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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025

मधुराष्टकम् – अधरं मधुरं वदनं मधुरं

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मधुराष्टकम् संस्कृत साहित्य का एक महत्वपूर्ण और भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसकी रचना श्रीवल्लभाचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण की मधुरता का गुणगान करने के लिए की थी। यह अष्टक (आठ श्लोकों का समूह) भगवान कृष्ण के रूप, गुण, लीला और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व की मधुरता को समर्पित है। यह स्तोत्र वैष्णव भक्तों में विशेष रूप से लोकप्रिय है और इसे प्रेम, भक्ति और श्रीकृष्ण की अनन्यता को अभिव्यक्त करने का सबसे सुंदर माध्यम माना जाता है।

मधुराष्टकम् रचनाकार का परिचय Information of Madhurashtakam

श्रीवल्लभाचार्य वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख आचार्य और पुष्टिमार्ग के संस्थापक थे। उनका जन्म 1479 ई. में हुआ था। उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अनेक ग्रंथ और स्तोत्रों की रचना की। मधुराष्टकम् उनकी सबसे प्रसिद्ध और भावपूर्ण रचनाओं में से एक है।

मधुराष्टकम् की संरचना Structure of Madhurashtakam

मधुराष्टकम् में आठ श्लोक हैं, जिनमें हर पंक्ति में “मधुर” शब्द का बार-बार प्रयोग किया गया है। यह भगवान श्रीकृष्ण की हर वस्तु और गुण को मधुर (सुखद और मनमोहक) बताने का प्रयास करता है। मधुराष्टकम् में श्रीकृष्ण के रूप, उनके वचनों, उनकी चाल, उनकी मुस्कान, उनके वस्त्र, उनके क्रीड़ास्थल और उनकी बांसुरी आदि के माधुर्य का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र इस भाव को दर्शाता है कि श्रीकृष्ण का हर पहलू मधुर और दिव्य है।

श्लोकों का मुख्य भाव:

  1. मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्:
    यह पंक्ति हर श्लोक के अंत में आती है और यह निष्कर्ष प्रस्तुत करती है कि श्रीकृष्ण संपूर्ण मधुरता के अधिपति हैं।
  2. श्रीकृष्ण की आँखें, अधर (होंठ), वाणी, हृदय, और उनकी चाल, सब कुछ मधुर है।
  3. श्रीकृष्ण की लीला, उनका हास्य, और उनकी भक्ति से ओत-प्रोत प्रेम मधुर है।
  4. उनके वस्त्र, उनका बांसुरी वादन, और उनके चरण भी मधुर हैं।

मधुराष्टकम् का आध्यात्मिक महत्व Importance of Madhurashtakam

मधुराष्टकम् सिर्फ एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह भक्त के मन को श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित करता है और प्रेम की गहराई को प्रकट करता है। इसे गाने या पाठ करने से मन में भक्ति का भाव जागृत होता है और श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम बढ़ता है।

मधुराष्टकम् Madhurashtakam

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।

मधुराष्टकम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Madhurashtakam

  1. मधुराष्टकम् क्या है?

    उत्तर: मधुराष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की मधुरता और उनकी दिव्य महिमा का वर्णन करता है। इसे प्रसिद्ध संत वल्लभाचार्य ने रचा है। इसमें भगवान कृष्ण के रूप, स्वर, चाल, और गुणों की प्रशंसा की गई है।

  2. मधुराष्टकम् की रचना किसने की थी?

    उत्तर: मधुराष्टकम् की रचना वल्लभाचार्य जी ने की थी, जो भक्ति आंदोलन के महान संत और वैष्णव धर्म के प्रवर्तक थे।

  3. मधुराष्टकम् का पाठ करने के लाभ क्या हैं?

    उत्तर: मधुराष्टकम् का पाठ करने से मन को शांति मिलती है, भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है, और भक्ति भावना में वृद्धि होती है। यह आत्मा को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करता है और जीवन के कष्टों को कम करने में सहायक है।

  4. मधुराष्टकम् में कितने श्लोक होते हैं?

    उत्तर: मधुराष्टकम् में कुल आठ श्लोक होते हैं। प्रत्येक श्लोक में भगवान कृष्ण की मधुरता के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है।

  5. मधुराष्टकम् का अर्थ क्या है?

    उत्तर: मधुराष्टकम् का अर्थ है “मधुरता का स्तोत्र।” इसमें भगवान श्रीकृष्ण के रूप, वाणी, लीला, और हर पहलू को मधुरता से संबोधित किया गया है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए भगवान की महिमा का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है।

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