Gayatri Kavach
गायत्री कवचम् (Gayatri Kavach) एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जो वेदों में वर्णित गायत्री मंत्र की शक्ति और उसके संरक्षणकारी गुणों को दर्शाता है। इसे पाठ करने से साधक को आध्यात्मिक बल, मानसिक शांति और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्राप्त होती है। गायत्री देवी को वेदमाता, विश्वमाता और सर्वशक्ति स्वरूपा माना जाता है। गायत्री मंत्र की महिमा को ध्यान में रखते हुए, इस कवच की रचना की गई है, जिससे व्यक्ति को आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर सुरक्षा मिलती है।
गायत्री कवचम् का महत्त्व
गायत्री कवचम् के नियमित पाठ से साधक को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह न केवल मानसिक शुद्धि प्रदान करता है, बल्कि जीवन में आने वाली बाधाओं को भी दूर करता है। गायत्री मंत्र की महिमा के कारण, इस कवच का प्रभाव अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। यह कवच विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हैं और आत्म-साक्षात्कार की खोज में लगे हुए हैं।
गायत्री देवी का स्वरूप
गायत्री देवी को वेदों में सर्वश्रेष्ठ देवी के रूप में वर्णित किया गया है। इनका स्वरूप पांच मुखों और दस भुजाओं वाला बताया जाता है। देवी के इन मुखों का तात्पर्य पंचमुखी ज्ञान से है, जो विभिन्न दिशाओं में फैला हुआ है। वेदों में इन्हें वेदमाता कहा गया है, क्योंकि समस्त वेदों की शक्ति इन्हीं में समाहित है। गायत्री देवी का संबंध सूर्य देव से भी जोड़ा जाता है, जिससे यह जीवनदायिनी और अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाली कही जाती हैं।
गायत्री कवचम् का पाठ करने के लाभ
- रक्षा कवच का कार्य करता है – यह साधक के चारों ओर एक ऊर्जा कवच का निर्माण करता है, जिससे वह नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहता है।
- आध्यात्मिक उन्नति – यह व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा को जागृत करता है और ध्यान में सहायता करता है।
- मानसिक शांति – इसका पाठ करने से मन को शांति मिलती है और तनाव कम होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार – यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और नकारात्मकता को दूर करता है।
- ज्ञानवृद्धि – यह बुद्धि को तेज करता है और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
- स्वास्थ्य लाभ – यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी मजबूत बनाता है।
गायत्री कवचम् के पाठ की विधि
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शांत मन से पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- घी का दीपक जलाएं और गायत्री माता का ध्यान करें।
- संकल्प लेकर गायत्री कवचम् का पाठ करें।
- पाठ के बाद गायत्री मंत्र का जाप करें।
- अंत में माता गायत्री से अपने जीवन में ज्ञान, शांति और सुरक्षा की प्रार्थना करें।
Gayatri Kavach
नारद उवाच
स्वामिन् सर्वजगन्नाध संशयोऽस्ति मम प्रभो
चतुषष्टि कलाभिज्ञ पातका द्योगविद्वर
मुच्यते केन पुण्येन ब्रह्मरूपः कथं भवेत्
देहश्च देवतारूपो मंत्र रूपो विशेषतः
कर्मत च्छ्रोतु मिच्छामि न्यासं च विधिपूर्वकम्
ऋषि श्छंदोऽधि दैवंच ध्यानं च विधिव त्प्रभो
नारायण उवाच
अस्य्तेकं परमं गुह्यं गायत्री कवचं तथा
पठना द्धारणा न्मर्त्य स्सर्वपापैः प्रमुच्यते
सर्वांकामानवाप्नोति देवी रूपश्च जायते
गायत्त्री कवचस्यास्य ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः
ऋषयो ऋग्यजुस्सामाथर्व च्छंदांसि नारद
ब्रह्मरूपा देवतोक्ता गायत्री परमा कला
तद्बीजं भर्ग इत्येषा शक्ति रुक्ता मनीषिभिः
कीलकंच धियः प्रोक्तं मोक्षार्धे विनियोजनम्
चतुर्भिर्हृदयं प्रोक्तं त्रिभि र्वर्णै श्शिर स्स्मृतम्
चतुर्भिस्स्याच्छिखा पश्चात्त्रिभिस्तु कवचं स्स्मुतम्
चतुर्भि र्नेत्र मुद्धिष्टं चतुर्भिस्स्यात्तदस्र्तकम्
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि साधकाभीष्टदायकम्
मुक्ता विद्रुम हेमनील धवल च्छायैर्मुखै स्त्रीक्षणैः
युक्तामिंदु निबद्ध रत्न मकुटां तत्वार्ध वर्णात्मिकाम् ।
गायत्त्रीं वरदाभयां कुशकशाश्शुभ्रं कपालं गदां
शंखं चक्र मथारविंद युगलं हस्तैर्वहंतीं भजे ॥
गायत्त्री पूर्वतः पातु सावित्री पातु दक्षिणे
ब्रह्म संध्यातु मे पश्चादुत्तरायां सरस्वती
पार्वती मे दिशं राक्षे त्पावकीं जलशायिनी
यातूधानीं दिशं रक्षे द्यातुधानभयंकरी
पावमानीं दिशं रक्षेत्पवमान विलासिनी
दिशं रौद्रींच मे पातु रुद्राणी रुद्र रूपिणी
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षे दधस्ता द्वैष्णवी तथा
एवं दश दिशो रक्षे त्सर्वांगं भुवनेश्वरी
तत्पदं पातु मे पादौ जंघे मे सवितुःपदम्
वरेण्यं कटि देशेतु नाभिं भर्ग स्तथैवच
देवस्य मे तद्धृदयं धीमहीति च गल्लयोः
धियः पदं च मे नेत्रे यः पदं मे ललाटकम्
नः पदं पातु मे मूर्ध्नि शिखायां मे प्रचोदयात्
तत्पदं पातु मूर्धानं सकारः पातु फालकम्
चक्षुषीतु विकारार्णो तुकारस्तु कपोलयोः
नासापुटं वकारार्णो रकारस्तु मुखे तथा
णिकार ऊर्ध्व मोष्ठंतु यकारस्त्वधरोष्ठकम्
आस्यमध्ये भकारार्णो गोकार श्चुबुके तथा
देकारः कंठ देशेतु वकार स्स्कंध देशकम्
स्यकारो दक्षिणं हस्तं धीकारो वाम हस्तकम्
मकारो हृदयं रक्षेद्धिकार उदरे तथा
धिकारो नाभि देशेतु योकारस्तु कटिं तथा
गुह्यं रक्षतु योकार ऊरू द्वौ नः पदाक्षरम्
प्रकारो जानुनी रक्षे च्छोकारो जंघ देशकम्
दकारं गुल्फ देशेतु याकारः पदयुग्मकम्
तकार व्यंजनं चैव सर्वांगे मे सदावतु
इदंतु कवचं दिव्यं बाधा शत विनाशनम्
चतुष्षष्टि कला विद्यादायकं मोक्षकारकम्
मुच्यते सर्व पापेभ्यः परं ब्रह्माधिगच्छति
पठना च्छ्रवणा द्वापि गो सहस्र फलं लभेत्
श्री देवीभागवतांतर्गत गायत्त्री कवचं संपूर्णं
गायत्री कवचम् का पाठ करने से व्यक्ति आध्यात्मिक शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यह एक दिव्य रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है और साधक को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है। इसे श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से जीवन में सफलता, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। गायत्री देवी के आशीर्वाद से साधक के जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान की वृद्धि होती है।