श्री गणेश भुजंगम Ganesha Bhujangam
श्री गणेश भुजंगम् एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान गणेश की स्तुति और महिमा का वर्णन करता है। इसे ‘भुजंग’ छंद में लिखा गया है, जिसमें छंद की गति साँप (भुजंग) की तरह लहराती और लचीली होती है। इस स्तोत्र के रचयिता आदि शंकराचार्य माने जाते हैं, जो हिंदू धर्म के महान संत और दार्शनिक थे।
श्री गणेश भुजंगम् का पाठ करने से भक्त भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करते हैं, जो विघ्नहर्ता और बुद्धि के दाता माने जाते हैं। यह स्तोत्र गणेश जी के अद्वितीय स्वरूप, गुणों और उनकी कृपा का विस्तार से वर्णन करता है।
स्तोत्र की रचना का उद्देश्य:
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है। श्री गणेश भुजंगम् का पाठ करते हुए भक्त गणेश जी से अपने जीवन के सभी विघ्नों को हरने और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से मानसिक शांति, विद्या, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है।
श्री गणेश भुजंगम् के लाभ: Ganesh Bhujangam Benefits
- विघ्नों का नाश: गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन के सभी विघ्न और बाधाएँ दूर होती हैं।
- बुद्धि और ज्ञान का विकास: भगवान गणेश को ज्ञान और बुद्धि का दाता माना जाता है। श्री गणेश भुजंगम् का पाठ करने से व्यक्ति की बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
- धन-धान्य में वृद्धि: इस स्तोत्र के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: श्री गणेश भुजंगम् का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करता है, जिससे उसकी आत्मा शुद्ध होती है और वह भगवान के करीब जाता है।
- संकटों से मुक्ति: भगवान गणेश की कृपा से सभी संकटों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र पाठक को मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करता है।
श्री गणेश भुजंगम् का पाठ कैसे करें?
श्री गणेश भुजंगम् का पाठ शुद्ध मन और भक्ति भाव से करना चाहिए। इसे बुधवार और चतुर्थी के दिन विशेष रूप से पढ़ना शुभ माना जाता है। गणेश जी की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर और पुष्प अर्पित कर स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
श्री गणेश भुजंगम Ganesh Bhujangam Lyrics
रणत्क्षुद्रघण्टानिनादाभिरामं
चलत्ताण्डवोद्दण्डवत्पद्मतालम् ।
लसत्तुन्दिलाङ्गोपरिव्यालहारं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ १॥
ध्वनिध्वंसवीणालयोल्लासिवक्त्रं
स्फुरच्छुण्डदण्डोल्लसद्बीजपूरम् ।
गलद्दर्पसौगन्ध्यलोलालिमालं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ २॥
प्रकाशज्जपारक्तरन्तप्रसून-
प्रवालप्रभातारुणज्योतिरेकम् ।
प्रलम्बोदरं वक्रतुण्डैकदन्तं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ३॥
विचित्रस्फुरद्रत्नमालाकिरीटं
किरीटोल्लसच्चन्द्ररेखाविभूषम् ।
विभूषैकभूशं भवध्वंसहेतुं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ४॥
उदञ्चद्भुजावल्लरीदृश्यमूलो-
च्चलद्भ्रूलताविभ्रमभ्राजदक्षम् ।
मरुत्सुन्दरीचामरैः सेव्यमानं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ५॥
स्फुरन्निष्ठुरालोलपिङ्गाक्षितारं
कृपाकोमलोदारलीलावतारम् ।
कलाबिन्दुगं गीयते योगिवर्यै-
र्गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ६॥
यमेकाक्षरं निर्मलं निर्विकल्पं
गुणातीतमानन्दमाकारशून्यम् ।
परं परमोङ्कारमान्मायगर्भं ।
वदन्ति प्रगल्भं पुराणं तमीडे ॥ ७॥
चिदानन्दसान्द्राय शान्ताय तुभ्यं
नमो विश्वकर्त्रे च हर्त्रे च तुभ्यम् ।
नमोऽनन्तलीलाय कैवल्यभासे
नमो विश्वबीज प्रसीदेशसूनो ॥ ८॥
इमं सुस्तवं प्रातरुत्थाय भक्त्या
पठेद्यस्तु मर्त्यो लभेत्सर्वकामान् ।
गणेशप्रसादेन सिध्यन्ति वाचो
गणेशे विभौ दुर्लभं किं प्रसन्ने ॥ ९॥