमुखीक्रियते ।
मम-तु-मतं-शिव-नामधने-भवती-कृपया-किमुत-क्रियते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ २०॥
अयि-मयि-दीन-दयालु-तया-कृपयैव-त्वया-भवितव्यमुमे अयि-जगतो-जननी-कृपयासि-यथासि-तथाऽनुमितासि रते ।
यदुचितमत्र-भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते जय-जय-हे-महिषासुर-मर्दिनि-रम्य-कपर्दिनि-शैल-सुते ॥ २१॥
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का लाभ
- आध्यात्मिक शांति: यह स्तोत्र मन को शांति प्रदान करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
- संकट निवारण: महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् के पाठ से जीवन के कठिन समय में सहारा मिलता है।
- धार्मिक विश्वास: यह पाठ व्यक्ति के भीतर देवी के प्रति भक्ति और विश्वास को बढ़ाता है।
- नकारात्मकता का नाश: यह स्तोत्र सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को समाप्त करता है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। देवी दुर्गा की आराधना में यह अनिवार्य रूप से शामिल होता है। इसे दुर्गा सप्तशती के समान प्रभावशाली माना जाता है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् क्या है?
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करने वाला एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जो उनके महिषासुर राक्षस का वध करने के पराक्रम और शक्ति को समर्पित है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का रचयिता कौन है?
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का रचयिता आदिशंकराचार्य माने जाते हैं।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का पाठ कब किया जाता है?
इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि, दुर्गा पूजा और अन्य शुभ अवसरों पर देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य देवी दुर्गा के वीरता, शक्ति और करुणा का गुणगान करते हुए भक्तों के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल का संचार करना है।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का महत्व क्या है?
यह स्तोत्र देवी की महिमा गाकर भक्तों को उनके संकटों से मुक्ति दिलाने और आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक माना जाता है।