30.9 C
Gujarat
बुधवार, सितम्बर 24, 2025

Akhilandeshwari Stotram

Post Date:

Akhilandeshwari Stotram

अखिलांडेश्वरी स्तोत्रम् एक पावन स्तोत्र है जो देवी पार्वती के एक विशेष रूप अखिलांडेश्वरी देवी को समर्पित है। “अखिल” का अर्थ है संपूर्ण और ईश्वरि का अर्थ है ईश्वर की शक्ति या देवी। अतः अखिलांडेश्वरी का अर्थ होता है “संपूर्ण ब्रह्मांड की अधिपति देवी”

यह स्तोत्र मुख्यतः शक्तिपूजा, तांत्रिक साधना, और भव-सागर से मुक्ति पाने की कामना से किया जाता है। यह देवी के महान, भयानक और करुणामयी स्वरूपों का वर्णन करता है।

देवी अखिलांडेश्वरी कौन हैं?

देवी अखिलांडेश्वरी को दक्षिण भारत, विशेषकर तिरुवनैकवल (तिरुवनइक्कावल), त्रिची (तमिलनाडु) में स्थित मंदिर में पूजा जाता है। यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है और वहाँ जललिंगेश्वर (जल का शिवलिंग) के साथ अखिलांडेश्वरी देवी विराजमान हैं।
यह देवी शक्ति की पराकाष्ठा, ब्रह्मांड की संरचना, संहार और संरक्षण की अधिष्ठात्री हैं।

स्तोत्र के रचयिता और स्रोत:

इस स्तोत्र के रचयिता की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, परंतु यह स्तोत्र तांत्रिक साहित्य और श्रीविद्या परंपरा से संबंध रखता है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह स्तोत्र शंकराचार्य परंपरा या किसी श्रीविद्या उपासक द्वारा रचित हो सकता है।

अखिलांडेश्वरी स्तोत्रम्

समग्रगुप्तचारिणीं परन्तपःप्रसाधिकां
मनःसुखैक- वर्द्धिनीमशेष- मोहनाशिनीम्।
समस्तशास्त्रसन्नुतां सदाऽष्चसिद्धिदायिनीं
भजेऽखिलाण्डरक्षणीं समस्तलोकपावनीम्।

तपोधनप्रपूजितां जगद्वशीकरां जयां
भुवन्यकर्मसाक्षिणीं जनप्रसिद्धिदायिनीम्।
सुखावहां सुराग्रजां सदा शिवेन संयुतां
भजेऽखिलाण्डरक्षणीं जगत्प्रधानकामिनीम्।

मनोमयीं च चिन्मयां महाकुलेश्वरीं प्रभां
धरां दरिद्रपालिनीं दिगम्बरां दयावतीम्।
स्थिरां सुरम्यविग्रहां हिमालयात्मजां हरां
भजेऽखिलाण्डरक्षणीं त्रिविष्टपप्रमोदिनीम्।

वराभयप्रदां सुरां नवीनमेघकुन्तलां
भवाब्धिरोगनाशिनीं महामतिप्रदायिनीम्।
सुरम्यरत्नमालिनीं पुरां जगद्विशालिनीं
भजेऽखिलाण्डरक्षणीं त्रिलोकपारगामिनीम्।

श्रुतीज्यसर्व- नैपुणामजय्य- भावपूर्णिकां
गॆभीरपुण्यदायिकां गुणोत्तमां गुणाश्रयाम्।
शुभङ्करीं शिवालयस्थितां शिवात्मिकां सदा
भजेऽखिलाण्डरक्षणीं त्रिदेवपूजितां सुराम्।

अखिलांडेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करें?

📿 पाठ का समय:

  • रात्रि के समय, विशेषकर शक्ति उपासना के दौरान,
  • नवरात्रि, अष्टमी, या पूर्णिमा तिथि पर
  • श्रीविद्या दीक्षा प्राप्त साधकों के लिए यह और भी प्रभावी होता है।

📿 विधि:

  1. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  2. श्रीचक्र या अखिलांडेश्वरी की मूर्ति/चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
  3. मन को स्थिर कर, ध्यानपूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
  4. पाठ के अंत में देवी को पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें।
पिछला लेख
अगला लेख

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

હો દેવી અન્નપૂર્ણા | Ho Devi Annapurna

હો દેવી અન્નપૂર્ણા | Ho Devi Annapurnaમાં શંખલ તે...

ऋग्वेद हिंदी में

ऋग्वेद हिंदी में | Rigveda in Hindiऋग्वेद (Rigveda in...

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र – श्री विष्णु (Gajendra Moksham Stotram)

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र - Gajendra Moksham Stotramश्रीमद्धागवतान्तर्गत गजेन्द्रकृत भगवानका...

श्री शनि चालीसा

Shani Chalisaशनि चालीसा हिंदू धर्म में एक लोकप्रिय प्रार्थना...
error: Content is protected !!