Rajarajeshwari Stotram In Hindi
राजराजेश्वरी स्तोत्रम्(Rajarajeshwari Stotram) देवी दुर्गा या उनकी महाशक्ति स्वरूपा देवी राजराजेश्वरी को समर्पित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी के स्वरूप, उनकी महिमा और उनकी कृपा के गुणगान में रचित है। इसे साधक द्वारा भक्ति और श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है ताकि देवी की कृपा प्राप्त हो सके और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास हो।
राजराजेश्वरी कौन हैं? Who is Rajarajeshwari ?
राजराजेश्वरी त्रिपुरा सुंदरी का ही एक नाम है। यह देवी त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के सामूहिक शक्ति स्वरूप की प्रतिनिधि मानी जाती हैं। उन्हें शक्ति के सर्वोच्च रूप में पूजा जाता है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन करती हैं। “राजराजेश्वरी” शब्द का अर्थ है “राजाओं की भी अधिष्ठात्री देवी”।
राजराजेश्वरी स्तोत्र का महत्व Rajarajeshwari Stotram Importance
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, आत्मिक बल, और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक माना गया है। इसके नियमित पाठ से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- आध्यात्मिक जागृति: यह स्तोत्र साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायक होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: यह पाठ नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाता है।
- संकट निवारण: देवी की कृपा से जीवन के कष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- सुख और समृद्धि: राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ घर में शांति और समृद्धि लाता है।
राजराजेश्वरी स्तोत्र Rajarajeshwari Stotram
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् की रचना आदिशंकराचार्य या अन्य महान ऋषियों द्वारा की गई मानी जाती है। यह संस्कृत भाषा में रचित है और इसमें देवी की विभिन्न लीलाओं, गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है।
या त्रैलोक्यकुटुम्बिका वरसुधाधाराभि- सन्तर्पिणी
भूम्यादीन्द्रिय- चित्तचेतनपरा संविन्मयी शाश्वती।
ब्रह्मेन्द्राच्युत- वन्दितेशमहिषी विज्ञानदात्री सतां
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
यां विद्येति वदन्ति शुद्धमतयो वाचां परां देवतां
षट्चक्रान्तनिवासिनीं कुलपथप्रोत्साह- संवर्धिनीम्।
श्रीचक्राङ्कितरूपिणीं सुरमणेर्वामाङ्क- संशोभिनीं
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या सर्वेश्वरनायिकेति ललितेत्यानन्द- सीमेश्वरी-
त्यम्बेति त्रिपुरेश्वरीति वचसां वाग्वादिनीत्यन्नदा।
इत्येवं प्रवदन्ति साधुमतयः स्वानन्दबोधोज्ज्वलाः
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या प्रातः शिखिमण्डले मुनिजनैर्गौरी समाराध्यते
या मध्ये दिवसस्य भानुरुचिरा चण्डांशुमध्ये परम्।
या सायं शशिरूपिणी हिमरुचेर्मध्ये त्रिसंध्यात्मिका
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या मूलोत्थितनाद- सन्ततिलवैः संस्तूयते योगिभिः
या पूर्णेन्दुकलामृतैः कुलपथे संसिच्यते सन्ततम्।
या बन्धत्रयकुम्भितोन्मनिपथे सिद्ध्यष्टकेनेड्यते
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या मूकस्य कवित्ववर्षण- सुधाकादम्बिनी श्रीकरी
या लक्ष्मीतनयस्य जीवनकरी सञ्जीविनीविद्यया।
या द्रोणीपुरनायिका द्विजशिशोः स्तन्यप्रदात्री मुदा
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या विश्वप्रभवादि- कार्यजननी ब्रह्मादिमूर्त्यात्मना
या चन्द्रार्कशिखि- प्रभासनकरी स्वात्मप्रभासत्तया।
या सत्त्वादिगुणत्रयेषु समतासंवित्प्रदात्री सतां
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या क्षित्यन्तशिवादितत्त्व- विलसत्स्फूर्तिस्वरूपा परं
या ब्रह्माण्दकटाहभार- निवहन्मण्डूकविश्वम्भरी।
या विश्वं निखिलं चराचरमयं व्याप्य स्थिता सन्ततं
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या वर्गाष्टकवर्ण- पञ्जरशुकी विद्याक्षरालापिनी
नित्यानन्दपयो- ऽनुमोदनकरी श्यामा मनोहारिणी।
सत्यानन्दचिदीश्वर- प्रणयिनी स्वर्गापवर्गप्रदा
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या श्रुत्यन्तसुशुक्तिसम्पुट- महामुक्ताफलं सात्त्विकं
सच्चित्सौख्यपयोद- वृष्टिफलितं सर्वात्मना सुन्दरम्।
निर्मूल्यं निखिलार्थदं निरुपमाकारं भवाह्लाददं
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या नित्याव्रतमण्डल- स्तुतपदा नित्यार्चनातत्परा
नित्यानित्यविमर्शिनी कुलगुरोर्वावय- प्रकाशात्मिका।
कृत्याकृत्यमति- प्रभेदशमनी कात्स्नर्यात्मलाभप्रदा
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
यामुद्दिश्य यजन्ति शुद्धमतयो नित्यं पराग्नौ स्रुचा
मत्या प्राणघृतप्लुते- न्द्रियचरुद्रव्यैः समन्त्राक्षरैः।
यत्पादाम्बुजभक्ति- दार्ढ्यसुरसप्राप्त्यै बुधाः सन्ततं
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या संविन्मकरन्द- पुष्पलतिकास्वानन्द- देशोत्थिता
सत्सन्तानसुवेष्ट- नातिरुचिरा श्रेयःफलं तन्वती।
निर्धूताखिलवृत्तिभक्त- धिषणाभृङ्गाङ्गनासेविता
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
यामाराध्य मुनिर्भवाब्धिमतरत् क्लेशोर्मिजालावृतं
यां ध्यात्वा न निवर्तते शिवपदानन्दाब्धिमग्नः परम्।
यां स्मृत्वा स्वपदैकबोधमयते स्थूलेऽपि देहे जनः
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या पाषाङ्कुशचाप- सायककरा चन्द्रार्धचूडालसत्
काञ्चीदामविभूषिता स्मितमुखी मन्दारमालाधरा।
नीलेन्दीवरलोचना शुभकरी त्यागाधिराजेश्वरी
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
या भक्तेषु ददाति सन्ततसुखं वाणीं च लक्ष्मीं तथा
सौन्दर्यं निगमागमार्थकवितां सत्पुत्रसम्पत्सुखम्।
सत्सङ्गं सुकलत्रतां सुविनयं सायुज्यमुक्तिं परां
तां वन्दे हृदयत्रिकोणनिलयां श्रीराजराजेश्वरीम्।
उपासना पद्धति
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल या सायं काल में किया जाना उत्तम माना गया है। पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाएं और लाल पुष्प अर्पित करें। शांत चित्त से स्तोत्र का पाठ करें।
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् के लाभ Rajarajeshwari Stotram Benifits
- सुखद वैवाहिक जीवन: इस स्तोत्र का पाठ पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है।
- धन और समृद्धि: देवी की कृपा से धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- संतान प्राप्ति: संतान सुख के लिए भी इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
- आध्यात्मिक सिद्धि: साधक को आध्यात्मिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Rajarajeshwari Stotram
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् क्या है?
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् एक पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है, जो देवी राजराजेश्वरी की पूजा में उपयोग किया जाता है। यह स्तोत्र देवी के रूपों में से एक को सम्मानित करता है, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ मिलकर सृष्टि, पालन और संहार का कार्य करती हैं। इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों में किया जाता है, जिससे भक्तों को शांति, समृद्धि और बुराई से मुक्ति प्राप्त होती है।
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का महत्व क्या है?
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त देवी राजराजेश्वरी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनके जीवन से सभी संकट दूर हो जाते हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है जो मानसिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उपासना करते हैं।
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ किस समय करना चाहिए?
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ सुबह और संध्याकाल में विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इसके अलावा, शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन इसका पाठ अधिक फलदायक होता है। भक्तों को नियमित रूप से इसका जाप करना चाहिए, ताकि देवी का आशीर्वाद हमेशा बना रहे। विशेषत: उपवास के दिन इसका पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् के क्या लाभ हैं?
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ करने से कई लाभ होते हैं। इससे मानसिक शांति, तनाव में कमी और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, यह भक्तों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, वित्तीय समृद्धि और पारिवारिक सुख की प्राप्ति में मदद करता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और हर तरह की बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
क्या राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ सभी के लिए उपयुक्त है?
राजराजेश्वरी स्तोत्रम् का पाठ सभी भक्तों के लिए उपयुक्त है, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि से संबंधित हों। इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए लाभकारी है, जो मानसिक संकटों और व्यावसायिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।