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रविवार, मई 4, 2025

भैरव चालीसा

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Shri Bhairav ​​Chalisa

हिंदू धर्म में भगवान भैरव को भगवान शिव का एक रौद्र रूप माना जाता है, जो न केवल भक्तों की रक्षा करते हैं, बल्कि उनके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा और पापों को दूर करने में भी सहायक हैं। भैरव चालीसा एक प्राचीन और शक्तिशाली भक्ति ग्रंथ है, जो भगवान भैरव की स्तुति और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है। यह चालीसा भक्तों को आत्मिक शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करने के लिए प्रचलित है। आइए, इस लेख में भैरव चालीसा के महत्व, इसके मंत्रों की शक्ति, और इसे पढ़ने के लाभों को विस्तार से जानें।

भैरव चालीसा का परिचय

भैरव चालीसा में 40 छंद (चौपाइयाँ) होती हैं, जो भगवान भैरव के गुणों, उनके अवतारों और उनके द्वारा प्रदत्त आशीर्वादों का वर्णन करती हैं। यह ग्रंथ संस्कृत और हिंदी में मिलता है, और इसे भक्तगण अपने घरों या मंदिरों में नियमित रूप से पढ़ते हैं। भैरव चालीसा को विशेष रूप से कालभैरव जयंती जैसे पवित्र अवसरों पर पढ़ने की परंपरा है, जो प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है। यह दिन भगवान भैरव के प्राकट्य का प्रतीक माना जाता है।

भैरव चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री भैरव संकट हरन, मंगल करन कृपालु ।

करहु दया निज दास पे, निशिदिन दीनदयालु ।

॥ चौपाई ॥

जय डमरूधर नयन विशाला, श्याम वर्ण, वपु महा कराला।

जय त्रिशूलधर जय डमरूधर, काशी कोतवाल, संकटहर।

जय गिरिजासुत परमकृपाला, संकटहरण, हरहु भ्रमजाला ।

जयति बटुक भैरव भयहारी, जयति काल भैरव बलधारी।

अष्टरूप तुम्हरे सब गायें, सफल एक ते एक सिवाये।

शिवस्वरूप शिव के अनुगामी, गणाधीश तुम सबके स्वामी।

जटाजूट पर मुकुट सुहावै, भालचन्द्र अति शोभा पावै।

आरती श्री भैरव जी की सुनो जी भैरव लाड़िले, कर जोड़ कर विनती करूँ।

कृपा तुम्हारी चाहिए, मैं ध्यान तुम्हारा ही धरुँ ।

मैं चरण छूता आपके, अजर्जी मेरी सुन लीजिये।

मैं हूँ मति का मन्द, मेरी कुछ मदद तो कीजिये।

महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ ।

सुनो जी भैरव” करते सवारी स्वान की, चारों दिशा में राज्य है।

जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं।

हथियार हैं जो आपके, उसका क्या वर्णन करूँ ॥

सुनो जी भैरव” माता जी के सामने तुम, नृत्य भी करते सदा।

गा गा के गुण अनुवाद से, उनको रिझाते हो सदा।

एक सांकली है आपकी, तारीफ उसकी क्या करूँ ।

सुनो जी भैरव” बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेंहदीपुर सरनाम है।

आते जगत के यात्री, बजरंग का स्थान है।

श्री प्रेतराज सरकार के, मैं शीश चरणों में धरूँ ॥

सुनो जी भैरव” निशदिन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश रहें।

सिर पर तुम्हारे हाथ रख कर, आशीर्वाद देती रहें।

कर जोड़ कर विनती करूँ, अरु शीश चरणों में धरूं ॥ सुनो जी भैरव”

भैरव चालीसा का महत्व

  1. आध्यात्मिक सुरक्षा: भैरव चालीसा का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं, भूत-प्रेत बाधाओं और शत्रुओं से रक्षा मिलती है। भगवान भैरव को संहारक और रक्षक के रूप में पूजा जाता है।
  2. मानसिक शांति: नियमित पाठ से मन को शांति और एकाग्रता प्राप्त होती है, जो आधुनिक जीवन की उथल-पुथल से मुक्ति दिलाता है।
  3. सफलता और समृद्धि: यह चालीसा व्यापार, नौकरी और व्यक्तिगत जीवन में सफलता के लिए भी पढ़ी जाती है।
  4. पापों का नाश: भगवान भैरव के प्रति श्रद्धा से अज्ञानता और पापों से मुक्ति मिलती है, जो आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।

भैरव चालीसा पढ़ने की विधि

भैरव चालीसा का पाठ करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • स्थान और समय: सुबह या शाम के समय शांत स्थान पर बैठें, अधिमानतः भैरव मंदिर या घर के पूजा स्थल पर।
  • शुद्धता: स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान के समक्ष दीपक जलाएँ।
  • सामग्री: भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए नीले फूल, भांग, और धतूरे की पत्तियाँ चढ़ाई जा सकती हैं।
  • संख्या: चालीसा को 1, 3, 7 या 11 बार पढ़ने की सलाह दी जाती है, विशेषकर मंगलवार और शनिवार को।
  • ध्यान: पाठ के दौरान भगवान भैरव का ध्यान करें और उनकी कृपा की कामना करें।

भैरव चालीसा के लाभ

  • रक्षा कवच: यह चालीसा भक्त को दुष्ट शक्तियों और आपदाओं से बचाने का एक कवच माना जाता है।
  • न्याय प्राप्ति: जो लोग अन्याय का शिकार हैं, उनके लिए भैरव चालीसा का पाठ न्याय दिलाने में सहायक हो सकता है।
  • स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी इसकी शक्ति को माना गया है।
  • आध्यात्मिक जागरण: नियमित पाठ से भक्त को आत्म-ज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर होने में मदद मिलती है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ

भैरव चालीसा की उत्पत्ति वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है, जब भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में ब्रह्मा के अहंकार को नियंत्रित करने के लिए अवतार लिया था। इस घटना की कथा स्कंद पुराण और शिव पुराण में वर्णित है। कालभैरव को न्याय का देवता भी कहा जाता है, और वे काशी (वाराणसी) के संरक्षक माने जाते हैं। इसीलिए वाराणसी में भैरव मंदिर में उनकी पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

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