Bhagya Suktam
भाग्य सूक्तम्(Bhagya Suktam) ऋग्वेद के महत्वपूर्ण सूक्तों में से एक है, जो भाग्य और मनुष्य के जीवन पर उसके प्रभाव को समझाने के लिए रचा गया है। यह सूक्त वेदों में ईश्वर, प्रकृति और मनुष्य के संबंधों को दर्शाने वाला एक विशिष्ट पाठ है। इसका मुख्य उद्देश्य जीवन में कर्म, प्रयास और ईश्वरीय अनुकंपा की महत्ता को समझाना है।
भाग्य सूक्तम् का महत्व Bhagya Suktam Importance
भाग्य सूक्तम् में यह बताया गया है कि मनुष्य का भाग्य केवल ईश्वरीय कृपा या संयोग का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उसके कर्मों और प्रयासों का प्रतिफल भी है। यह सूक्त मानव जीवन में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है और यह समझाने का प्रयास करता है कि भाग्य को केवल निष्क्रिय रूप से स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
भाग्य और कर्म का संबंध
भाग्य सूक्तम् में यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि भाग्य और कर्म का गहरा संबंध है। यदि मनुष्य सही मार्ग पर चलते हुए अच्छे कर्म करता है, तो उसका भाग्य भी सकारात्मक होता है। यह सूक्त हमें यह सिखाता है कि भाग्य का निर्माण हमारे अपने हाथों में होता है और हमें निरंतर सत्कर्म करते रहना चाहिए।
भाग्य सूक्तम् Bhagya Suktam
ओ-म्प्रा॒तर॒ग्नि-म्प्रा॒तरिन्द्रग्ं॑ हवामहे प्रा॒तर्मि॒त्रा वरु॑णा प्रा॒तर॒श्विना᳚ ।
प्रा॒तर्भग॑-म्पू॒षण॒-म्ब्रह्म॑ण॒स्पति॑-म्प्रा॒त-स्सोम॑मु॒त रु॒द्रग्ं हु॑वेम ॥ १ ॥
प्रा॒त॒र्जित॒-म्भ॑गमु॒ग्रग्ं हु॑वेम व॒य-म्पु॒त्रमदि॑ते॒र्यो वि॑ध॒र्ता ।
आ॒द्ध्रश्चि॒द्य-म्मन्य॑मानस्तु॒रश्चि॒द्राजा॑ चि॒द्य-म्भग॑-म्भ॒क्षीत्याह॑ ॥ २ ॥
भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मा-न्धिय॒मुद॑व॒दद॑न्नः ।
भग॒प्रणो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒प्रनृभि॑र्नृ॒वन्त॑स्स्याम ॥ ३ ॥
उ॒तेदानी॒-म्भग॑वन्तस्स्यामो॒त प्रपि॒त्व उ॒त मध्ये॒ अह्ना᳚म् ।
उ॒तोदि॑ता मघव॒न्थ्सूर्य॑स्य व॒य-न्दे॒वानाग्ं॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥ ४ ॥
भग॑ ए॒व भग॑वाग्ं अस्तु देवा॒स्तेन॑ व॒य-म्भग॑वन्तस्स्याम ।
त-न्त्वा॑ भग॒ सर्व॒ इज्जो॑हवीमि॒ सनो॑ भग पुर ए॒ता भ॑वेह ॥ ५ ॥
सम॑ध्व॒रायो॒षसो॑-ऽनमन्त दधि॒क्रावे॑व॒ शुचये॑ प॒दाय॑ ।
अ॒र्वा॒ची॒नं-वँ॑सु॒विद॒-म्भग॑न्नो॒ रथ॑मि॒वा-ऽश्वा॑वा॒जिन॒ आव॑हन्तु ॥ ६ ॥
अश्वा॑वती॒र्गोम॑तीर्न उ॒षासो॑ वी॒रव॑ती॒स्सद॑मुच्छन्तु भ॒द्राः ।
घृ॒त-न्दुहा॑ना वि॒श्वतः॒ प्रपी॑ना यू॒य-म्पा॑त स्व॒स्तिभि॒स्सदा॑ नः ॥ ७ ॥
यो मा᳚-ऽग्ने भा॒गिनग्ं॑ स॒न्तमथा॑भा॒ग॑-ञ्चिकी॑ऋषति ।
अभा॒गम॑ग्ने॒ त-ङ्कु॑रु॒ माम॑ग्ने भा॒गिन॑-ङ्कुरु ॥ ८ ॥
ॐ शान्ति॒-श्शान्ति॒-श्शान्तिः॑ ॥
भाग्य सूक्तम् केवल एक धार्मिक पाठ नहीं है, बल्कि यह जीवन को गहराई से समझने और जीने की कला सिखाता है। यह हमें यह सिखाता है कि भाग्य और कर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और हमें अपनी क्षमताओं पर भरोसा करते हुए सही मार्ग पर चलना चाहिए। इस सूक्त का अध्ययन और अभ्यास जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाने में सहायक है।
यदि आप भाग्य सूक्तम् का नियमित अभ्यास करेंगे, तो आपको इसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। यह वेदों का ज्ञान हमें हमारे अस्तित्व के मूल और ईश्वरीय कृपा के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है।