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रविवार, मार्च 9, 2025

श्री कृष्णाष्टकम्

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श्री कृष्णाष्टकम्(Krishna Ashtakam) भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति और उपासना के लिए एक अति लोकप्रिय और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह आठ श्लोकों का एक संग्रह है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप, लीलाओं और दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भक्तों के बीच भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को जाग्रत करने के लिए प्रसिद्ध है।

श्री कृष्णाष्टकम् का महत्व Importance of Krishna Ashtakam

श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। इसे भक्तिभाव से पढ़ने वाले को भगवान के प्रेम और आशीर्वाद की अनुभूति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करना चाहते हैं।

इसका पाठ करते समय भगवान की बाल लीलाओं, माखन चोरी और गोपियों के साथ की गई रासलीला का ध्यान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह स्तोत्र मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

श्री कृष्णाष्टकम् का रचनाकार

श्री कृष्णाष्टकम् के रचयिता का नाम निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह संस्कृत साहित्य में भक्ति रस की प्रमुख रचनाओं में से एक है। इसे किसी प्राचीन संत या भक्त कवि द्वारा लिखा गया माना जाता है।

श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ और फल Benifits of Krishna Ashtakam

श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ प्रतिदिन सुबह और शाम किया जा सकता है। इसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोवर्धन पूजा या अन्य धार्मिक अवसरों पर पढ़ना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

श्री कृष्णाष्टकम् के नियमित पाठ के लाभ:

  1. भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और आशीर्वाद मिलता है।
  2. मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  3. जीवन में आने वाली बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।
  4. भक्त को भक्ति, प्रेम और समर्पण का मार्ग मिलता है।

श्री कृष्णाष्टकम् के श्लोक Krishna Ashtakam Sloka

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
अतसीपुष्पसङ्काशं हारनूपुरशोभितम्।
रत्नकङ्कणकेयूरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
कुटिलालकसंयुक्तं पूर्णचन्द्रनिभाननम्।
विलसत्कुन्डलधरं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
मन्दारगन्धसंयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम्।
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं नीलजीमूतसन्निभम्।
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
रुक्मिणीकेलिसंयुक्तं पीताम्बरसुशोभितम्।
अवाप्ततुलसीगन्धं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
गोपिकानां कुचद्वन्द्वकुङ्कुमाङ्कितवक्षसम्।
श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमालाविराजितम्।
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।

कैसे करें श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ

  1. सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. पूजा स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
  3. शांत चित्त से श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करें।
  4. पाठ के बाद भगवान से अपने मन की प्रार्थना करें।

श्री कृष्णाष्टकम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Krishna Ashtakam

  1. श्री कृष्णाष्टकम् क्या है?

    उत्तर:
    श्री कृष्णाष्टकम् एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। यह आठ श्लोकों का संग्रह है जिसमें भगवान कृष्ण के दिव्य गुण, स्वरूप, और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। इसे भक्तिमार्गी साधक भगवान कृष्ण की आराधना के लिए गाते हैं।

  2. श्री कृष्णाष्टकम् की रचना किसने की थी?

    उत्तर:
    श्री कृष्णाष्टकम् की रचना आद्य शंकराचार्य जी ने की थी। उन्होंने इसे भगवान श्रीकृष्ण की महिमा गाने और भक्तों को उनके प्रति भक्ति उत्पन्न करने के उद्देश्य से लिखा था।

  3. श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?

    उत्तर:
    श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ प्रातःकाल और संध्याकाल में किया जाना शुभ माना जाता है। इसे शांत मन से, भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने, दीप जलाकर किया जा सकता है। पाठ करते समय भगवान के दिव्य स्वरूप का ध्यान करना अत्यंत फलदायी होता है।

  4. श्री कृष्णाष्टकम् के पाठ से क्या लाभ होते हैं?

    उत्तर:
    श्री कृष्णाष्टकम् के पाठ से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यह मन को शांति, भक्ति, और स्थिरता प्रदान करता है। यह पाठ जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने, आध्यात्मिक उन्नति और भक्ति की भावना को जाग्रत करने में सहायक होता है।

  5. क्या श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ केवल संस्कृत में ही किया जा सकता है?

    उत्तर:
    श्री कृष्णाष्टकम् का मूल पाठ संस्कृत में है, लेकिन इसे हिंदी, अंग्रेजी, या अन्य भाषाओं में भी अनुवादित रूप में पढ़ा जा सकता है। भक्त की भावना और भक्ति ही मुख्य है, भाषा माध्यम मात्र है।

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