महालक्ष्मी कवचम्(Mahalakshmi Kavacham) हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसे देवी लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। यह कवच भक्त को धन, समृद्धि, स्वास्थ्य, और सभी प्रकार की विपत्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसका उल्लेख वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है।
इस कवच का प्रारंभ ब्रह्माजी के द्वारा किया गया है, और इसमें देवी लक्ष्मी को सभी 14 लोकों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित किया गया है। यह कवच आत्मरक्षा, रोगों से मुक्ति, और जीवन में उन्नति के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना गया है।
महालक्ष्मी कवच में मंत्रों का विनियोग विशिष्ट उद्देश्य के लिए किया गया है। इसमें गायत्री छंद का उपयोग किया गया है, और महालक्ष्मी को मुख्य देवता माना गया है। यह कवच जप करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:
- धन और समृद्धि की प्राप्ति: देवी लक्ष्मी को धन की देवी माना गया है। इस कवच का नियमित पाठ भक्त को आर्थिक समस्याओं से मुक्त करता है।
- शारीरिक और मानसिक सुरक्षा: कवच में उल्लेखित मंत्र शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। यह बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाने में मदद करता है।
- सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति: कवच में देवी लक्ष्मी से अनुरोध किया गया है कि वह माता के समान भक्त को सभी सुख प्रदान करें।
महालक्ष्मी कवच
अस्य श्रीमहालक्ष्मीकवचमन्त्रस्य।
ब्रह्मा-ऋषिः। गायत्री छन्दः।
महालक्ष्मीर्देवता।
महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
इन्द्र उवाच।
समस्तकवचानां तु तेजस्विकवचोत्तमम्।
आत्मरक्षणमारोग्यं सत्यं त्वं ब्रूहि गीष्पते।
श्रीगुरुरुवाच।
महालक्ष्म्यास्तु कवचं प्रवक्ष्यामि समासतः।
चतुर्दशसु लोकेषु रहस्यं ब्रह्मणोदितम्।
ब्रह्मोवाच।
शिरो मे विष्णुपत्नी च ललाटममृतोद्भवा।
चक्षुषी सुविशालाक्षी श्रवणे सागराम्बुजा।
घ्राणं पातु वरारोहा जिह्वामाम्नायरूपिणी।
मुखं पातु महालक्ष्मीः कण्ठं वैकुण्ठवासिनी।
स्कन्धौ मे जानकी पातु भुजौ भार्गवनन्दिनी।
बाहू द्वौ द्रविणी पातु करौ हरिवराङ्गना।
वक्षः पातु च श्रीर्देवी हृदयं हरिसुन्दरी।
कुक्षिं च वैष्णवी पातु नाभिं भुवनमातृका।
कटिं च पातु वाराही सक्थिनी देवदेवता।
ऊरू नारायणी पातु जानुनी चन्द्रसोदरी।
इन्दिरा पातु जंघे मे पादौ भक्तनमस्कृता।
नखान् तेजस्विनी पातु सर्वाङ्गं करूणामयी।
ब्रह्मणा लोकरक्षार्थं निर्मितं कवचं श्रियः।
ये पठन्ति महात्मानस्ते च धन्या जगत्त्रये।
कवचेनावृताङ्गनां जनानां जयदा सदा।
मातेव सर्वसुखदा भव त्वममरेश्वरी।
भूयः सिद्धिमवाप्नोति पूर्वोक्तं ब्रह्मणा स्वयम्।
लक्ष्मीर्हरिप्रिया पद्मा एतन्नामत्रयं स्मरन्।
नामत्रयमिदं जप्त्वा स याति परमां श्रियम्।
यः पठेत् स च धर्मात्मा सर्वान्कामानवाप्नुयात्।
महालक्ष्मी कवच का महत्व
महालक्ष्मी कवच में शरीर के प्रत्येक अंग की रक्षा के लिए देवी के अलग-अलग रूपों का आह्वान किया गया है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- शिर की रक्षा: विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी शिर की रक्षा करती हैं।
- नेत्र और श्रवण: सुविशालाक्षी और सागराम्बुजा नेत्र और कानों की रक्षा करती हैं।
- मुख और कंठ: महालक्ष्मी और वैकुंठवासिनी मुख और कंठ की रक्षा करती हैं।
- हृदय और वक्ष: हरिसुंदरी और श्रीदेवी हृदय व वक्ष की रक्षा करती हैं।
- पैरों की रक्षा: भक्तों की नमन ग्रहण करने वाली देवी पैरों की रक्षा करती हैं।
महालक्ष्मी कवच का पाठ और फल
जो भी इस कवच का नियमित पाठ करता है, उसे निम्नलिखित फल प्राप्त होते हैं:
- संपूर्ण सुरक्षा: कवच व्यक्ति को सभी प्रकार की हानियों से बचाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह कवच आध्यात्मिक शांति और आत्मा की उन्नति में सहायक है।
- सिद्धियों की प्राप्ति: ब्रह्माजी के अनुसार, इसका पाठ करने वाले को सिद्धियां प्राप्त होती हैं।