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गुरूवार, दिसम्बर 4, 2025

भीषण तम परिपूर्ण निशीथिनि – Bheeshan Tamapariporn Nishethini

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भीषण तम परिपूर्ण निशीथिनि

भीषण तमपरिपूर्ण निशीथिनि, निविड निरर्गल झंझावात ।

नम घनघोर महारव पूरित, विकट, विघाती विद्युत्पात ।।

सागर-बक्ष क्षुब्ध-उल्लोलित, क्षित-क्षितिधर क्षत, कंपितगात ।

प्रलय-शिखा पावक अप्रतिहत त्रिभुवन त्रस्त, सहत अभिघात ||

कैसा यह भीषण वेश ! काँपता जगत्, न कोई शेष !

बचा, हुआ निर्भय, जिसने उस प्रियतमको पहचान लिया’ ।

धन्य वेशधारिन् ! बस, मैंने छिपे हुएको जान लिया’ ।। १ ।।

‘ विस्तृत भति दारिद्रय, रोग- पीड़ित, अपमानित दुःसहनीय ।

त्यक्त-बंधु, जग-हसित, श्रमिततनु, अमित, वेदना दुर्दमनीय ।।

एकमात्र सुत-शव निपतित संमुख प्राणोपम अति कमनीय ।

हा ! हा ! रव रत, विगत शांति-सुख, शोकसरित-गत, नहिं कथनीय ।।

नहिं सुख-स्वप्नका लेश ! निदारुण महाभयानक क्लेश !

आवृत वदन निरखकर जिसने ‘प्रियतमको पहचान लिया’ ।

धन्य बेशधारिन् ! बस, मैंने ‘छिपे हुएको जान लिया’ ।॥ २ ॥

अन्नहीन तन, मृतप्राय मन, वस्त्रामाव अनावृत देह ।

अबला अवलंबनविहीन, नित घृणा, दोषदर्शन, संदेह ।।

स्वजनहीन, अति दीन छीन, जग वैरभावयुत विगतस्नेह ।

दलित, स्खलित, पतित, निष्कासित, देश-जाति-धन-जन-सुत-गेह ।।

रह गया निपट अकेला शेष ! दिगम्बर शुष्क अस्थि अवशेष !

रुद्ररूप दर्शनकर जिसने ‘प्रियतमको पहचान लिया’ ।

रुद्ररूप धन्य वेशधारिन् ! बस, मैंने ‘छिपे हुएको जान लिया ॥ ३ ॥

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