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सोमवार, जुलाई 7, 2025

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम्

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गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम्(Ganesh Dwadash Naam Stotram) भगवान गणेश के बारह नामों की महिमा का वर्णन करने वाला एक पवित्र स्तोत्र है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है और उनकी पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं किया जाता है। गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् में भगवान गणेश के 12 पवित्र नामों का उल्लेख है, जिनका जाप करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और भक्तों को सुख, समृद्धि एवं बुद्धि की प्राप्ति होती है।

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् का महत्व:

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् का नियमित पाठ भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस स्तोत्र का जप करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्न-बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इसके अलावा, यह स्तोत्र व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि, और ज्ञान प्रदान करता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और उनके इन बारह नामों का जाप करके भक्त किसी भी कार्य को निर्विघ्न रूप से पूरा कर सकते हैं।

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् का फलश्रुति:

धार्मिक ग्रंथों में इस स्तोत्र की फलश्रुति (प्राप्त होने वाले फलों) का भी वर्णन किया गया है। यह कहा गया है कि:

  • यदि कोई व्यक्ति इस स्तोत्र का प्रतिदिन तीन बार पाठ करता है, तो उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • जिनके घर में यह स्तोत्र पढ़ा जाता है, वहां सदैव शुभ कार्य होते हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  • यह स्तोत्र परीक्षा, विवाह, यात्रा, व्यापार आदि किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के पहले पढ़ने से विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।

पाठ का समय और विधि:

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् का जाप प्रातः काल, संध्या या किसी शुभ अवसर पर किया जा सकता है। पाठ करते समय भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए।

संस्कृत में स्तोत्र:

शुक्लाम्बरधरं विश्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तयेः ॥१॥

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥२॥

गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचनः ।
प्रसन्नो भव मे नित्यं वरदातर्विनायक ॥३॥

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकतो विघ्ननाशो विनायकः ॥४॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि गणेशस्य तु यः पठेत् ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थि विपुलं धनम् ।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम् ॥६॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥७॥

इति मुद्गलपुराणोक्तं श्रीगणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

 

 

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