होम उपनिषद कठोपनिषद्

कठोपनिषद्

0

कठोपनिषद्: ज्ञान और ध्यान की अमृत धारा

कठोपनिषद्, वेदों के उपनिषदों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा से सम्बद्ध है। ‘कठ’ शब्द का अर्थ है ‘कथन’ या ‘संवाद’। यह उपनिषद् ऋषि वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता और मृत्यु के देवता यमराज के बीच दार्शनिक संवाद के रूप में प्रस्तुत होता है। कठोपनिषद् कृष्णयजुर्वेदकी वैदिक साहित्य कठशाखा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उन्हें वेदांत शास्त्र की गहरी अर्थवाही और आध्यात्मिक ज्ञान की ऊंची प्राप्ति तक ले जाती है। इसकी वर्णनशैली बड़ी ही सुबोध और सरल है। श्रीमद्भगवङ्गोतामें भी इसके कई मन्त्रोंका कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख है । यह उपनिषद् यमराज के शिष्य नचिकेता के संवाद के माध्यम से प्रस्तुत होती है, जिसमें उन्होंने अमरत्व के रहस्यमय ज्ञान का जिज्ञासा किया था। इस उपनिषद् में अनेक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का समग्र वर्णन है, जो जीवन को एक नये दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित करते हैं।

आत्मतत्व ज्ञान

नचिकेता जब देखते हैं कि पिताजी जीर्ण-शीर्ण गौएँ तो ब्राह्मणोंको दान कर रहे हैं और दूध देनेवाली पुष्ट गायें मेरे लिये रख छोड़ी हैं तो बाल्यावस्था होनेपर भी उनकी पितृभक्ति उन्हें चुप नहीं रहने देती और वे बालसुलभ चापल्य प्रदर्शित करते हुए वजश्रवास ऋषि से पूछ बैठते हैं- ‘तत कस्मै मां दास्यसि’ (पिताजी, आप मुझे किसको देंगे?) उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि विश्वजित् यागमें सर्वस्वदान किया जाता है, और ऐसे सत्पुत्रको दान किये बिना वह पूर्ण नहीं हो सकता था । वस्तुतः सर्वस्वदान तो तभी हो सकता है जब कोई वस्तु ‘अपनी’ न रहे और यहाँ आने पुत्रके मोहसे ही ब्राह्मणोंको निकम्मी और निरर्थक गौएँ दी जा रही थीं; अतः इस मोहसे पिताका उद्धार करना उनके लिये उचित ही था ।

इसी तरह कई बार पूछनेपर जब वाजश्रवाने क्रोध में आकर कहा कि मैं तुझे मृत्युको दान कर दूँगा, तो उन्होंने यह जानकर भी कि पिताजी क्रोधित हो कर ऐसा कह गये हैं, उनके कथन की उपेक्षानहीं की। नचिकेता ने भी अपने पिताके वचनकी रक्षाके लिये उनके मोह जनित वात्सल्य और अपने ऐहिक जीवनको सत्य के रास्ते पर निछावर कर दिया। वह बहोत कठिनाई के साथ यमराज के पास गए और उन्होंने ऐसे तिन वर मांगे जो के के उनके हित में न होकर संस्कार के हित में हुवे उस से प्रस्सन होकर यमराज ने उन्हें मोक्ष का ज्ञान दिया और संसार में नचिकेता अमर रह गए ।

कठोपनिषद् प्रमुख उपदेश

  • आत्मा अमर है: कठोपनिषद् में बार-बार इस बात पर बल दिया गया है कि आत्मा अमर है। शरीर नश्वर है, परन्तु आत्मा अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं।
  • ब्रह्मज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है: आत्मा का स्वरूप ब्रह्म के समान है। आत्मा और ब्रह्म का मिलन ही मोक्ष है। यह ज्ञान ही कर्मों के बंधन से मुक्ति दिला सकता है।
  • योग और उपासना: कठोपनिषद् में योग और उपासना को मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में बताया गया है। मन को नियंत्रित कर, इन्द्रियों को वश में कर, और आत्मा को ब्रह्म में लीन करने का प्रयास ही योग है।
  • कर्म का महत्व: कर्मफल की अवधारणा पर भी यहाँ बल दिया गया है। अच्छे कर्म शुभ फल देते हैं, और बुरे कर्म दुःखदायी परिणाम लाते हैं।

कठोपनिषद् के मुख्य श्लोक: KathoUpanishad Sloka

न जायते म्रियते वा कदाचित् न हिंसाते न च हिंस्यते।

आत्मा न तो जन्म लेता है, न ही मरता है। न ही वह किसी को मारता है, और न ही कोई उसे मार सकता है।

अग्निर्वायुर्मनः सूर्यश्चन्द्रमाः ताराः सप्त शश्वताः।

अग्नि, वायु, मन, सूर्य, चन्द्रमा, और तारे – ये सात सदा रहने वाले हैं।

एष खाद्यं तस्य तपः पुरुषः स खादितः तस्य तपः।

यह पुरुष तपस्वी का भोजन है, और तपस्वी उसका भोजन है।

कठोपनिषद् आध्यात्मिक ज्ञान का अमूल्य रत्न है। मृत्यु, जीवन, आत्मा, और ब्रह्म के विषय में यहाँ गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं। यह उपनिषद् हमें जीवन के सच्चे अर्थ और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालता है।

Katho Upanishad

कठोपनिषद् पीडीएफ Katho Upanishad PDF

कोई टिप्पणी नहीं है

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

error: Content is protected !!
Exit mobile version