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Krishna Varada Stuti

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Krishna Varada Stuti In Hindi

कृष्ण वरदा स्तुति (Krishna Varada Stuti)एक महत्वपूर्ण धार्मिक मंत्र है, जो भगवान श्री कृष्ण की स्तुति में किया जाता है। यह स्तुति भगवान कृष्ण की महिमा और उनके गुणों का वर्णन करती है, जिससे भक्तों को आशीर्वाद और समृद्धि प्राप्त होती है। कृष्ण वरदा स्तुति का प्रमुख उद्देश्य भगवान कृष्ण के उन गुणों और विशेषताओं का गुणगान करना है, जिनसे संसार की समस्त समस्याओं का समाधान हो सकता है।

कृष्ण वरदा स्तुति का महत्व Importance of Krishna Varada Stuti

भगवान श्री कृष्ण की पूजा और भक्ति में विभिन्न प्रकार की स्तुतियाँ और मंत्रों का महत्व है। कृष्ण वरदा स्तुति उन प्रमुख मंत्रों में से एक है जो भक्तों को श्री कृष्ण के आशीर्वाद से लाभान्वित करती है। यह स्तुति भगवान कृष्ण के प्रति अडिग विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। कृष्ण वरदा स्तुति के माध्यम से भक्त अपने मन की शांति और आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।

कृष्ण वरदा स्तुति का पाठ करने से भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा में वृद्धि होती है और भक्तों को उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तुति जीवन के कठिन समय में भगवान कृष्ण के प्रति विश्वास को मजबूत करती है और भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करती है।

कृष्ण वरदा स्तुति के लाभ Benifits of Krishna Varada Stuti

कृष्ण वरदा स्तुति के नियमित जाप से भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ मिलते हैं:

  1. आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तुति का पाठ करने से भक्तों का ध्यान भगवान कृष्ण की दिव्यता में लगा रहता है, जिससे उनका मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है।
  2. समस्याओं का समाधान: कृष्ण वरदा स्तुति से जीवन की कठिनाइयों का समाधान होता है और जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
  3. शांति और संतुलन: इस स्तुति के जाप से मानसिक शांति और संतुलन मिलता है। तनाव और चिंता को दूर करने में यह मंत्र बहुत प्रभावी है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: कृष्ण वरदा स्तुति से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे जीवन में नकारात्मकता कम होती है।

कृष्ण वरदा स्तुति Krishna Varada Stuti

परमानन्दसर्वस्वं पाशुपाल्यपरिष्कृतं
चिरमास्वादयन्ती मे जृम्यतां चेतसि स्थितिः ।
दूरदूरमुपारुह्य पततामपि चान्तरा
सकृदाक्रन्दनेनैव वरदः करदो भवेत् ॥

मम चेतसि माद्यतो मुरारेः
मधुरस्मेरमुपाध्वमाननेन्दुम् ।
कमनीयतनोः कटाक्षलक्ष्मीं
कन्ययापि प्रणतेषु कामधेनोः ॥

वरदस्य वयं कटाक्षलक्ष्मीं
वरयामः परमेण चापलेन ।
सकृदप्युपगम्य सम्मुखं
सहसा वर्षति योषितोऽपि कामम् ॥

जृम्भतां वो हृदये जगत्त्त्रयीसुन्दराः कटाक्षभराः ।
अम्भोदान् गगनचरानाह्वयमानस्य बालस्य ॥

जृम्भन्तां वः करिगिरिजुषः कटाक्षच्छटा विभोर्मनसि ।
अम्भोधरमधःकृत्वा हर्षात्स्वैरं शयानस्य ॥

ब्रजजनवनितामदान्धकेलि-
कलहकटाक्षावलक्षविभ्रमो वः ।
विहरतु हृदये विलाससिन्धु-
र्मुहुरबिलङ्गितमुग्धशैशवश्रीः ॥

वरवितरणकेलिधन्यधन्या
मधुरतराः करुणाकटाक्षलक्ष्म्याः ।
करिगिरिसुकृताङ्कुरस्य कस्या-
भिनववारिवहस्य विभ्रतां वः ॥

इत्यष्टकं पुष्टरसानुबन्धं
विनोदगोष्ठीसमये वियुङ्क्ताम् ।
व्रजाङ्गनानां कुचयोः करीन्द्र-
शैलस्य मौलौ च मुहुर्विहर्ता ॥

श्रीकृष्णलीलाशुकवाङ्मयीभि-
रेवंविधाभिर्विबुधाहताभिः ।
पुष्णन्तु धन्याः पुनरुक्तहर्ष-
मायूंषि पीयूषतरङ्गिणीभिः ॥

कृष्ण वरदा स्तुति का सही तरीका

कृष्ण वरदा स्तुति का जाप विधिपूर्वक और श्रद्धा के साथ करना चाहिए। इसे सुबह या शाम के समय शांति से बैठकर पढ़ना अधिक लाभकारी माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से पहले मन को शुद्ध करना चाहिए और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा भाव रखना चाहिए।

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