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शनिवार, फ़रवरी 22, 2025

कालभैरवाष्टकम्

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Kalabhairava Ashtakam In English

कालभैरवाष्टकम्(Kalabhairava Ashtakam) एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की स्तुति के लिए रचित है। इसे आदिगुरु शंकराचार्य ने रचा था। यह स्तोत्र भगवान कालभैरव के महिमामय स्वरूप, उनके दिव्य गुणों और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। कालभैरव, शिव का उग्र और रक्षक रूप हैं, जिन्हें समय (काल) का अधिपति माना जाता है।

कालभैरव कौन हैं?

कालभैरव को “समय का स्वामी” और “शिव के रक्षक” के रूप में पूजा जाता है। उनका स्वरूप अति उग्र, दिव्य और भयमुक्त करने वाला है। भैरव शब्द का अर्थ है – “भय का नाश करने वाला”। वह काशी के संरक्षक देवता माने जाते हैं और उन्हें वहाँ के सभी कार्यों का अधिपति कहा जाता है।

कालभैरवाष्टकम् की रचना और उद्देश्य

कालभैरवाष्टकम् का मुख्य उद्देश्य भक्तों को भगवान कालभैरव के स्वरूप की महिमा का बोध कराना और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाना है। इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ने से व्यक्ति के भय, पाप और बंधन समाप्त हो जाते हैं। यह स्तोत्र व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर भगवान शिव की कृपा का अनुभव कराता है।

कालभैरवाष्टकम् का महत्त्व Kalabhairava Ashtakam Importance

  1. भय का नाश: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं।
  2. पापों से मुक्ति: यह स्तोत्र पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: इसका पाठ व्यक्ति को ईश्वर के प्रति श्रद्धा और आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता करता है।
  4. काल और मृत्यु पर विजय: कालभैरव को काल के अधिपति माना जाता है। उनकी उपासना से मृत्यु का भय समाप्त होता है।

कालभैरवाष्टकम् पाठ विधि

  1. प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर शांत मन से कालभैरवाष्टकम् का पाठ करना चाहिए।
  2. दीपक जलाकर और भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर के सामने यह स्तोत्र पढ़ा जाना चाहिए।
  3. पाठ करते समय श्रद्धा और भक्ति भाव अनिवार्य है।

कालभैरवाष्टकम् Kalabhairava Ashtakam

देवराज-सेव्यमान-पावनाङ्घ्रि-पङ्कजं
व्यालयज्ञ-सूत्रमिन्दु-शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि-योगिबृन्द-वन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १ ॥

भानुकोटि-भास्वरं भवब्धितारकं परं
नीलकण्ठ-मीप्सितार्ध-दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकाल-मम्बुजाक्ष-मक्षशूल-मक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २ ॥

शूलटङ्क-पाशदण्ड-पाणिमादि-कारणं
श्यामकाय-मादिदेव-मक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३ ॥

भुक्ति-मुक्ति-दायकं प्रशस्तचारु-विग्रहं
भक्तवत्सलं स्थिरं समस्तलोक-विग्रहम् ।
निक्वणन्-मनोज्ञ-हेम-किङ्किणी-लसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ४ ॥

धर्मसेतु-पालकं त्वधर्ममार्ग नाशकं
कर्मपाश-मोचकं सुशर्म-दायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण-केशपाश-शोभिताङ्ग-मण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५ ॥

रत्न-पादुका-प्रभाभिराम-पादयुग्मकं
नित्य-मद्वितीय-मिष्ट-दैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्प-नाशनं करालदंष्ट्र-मोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६ ॥

अट्टहास-भिन्न-पद्मजाण्डकोश-सन्ततिं
दृष्टिपात-नष्टपाप-जालमुग्र-शासनम् ।
अष्टसिद्धि-दायकं कपालमालिका-धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७ ॥

भूतसङ्घ-नायकं विशालकीर्ति-दायकं
काशिवासि-लोक-पुण्यपाप-शोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग-कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८ ॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्ति-साधकं विचित्र-पुण्य-वर्धनम् ।
शोकमोह-लोभदैन्य-कोपताप-नाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि-सन्निधिं ध्रुवम् ॥

इति श्रीमच्चङ्कराचार्य विरचितं कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।

कालभैरवाष्टकम् का प्रभाव

  • व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास और शांति का संचार होता है।
  • नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
  • मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • जीवन में आने वाली बाधाएँ और संकट दूर हो जाते हैं।

कालभैरवाष्टकम् से संबंधित सामान्य प्रश्नोत्तर FAQs for Kalabhairava Ashtakam

  1. कालभैरवाष्टकम् किसके द्वारा रचित है?

    कालभैरवाष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक स्तोत्र है।

  2. कालभैरवाष्टकम् का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    इसका मुख्य उद्देश्य भगवान कालभैरव की महिमा का वर्णन करना और भक्तों को उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा बढ़ाना है।

  3. कालभैरवाष्टकम् में भगवान कालभैरव के कौन-कौन से गुणों का वर्णन है?

    इस स्तोत्र में भगवान कालभैरव के ज्ञान, पराक्रम, दयालुता, और उनके काल नियंत्रक स्वरूप का वर्णन किया गया है।

  4. कालभैरवाष्टकम् का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

    इसका पाठ करने से भय, संकट और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

  5. कालभैरवाष्टकम् का पाठ किस समय करना सबसे उपयुक्त माना गया है?

    इसका पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय करना उपयुक्त माना गया है, विशेषकर अष्टमी तिथि पर।

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