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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

गायत्री माता आरती Gayatri Mata Ki Aarti

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माता श्री गायत्री जी की आरती  Gayatri Mata Ki Aarti

माता श्री गायत्री जी की आरती

गायत्री माता आरती एक प्रसिद्ध धार्मिक स्तुति है, जो माँ गायत्री देवी को समर्पित है। गायत्री माता को हिंदू धर्म में वेदों की जननी और ज्ञान की देवी माना जाता है। उनके पांच मुख और दस भुजाएँ हैं, जो उनके विशाल स्वरूप और सर्वशक्तिमान होने का प्रतीक हैं। गायत्री माता की आराधना विशेष रूप से ज्ञान, बुद्धि, और आध्यात्मिकता प्राप्त करने के लिए की जाती है। गायत्री मंत्र को सबसे पवित्र मंत्र माना जाता है, और इसी कारण गायत्री माता की आरती भी अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।

गायत्री माता का महत्व:

गायत्री माता को समस्त ब्रह्मांड की माता कहा जाता है। उन्हें सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। गायत्री मंत्र, जो ऋग्वेद से लिया गया है, एक शक्तिशाली और प्रसिद्ध मंत्र है जिसे सदियों से साधक जपते आ रहे हैं। गायत्री मंत्र के उच्चारण से मनुष्य के जीवन में सकारात्मकता आती है, बुराइयों से मुक्ति मिलती है, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

गायत्री माता की आराधना करने से व्यक्ति की बुद्धि तीक्ष्ण होती है और जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलता है। माँ गायत्री की कृपा से साधक को न केवल सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

गायत्री माता की आरती का महत्व:

गायत्री माता की आरती गाने से माँ की कृपा प्राप्त होती है। आरती एक प्रकार का गीत होता है, जिसे दीपक जलाकर गाया जाता है और यह माँ की महिमा का वर्णन करता है। आरती के माध्यम से भक्त माँ गायत्री के चरणों में अपने मन और आत्मा को समर्पित करते हैं। यह आरती ध्यान और साधना के साथ गाई जाती है और इसे नियमित रूप से करने से मानसिक शांति मिलती है।

गायत्री माता की आरती का पाठ:

 

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आदि शक्ति तुम अलख, निरंजन जग पालन कीं,

दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय, दैन्य हीं।

ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालनी, जगद्धातृ अम्बे, भव भय हारी,

जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे। भय हारिणि, भव तारिणि अनघे,

अज आनन्द राशी, अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले अविनाशी।

कामधेनु, सत्, चित् आनन्दा, जग गङ्गा गीता, सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता।

ऋग, यजु, साम, अथर्व प्राणयिनी प्रणव महामहिमे, कुण्डलिनी सहस्त्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे।

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी, जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी।

जननी हम हैं दीन-हीन दुःख-दारिद्र के घेरे, यद्यपि कुटिल, कपटी, कपूत, तऊ बालक हैं तेरे।

स्नेह सनी करुणामयी माता, चरण शरण दीजै, बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै।

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये, शुद्ध बुद्धि, निष्पाप, हृदय मन को पवित्र करिये।

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी तुष्टि-पुष्टि त्राता, सत्यमार्ग पर हमें चलाओं जो है सुख दाता।

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आरती के बाद की प्रार्थना:

गायत्री माता की आरती करने के बाद, साधक एक विशेष प्रार्थना करता है, जिसमें वह माँ से आशीर्वाद मांगता है कि वह अपने जीवन में सफलता, शांति, और समृद्धि प्राप्त करे। आरती के बाद, साधक गायत्री मंत्र का जप भी कर सकता है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

गायत्री माता की आराधना के लाभ:

  1. बुद्धि का विकास: गायत्री माता की उपासना से मानसिक और बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: यह आराधना आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है।
  3. कष्टों से मुक्ति: नियमित रूप से आरती करने और मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
  4. सकारात्मकता: इससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और उत्साह आता है।

गायत्री माता की आरती और उपासना हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। यह न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि मानसिक शांति और जीवन में सफल होने का मार्ग भी प्रदान करती है।



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