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शुक्रवार, अगस्त 15, 2025

Tripurasundari Panchakam

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Tripurasundari Panchakam

त्रिपुरसुंदरी पंचकम (Tripurasundari Panchakam) एक सुंदर और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो आदिशक्ति त्रिपुरसुंदरी देवी की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है और इसमें कुल पाँच श्लोक होते हैं, इसलिए इसे “पंचकम” कहा जाता है। त्रिपुरसुंदरी देवी को ललिता, राजराजेश्वरी, श्रीविद्या और शोडशी जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। यह पंचकम मुख्यतः श्रीविद्या उपासकों और शाक्त साधकों के बीच बहुत पूजनीय और महत्वपूर्ण माना जाता है।

त्रिपुरसुंदरी देवी का स्वरूप:

त्रिपुरसुंदरी देवी को संपूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री शक्ति माना गया है। “त्रिपुरा” का अर्थ है तीन लोक – स्वर्ग (दिव्य), पृथ्वी (स्थूल) और पाताल (सूक्ष्म)। “सुंदरी” का अर्थ है अत्यंत सुंदर। अतः त्रिपुरसुंदरी वह देवी हैं जो तीनों लोकों में सौंदर्य और शक्ति की अधिपति हैं। वह शिव की अर्धांगिनी और ललिता त्रिपुरसुंदरी के रूप में सर्वोच्च देवी मानी जाती हैं।

त्रिपुरसुंदरी पंचकम

प्रातर्नमामि जगतां जनन्याश्चरणाम्बुजम्।
श्रीमत्त्रिपुरसुन्दर्याः प्रणताया हरादिभिः।
प्रातस्त्रिपुरसुन्दर्या नमामि पदपङ्कजम्।
हरिर्हरो विरिञ्चिश्च सृष्ट्यादीन् कुरुते यया।
प्रातस्त्रिपुरसुन्दर्या नमामि चरणाम्बुजम्।
यत्पादमम्बु शिरस्येवं भाति गङ्गा महेशितुः।
प्रातः पाशाङ्कुश- शराञ्चापहस्तां नमाम्यहम्।
उदयादित्यसङ्काशां श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरीम्।
प्रातर्नमामि पादाब्जं ययेदं धार्यते जगत्।
तस्यास्त्रिपुरसुन्दर्या यत्प्रसादान्निवर्तते।
यः श्लोकपञ्चकमिदं प्रातर्नित्यं पठेन्नरः ।
तस्मै ददात्यात्मपदं श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी।

त्रिपुरसुंदरी पंचकम का महत्व:

  1. श्रीविद्या साधना में अनिवार्य: यह पंचकम श्रीविद्या उपासकों के लिए अत्यंत पवित्र और रहस्यमय साधन है।
  2. सौंदर्य और शक्ति की प्राप्ति: इसका नियमित जप साधक के भीतर सौंदर्य, आकर्षण, आत्मबल और दिव्यता उत्पन्न करता है।
  3. मंत्र-साधना की सहायता: पंचदशी, षोडशी और श्रीविद्या मंत्रों की साधना में यह स्तोत्र मानसिक एकाग्रता और भक्ति प्रदान करता है।
  4. चित्तशुद्धि और आत्मसाक्षात्कार: यह पंचकम साधक के चित्त को शुद्ध करता है और उसे आत्मा से जुड़ने में सहायता करता है।

त्रिपुरसुंदरी पंचकम के पाठ की विधि:

  • समय: प्रातःकाल अथवा रात्रि में शांत स्थान पर।
  • आसन: सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन।
  • पूर्व ध्यान: श्रीचक्र या देवी के ध्यान के साथ।
  • संकल्प: देवी त्रिपुरसुंदरी की कृपा प्राप्ति हेतु।
  • भाव: पूर्ण भक्ति, समर्पण और निष्ठा।
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