द्वादशज्योतिर्लिंङ्गस्तोत्रम् Dwadash Jyotirlinga Stotram
द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्र एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसमें भगवान शिव के द्वादश प्रमुख ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र आदिशंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जिसमें भगवान शिव के इन पवित्र स्थलों की आराधना की गई है। हिंदू धर्म में इन 12 ज्योतिर्लिंगों को भगवान शिव के सर्वोच्च स्थानों के रूप में देखा जाता है, जहाँ उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
ज्योतिर्लिंग का अर्थ है ‘प्रकाश का प्रतीक लिंग’। यह शिव के ऐसे दिव्य रूप का प्रतीक है, जो सदा प्रकाशमय और अनंत है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख पुराणों और शास्त्रों में मिलता है, और हर ज्योतिर्लिंग की अपनी महत्ता और कथा है। ये ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं:
- सोमनाथ (गुजरात)
- मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
- महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश)
- ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
- केदारनाथ (उत्तराखंड)
- भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
- काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश)
- त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
- वेद-तारकेश्वर (महाराष्ट्र)
- नागेश्वर (गुजरात)
- रामेश्वरम (तमिलनाडु)
- घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र)
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्तों की श्रद्धा और भक्ति को दर्शाने वाला एक पवित्र स्तोत्र है। इसमें हर ज्योतिर्लिंग की स्तुति करते हुए यह प्रार्थना की जाती है कि भगवान शिव अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखें और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाएँ।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्तों को पापों से मुक्ति, जीवन में शांति, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और उनकी महिमा का स्मरण भक्तों को भगवान शिव की अनंत कृपा प्राप्त कराने का माध्यम है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र इस प्रकार है:
द्वादशज्योतिर्लिंङ्गस्तोत्रम् Dwadash Jyotirlinga Stotram
श्रीगणेशाय नम: ॥
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मय चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानायकृपावतीर्णं ते सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥
श्रीशैलसंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुअङेऽपि मुदावसंतम् ।
तमर्जनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ २ ॥
अवन्तिकायां विहितावतरंमुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्यो:परिरक्षणार्थं वंदे महाकालमहं सुरेशम् ॥ ३ ॥
कावेरिकानर्मदयो:पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैव मांधातृपुरे वसंतमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ४ ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्ज्वलिकानिधाने सदावसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५ ॥
याम्ये सदंके नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगै: ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ६ ॥
महाऽद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं संपूज्यमानं सततं मुनींद्रै: ।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ७ ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यंबकमीशमीडे ॥ ८ ॥
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबद्ध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै: ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यंनियतं नमामि ॥ ९ ॥
यं डाकिनीशाकिनीकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ॥
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ॥ १० ॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकंदं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ११ ॥
इलापुरे रम्य विशालकेऽस्मिन्समुल्लसंतं च जगद्वरेण्यम् ॥
वंदे महोदारतरस्वभावं धृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ १२ ॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं पदालोक्य निजं भजेच्च ॥ १३ ॥
इति श्रीद्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रम्